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मुसाफिर के जाने के बाद

कविता
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मुसाफिर के जाने के बाद
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मुसाफिर के जाने के बाद
कई लोग सामने आएंगे
अफसाना सुनाने
यकीन मानिए
कलम तोड़ देंगे
उसकी वाहवाही में
खूबियों पर तो
पूरी किताब लिख देंगे
वश यही नहीं बताएंगे
कि गुनहगार वे भी हैं
उसके पैरों में पड़े
छालों के लिए
पथ पर उसके कांटे
उन्होंने भी रखे थे
कहीं पत्थर रखे तो
कहीं गड्ढे खोदे थे
मुस्कुराये थे उसके
हर एक जख्म पर
अब आंसू बहाकर
अपने गुनाह धो रहे
कितने मतलबी हैं
फरेब से ज्यादा फरेबी
जो आज सीधे बन रहे
टेढ़े इतने जैसे जलेबी
@ ओमप्रकाश तिवारी

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