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जुलाई, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भूख से तड़प कर मर गई महिला

मनरेगा का कड़वा सच : मजदूरी करने के बाद भी नहीं मिला था पैसा घटना गोरखुर के रामकोला की है। यहां एक महिला मीरा भोजन और दवा के अभाव में कई दिनों तक तड़पने के बाद मर गई। अब जिलाधिकारी का कहना है कि मीरा की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों पर हत्या का मामला दर्ज कराया जाएगा। यह घटना सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार को तो उजागर करती ही है। हमारे समाज की संवेदनहीनता को भी बताती है। सरकारी तंत्र तो भ्रष्टï है ही समाज की सामाजिकता भी मर गई है। लोग इतने क्रूर होते जा रहे हैं कि उनके सामने ही कोई कई दिनों तक बीमार रहता है। उसके घर भोजन नहीं बनता है और वह देखते रहते हैं। ऐसे लोगों के बारे में सोचकर ही घिन आने लगती है। नेबुआ नौरंगिया ब्लाक के गांव बरवा खुर्द निवासी लालू की ३६ वर्षीया पुत्री मीरा को काफी पहले ससुराल वालों ने ठुकरा दिया था। तंगहाली में दिन गुजार रही मीरा को अप्रैल में मनरेगा के तहत काम मिला तो उसे लगा कि अब उसे दो जून की रोटी नसीब हो जाएगी, लेकिन प्रधान और सेके्रटरी ने धन की कमी बताकर पैसे का भुगतान नहीं किया। पिछले एक महीने से मीरा बीमार थी। सप्ताह भर से उसके घर में चूल्हा नहीं जला था।

कम कीमत वाली मौतें हो भी जाएं तो क्या गम

सरकार की मानसिकता को अभिव्यक्त करते हैं आए दिन हो रहे रले हादसे फिर एक रेल हादसा। ६६ लोगों की मौत। करीब १५० लोग घायल। लगभग ४० लोगों की हालत गंभीर। रेल मंत्री ममता बनर्जी के १४ माह के कार्यकाल में यह १०वां रेल हादसा है। इसका मतलब यह नहीं है कि हादसों के लिए रेलमंत्री जिम्मेदार हैं। लेकिन मंत्रालय के प्रति उनकी गंभीरता का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है। आए दिन हो रहे रेल हादसे हमारी सकार की संवेदना, उसकी प्राथमिकता और उसके नजरिये को भी स्पष्ट करते हैं। अब तक हुए रेल हादसों पर यदि गौर किया जाए तो यही तथ्य सामने आता है कि अधिकतर मध्यम वर्ग और गरीब लोगों के लिए चलने वाली ट्रेनें ही दुर्घटनाग्रस्त होती हैं और लेट भी चलती हैं। एक खास वर्ग के लिए चलाई जाने वाली रेल गाडिय़ां न तो देरी से चलती हैं न ही उनकी सुरक्षा के प्रति कोई अंगभीरता दिखाई जाती है। इसे रेल मंत्रालय और रेलवे का हर कर्मचारी जानता है कि गरीबों के लिए चलने वाली ट्रेनें देरी से चलें या हादसाग्रस्त हो जाएं उससे उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पडऩे वाला। ऐसे लोगों की मौत की कोई कीमत नहीं है। कुछ लाख मुआवजा देकर और दो चार बयान देकर मामले क

स्वतंत्र पत्रकार को मार डाला आंध्र पुलिस ने

माओवादी नेता को मारने के चक्कर में आंध्र प्रदेश की पुलिस ने शुक्रवार रात उत्तराखंड के एक युवक को भी मार डाला। स्वतंत्र पत्रकार हेम पांडे की मौत से आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जिले में शुक्रवार रात हुई पुलिस और माओवादी मुठभेड़ पर सवालिया निशान लग गया है। साथ यह भी सवाल उठता है कि पुलिस यदि निदोर्षों की जान लेती है तो उसे क्या कहा जाए? देश भर में आए दिन पुलिस फर्जी मुठभेड़ में लोगों को मार गिराती है। जाहिर है कि इसकी प्रक्रिया भी होती है, जोकि स्वाभाविक है। ऑपरेशन ग्रीन हंट के नाम पर पुलिस और सुरक्षा बल यदि निर्दोष लोगों को मार रहे हैं तो समय समय पर उसकी प्रतिक्रिया भी होती है। जवाब में पुलिस और सुरक्षा बल के जवान भी मारे जाते हैं। हालांकि इसे सही नहीं कहा जा सकता लेकिन जब पुलिस और सुरक्षा बल के जवान निर्दोष लोगों को मारते हैं तो उसे भी उचित नहीं कहा जा सकता। आंध्र प्रदेश की कथित पुलिस मुठभेड़ में भाकपा (माओवादी) के प्रवक्ता चेरुकरी राजकुमार उर्फ आजाद के साथ उत्तराखंड के युवक हेम पांडे के मारे जाने से कुमाऊं के लोग स्तब्ध हैं। कथित मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए उत्तराखंड लोक वाहिनी के अध्यक्ष ड

घाटे में नहीं, लाभ में हैं तेल कंपनियां

माकपा ने यूपीए सरकार को पेट्रोलियम पलिए पार्टी ने एक बुकलेट दार्थों के दाम बाजार पर छोडऩे के खतरों से आगाह किया है। पार्टी के अनुसार इस नीति से सरकारी तेल कंपनियां दीवालिया हो जाएंगी। सरकार के इस फैसले का पर्दाफाश करने के जारी किया है। माकपा का कहना है कि सरकार तेल की कीमतों में वृद्धि की वजह तेल कंपनियों का घाटे में होना बताया है, लेकिन यह गलत है। सभी कंपनियां लाभ में हैं। संसद में पेश बैलेंस सीट से इस बात की पुष्टि होती है। संसदीय समिति भी कह चुकी है कि सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स दर कम करना चाहिए। इनकी कीमत में 51 फीसदी टैक्स है, जबकि पाकिस्तान में 30 और श्रीलंका में 37 फीसदी ही टैक्स है। माकपा ने कहा है कि सरकार का यह कहना गलत है कि दाम बढ़ाने पर भी सरकार सालाना 53 हजार करोड़ का बोझ सहेगी। हकीकत यह है कि इससे सरकार के खजाने में 120 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त आने का अनुमान है। सरकार कीमतों में वृद्धि की दूसरी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों का बढऩा बता रही है, लेकिन पिछले छह माह में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रति लीटर मात्र 70 पैसे बढ़ोत्तरी हुई, जबकि यहां पेट्रोल में 6.4

हर रोज कोख में मार दी गईं 1900 बेटियां

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) की एक रपट में कहा गया है कि साल 2001 से 2005 के बीच रोजाना 1800 से 1900 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है। सरकारी रपट में कहा गया है कि 6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात सिर्फ कन्या भ्रूण के गर्भपात के कारण ही प्रभावित नहीं हुआ है, बल्कि इसकी वजह कन्या मृत्यु दर का अधिक होना भी है। बच्चियों की देखभाल ठीक तरीके से न होने के कारण उनकी मृत्यु दर अधिक है। इसलिए जन्म के समय मृत्यु दर एक महत्वपूर्ण संकेतक है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है। रपट के मुताबिक 1981 में 6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात 962 था, जो 1991 में घटकर 945 हो गया और 2001 में यह 927 रह गया है। इसका Ÿोय मुख्य तौर पर देश के कुछ भागों में हुई कन्या भ्रूण की हत्या को जाता है। उल्लेखनीय है कि १९९५ में बने जन्म-पूर्व नैदानिक अधिनियम (प्री नेटल डायग्नास्टिक एक्ट, १९९५) के मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर कानूनी है, जबकि इसका उल्लंघन सबसे अधिक होता है। भारत सरकार ने 2011-12 तक बच्चों का लिंग अनुपात 935 और 2016-17 तक इसे बढ़ा कर 950 करने का लक्ष्य रखा है। देश के 328 जिलों में बच्चों का लिंग अनुपात 950 से कम