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अगस्त, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बालमन को रौंदते टीवी न्यूज चैनल

सुबह सो कर उठा तो दोनों बच्चे घर में ही पाए गए, जबकि उन्हें स्कूल में होना चाहिए था। पूछा स्कूल यों नहीं गए तो एक ने जवाब दिया कि स्कूल जाकर या करना है। यह दुनिया तो वैसे भी कुछ ही दिन की मेहमान है। उसके जवाब से मैं हैरत में था। मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। खुद को संयत करते हुए पूछा कि तू ऐसी बकवास यों कर रहा है? मैं नहीं डैडी, मेरे स्कूल के सभी लड़के कह रहे हैं कि पढ़-लिखकर या करना? दुनिया तो चार साल चार माह १५ दिन बाद तबाह हो जाएगी, बरबाद हो जाएगी। ऐसे में पढ़ने का या फायदा? जिंदगी के जो चार साल बचे हैं उसमें मौज-मस्ती यों न की जाए। मेरा यह बेटा अभी पंद्रह साल का है और नौवींं कक्षा में पढ़ता है। उसकी बातें सुनकर एक पल को तो मेरे शरीर में खून दाै़डना ही बंद हो गया। मुझे लगा कि यह या बकवास किए जा रहा है। अगले ही पल मुझे बहुत तेज गुस्सा आया और मन में आया कि मैं इसकी बेवकूफी के लिए इसकी पिटाई कर दंू। लेकिन फिर सोचा कि नहीं, इसकी बात को धैर्य से सुनना चाहिए। यह तय करने के बाद मैं शांत हो गया और उससे प्यार से पूछा कि आप और आपके स्कूल के लड़कों को यह बात किसने बताई? उसने बिना

देशभक्ति के खोखले नारे लगाने से नहीं मिलते पदक

बीजिंग ओलंपिक में पदक के मामले में भारत ४६वें स्थान पर है। लेकिन इस बार भारत की झोली में तीन पदक आ गए हैं। यह पदक जहां व्यि तगत स्पार्धाआें में मिले हैं। वहीं यह खिलाड़ियों की व्यि तगत मेहनत, लगन, जुनून और साहस का परिणाम भी है। जिन खिलाड़ियों ने हम हिंदुस्तानियों को गर्व करने लायक यह अनमोल क्षण दिया है उनके प्रति आज हमारा रवैया बेशक सकारात्मक है लेकिन खेल और खिलाड़ियों के प्रति हमारे समाज में अच्छी राय नहीं है। खेलों के प्रति हमारी मानसिकता कैसी है उसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। आप किसी के यहां जाएं और उसके बच्चे से पूछें कि बेटा/बेटी बड़ा होकर या बनना चाहते हो? उसका जवाब होगा कि वह डा टर, इंजीनियर, आईएएस, आईपीएस बनना चाहता है। इसी तरह यदि मेजबान मेहमान के बच्चे से पूछता है तो उस बच्चे का जवाब भी यही होता है कि वह इंजीनियर नहीं तो डा टर या आईएएस, आईपीएस बनना चाहता है। यह कोई एक-दो घर की बात नहीं है। हमारे देश में यह घर-घर की कहानी है। किसी घर में शायद ही कोई बच्चा कहे कि वह खिलाड़ी बनना चाहता है। सवाल उठता है कि बच्चों में ऐसी मानसिकता कहां से आ जाती है? जाहिर सी बात है कि यह संस्क

श्रम संस्कृति का अपमान है बिहारी को भिखारी कहना

भारतीय अस्मिता को खंडित करते हैं ऐसा कहने वाले गोवा के गृहमंत्री रवि नायक का कहना है कि वह पटना से पणजी सीधी रेल सेवा शुरू करने के खिलाफ हैं। इससे गोवा में भिखारियों की संख्या बढ़ जाएगी, योंकि यहां बिहार से भिखारी आने लगेंगे। गोवा के गृहमंत्री रवि नायक के बयान पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि बिहार के लोगों की भावना आहत करने वाले नायक बिना शर्त माफी मांगे। नीतीश ने कहा कि एक जिम्मेदार पद पर बैठे व्यि त द्वारा इस तरह का बयान दिया जाना उचित नहीं है। इस तरह की बातों की सभी को निंदा करनी चाहिए और मंत्री को अपना बयान वापस लेते हुए इसके लिए माफी मांगनी चाहिए। नीतीश ने कहा कि बिहारी भिखारी नहीं होते, हमने मेहनत और मेधा के बल पर हर जगह अपना झंडा गाड़ा है। नीतीश का कहना सौ फीसदी सही है कि बिहारी भिखारी नहीं होते। लेकिन जिसने इस आशय का बयान दिया है उसका तत्काल मानसिक चेकअप कराया जाना चाहिए। आश्चर्य होता है कि इतनी गंदी सोच लेकर लोग जिम्मेदार पदों पर कैसे बने रह जाते हैं? रवि नायक को यह इल्म होना चाहिए कि भारतीय अस्मिता रूपी हार क्षेत्रीय अस्मीताआें रूपी बहुरंगीय फूलों से बना है।

सरकार चेते तो और जल्दी छंट जाएगा अंधेरा

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों की मानें तो देश में परिवार नियोजन अपनाने वाले लोगों की संख्या में ९.४ फीसदी की वृद्धि हुई है। बढ़ती आबादी वाले इस देश के लिए इससे अच्छी खबर और या हो सकती है? बढ़ती महंगाई और घटती आय के कारण लोगों को छोटे परिवार के लिए सोचने को मजबूर किया होगा। लोगों में चेतना का एक बड़ा कारण शिक्षा के प्रसार का भी हो सकता है। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि शिक्षित और संपन्न राज्यों में परिवार नियोजन कार्यक्रम के प्रति लोगों के रुझान में कमी आई है। इसके विपरीत गरीबी और अधिक आबादी के भार तले दबे राज्यों में लोगों का रुझान परिवार नियोजन के प्रति अधिक है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष २००३-०४ में देश भर में कुल ४९२४८२४ लोगों ने नसबंदी या नलबंदी कराई। लेकिन वर्ष २००४-०५ में इसमें एक फीसदी की गिरावट आ आई और ये आंकड़े ४८९५१०३ पर आ गए। वर्ष २००५ में तो नसबंदी और नलबंदी अपनाने वालों में भारी कमी दर्ज की गई। ४.१ फीसदी की गिरावट के साथ ये आंकड़े ४६९२०३२ पर पहुंच गए। लेकिन वर्ष २००७ में नसबंदी और नलबंदी कराने वालों के आंकड़े में फिर वृद्धि दर्ज की गई। करीब ५० लाख

बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा

-------------------- कहावत है कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा। जम्मू-कश्मीर में कुछ सियासी लोगों की हरकतों की वजह से पाकिस्तान की बन आई है। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने पर पहले कश्मीर फिर जमीन वापस लेने के बाद जम्मू संभाग में हुए हिंसक आंदोलन। उसके बाद कश्मीर की आर्थिक नाकेबंदी के विरोध में कश्मीर के फल उत्पादकों का मुजफ्फराबाद मार्च और उस दौरान व उसके बाद हुई हिंसा को मु ा बनाकर पाकिस्तान इस मामले का अंतरराष्ट ्रीयकरण करने की फिराक में है। पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों की कार्रवाई को अनुचित बताया और कहा कि वहां हिंसा तुरंत बंद होनी चाहिए। कुरैशी के इस बयान पर भारत ने चेताया भी, लेकिन बुधवार को पाकिस्तान के विदेश विभाग के प्रव ता मोहम्मद सादिक ने मामले को अंतरराष्ट ्रीय समुदाय, खासकर संयु त राष्ट ्र, आर्गेनाइजेशन ऑफ इसलामिक कांफ्रेंस और मानवाधिकार संगठनों के पास ले जाने की धमकी दे दी। इस पर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रव ता नवतेज सरना ने कहा कि पाकिस्तान की तरफ से लगाए जा रहे आरोप निराधार हैं। सरना ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से जारी

सूर्यग्रहण : खगोलीय घटना या ग्रहों का फेर

बच्चों को स्कूल की साइंस की किताब में पढ़ाया जाता है कि सूर्यग्रहण एक खगोलीय घटना है। सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा के आ जाने से सूर्यग्रहण लगता है। इसी तरह चंद्रमा और पृथ्वी केबीच में सूर्य के आ जाने से चंद्रग्रहण लगता है। जाहिर सी बात है कि इसका कारण वैज्ञानिक है। यह तो है वैज्ञानिक नजरिया। लेकिन इसी बात को धार्मिक नजरिये से भी देखा जाता है। लोग सूर्य और चंद्रमा की उपासना करते हैं। धरती की भी करते हैं। इसके लिए उनकी अपनी आस्थाएं हैं। जाहिर है कि जहां आस्था होती है वहां तर्क नहीं किया जाता। तर्क करने वाला नास्तिक हो जाता है। सदियों से आस्था की दुकान इसी फलसफेपर चल रही है। इसी कारण जब सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण लगता है तो कुछ लोगों की आस्थाएं हावी हो जाती हैं। कहा जाता है कि इस बार सूर्यग्रहण तबाही लाने वाला है। विनाश करने वाला है। फला राशि वाले सावधान रहें। उनका भारी नुकसान होने वाला है। फिर उपाय भी बताया जाता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से इसकी मारक क्षमता कम हो जाएगी। कहने की जरूरत नहीं कि ज्योतिषियों की दुकान इसी भय पर टिकी है। यह लोग पहले भय दिखाते हैं फिर उसका समाधान। बदले में