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ये मैं हूं तुमने क्या जाना

कमजोर को सहेजना
गिरते को है उठाना
पिटते को है बचाना
घाव पर दवा लगाना
रोते को है हंसाना
दर्द के आंसू पोछना
रोटी बांट कर खाना
पसीने में मुस्कुराना
श्रम का मेहनताना
ताना नहीं है मारना
झूठ पर ही गुस्साना
सच के साथ है रहना
तबियत से शूफ़ियाना
न किसी को बरगलाना
तम को ही है भगाना
सच के दीप जलाना
न किसी पर मुस्कुराना
मिजाज है आशिकाना
संकट में भी न घबराना
भेष बदल कर न आना
खुद से ही होगा सामना
बीच में न टांग अड़ाना
आता है भिड़ भी जाना
ये मैं हूं तुमने क्या जाना
- ओमप्रकाश तिवारी

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कविता/सवाल

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