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कर्मचारियों को नींबू की तरह निचोडऩे जा रही मोदी सरकार

साल २०१४ के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी जन सभाओं में अकसर यह कहते थे कि मैं आपके सपनों को पूरा करूंगा। उन्हें सत्ता में आए तीन साल से अधिक हो गए हैं लेकिन उन्होंने देश के किस आदमी के कौन से सपने को पूरा किया है यह तो वही जानता होगा जिसके पूरे हुए होंगे। यह एक हकीकत है कि यह सराकर लगातार जनविरोधी नीतियों को लागू करती जा रही है। नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक ऐसे फैसले लिए हैं जिससे न केवल लाखों लोगों की नौकरी चली गई बल्कि कारोबार तक बंद हो गए हैं। नई नौकरियों का सृजन नहीं होने से रोजगार के अवसर भी कम हो गए हैं।
इसी बीच मोदी सरकार ने एक ऐसा कानून लाया है जो कर्मचारी और मजदूर विरोधी है। इस कानून के बाद कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को ही खत्म कर दिया गया है। यह ऐसा कानून है जिसके बाद कर्मचारियों और मजदूरों को एक तरह से बंधुआ बना दिया जाएगा। जिसके पास पैसा होगा वह लोगों ने से मनमाने तरीके से काम करा सकेगा। कारखानों से लेकर दफ्तरों तक और बंदरगाहों से लेकर रेल तक में भी काम के घंटे से लेकर दिहाड़ी मजदूरी तक काम कराने वाले तय करेगा। वह जब चाहे किसी को काम पर रखे और जब चाहे हटा दे। यही नहीं घंटे के हिसाब से भी लोगों पर काम पर रखा जाएगा। यदि किसी को दो घंटे काम कराना है तो वह दो घंटे के हिसाब से मजदूर या कर्मचारी रख सकता है। न तो कोई न्यूनतक मजदूरी तय होगी न ही दिहाड़ी।
दरअसल, इसी दस अगस्त को लोक सभा में द कोड ऑन वेज २०१७ बिल पेश किया है। इसके लागू होने के बाद मजदूरों और कर्मचारियों के हितों वाले कई सारे पुराने कानून बेकार हो जाएंगे। मसलन, द पेमेंट आफ वेज एक्ट, न्यूनतक मजदूरी कानून, द पेमेंट आफ बोनस एक्ट आदि। ऐसे कानूनों के निष्प्रभावी हो जाने के बाद मजदूरों और कर्मचारियों के हित में कुछ भी नहीं बचेगा। केंद्र सरकार यह सब उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए कर रही है। यों ही उद्योगपति भाजपा को अरबों रुपये चंदे के तौर पर नहीं दे रहे हैं। चंद के बदले केंद्र सरकार उन्हें यह सब सुविधाएं मुहैया करा रही है। कहां तो सपने आम आदमी का पूरा करने का वादा किया गया था और कहां पूरे किसी और का किया जा रहा है। दरअसल, पूंजीवादी व्यवस्था में चंदा देने वाला ही सरकार चलाता है। वोट देने वाला तो केवल देशभक्ति के गीत गाता है और सूखी रोटियों के लिए भी तरसता है।
नया कानून द कोड ऑन वेज २०१७ सभी कंपनियों के अलावा रेलवे, खानों, तेल क्षेत्र, प्रमुख बंदरगाहों, हवाई परिवहन सेवा, दूरसंचार, बैंकिंग और बीमा कंपनी, निगम और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, स्वायत्त निकायों, निजी ठेकेदारों पर लागू होगा। इस तरह भी नौकरीपेशा यानी कर्मचारी और मजदूर एक तरह से बंधुआ मजूदर की तरह हो जाएंगे।
नए कानून के मुताबिक अब परिश्रमिक घंटे के हिसारब से, दिन के हिसाब से और महीने के हिसाब से तय किया जा सकता है। यानी पैसे वाले पर निर्भर करेगा कि वह किसी को नौकरी पर रखे या दिहाड़ी पर। जिसके पास जितने दिन या जितने घंटे का काम होगा उसी हिसाब से श्रमिकों को काम दिया जाएगा। इस तरह से समाज में हमेशा बेरोजगारी की स्थिति बनी रहेगी। ऐसे में श्रमिकों के प्रति काम लेने वालों का कोई दायित्व भी नहीं बनेगा। पैसे देकर काम करा लेंगे। उसके बाद मरीज जिंदा रहे या बीमार होकर मर जाए उनकी बला से।
इसी तरह पे कमीशन आदि को भी खत्म कर दिया जाएगा। सरकार एक सहलाकार बोर्ड का गठन करेगी जो पारिश्रमिक तय करेगा। बोर्ड जो तय करेगा उसी को लागू कर दिया जाएगा। निजीकरण के दौर में सलाहकार बोर्ड किसके लिए काम करता है यह कोई छिपी हुई बात नहीं है। जाहिर है कि बोर्ड श्रमिकों यानी नौकरीपेशा लोगों के हित में कोई सलाह देगा इसकी उम्मीद कम ही रहेगी।
यही नहीं नए कानून के बाद बाल मजदूरी भी कराई जा सकेगी। इसके लिए किसी पर कोई जुर्माना या दंड नहीं लगेगा। कंपनी मालिक अपने कर्मचारी को दो दिन के नोटिस पर बाहर का रास्ता दिखा सकेगा।
तो न्यू इंडिया में मोदी सरकार देश की अधिसंख्य आबादी को यह तोहफा देने जा रही है। दरअसल न्यू इंडिया का मतलब ही है विपन्नता के समुद्र में सपन्नता के टापू बनाना।
- ओमप्रकाश तिवारी


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