सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं
पनामा पेपर्स : भारत के शरीफों से कब उतरेगा नकाब?

आजकल भ्रष्टाचार चर्चा में है। बिहार में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक गठबंधन टूटकर दूसरा बन गया। इसी के साथ भ्रष्टाचार पर सियासत में नैतिकता की नई परिभाषा भी लिखी गई। दूसरी ओर पड़ोसी देश पाकिस्तान में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की कुर्सी चली गई। शरीफ की कुर्सी पनामा पेपर्स की वजह से गई है। इसके बाद से भारत भी सवाल उठ रहा है कि यहां के शरीफों का नकाब कब उतरेगा? पूछा जा रहा है कि क्या भारत में भी पनामा पेपर्स में नाम आने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी?
भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही मुहिम में शामिल होने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस्तीफा देने के दस मिनट के अंदर ही बधाई देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मसले पर मनमोहन सिंह की तरह मौन हैं। न तो उनकी मन की बात सुनाई दे रही है न ही ट्विटर पर अंगुलिया चल रही हैं। आखिर ऐसा क्यों हैं कि करीब पांच सौ भारतीयों का नाम पनामा पेपर्स में आने के बाद भी हमारे देश में उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है? जबकि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री की कुर्सी चली गई?

इंटरनेशनल कन्सॉर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) नाम के एनजीओ ने पनामा पेपर्स के नाम से खुलासा किया था। इसमें दुनिया भर के लोगों के साथ भारत के भी करीब पांच सौ प्रभावशाली लोगों के नाम थे। इसमें नेता से लेकर अभिनेता और कारोबारी भी शामिल थे। हालांकि, अपना नाम आने के बाद इनमें से कई लोगों ने अपनी सफाई में कहा था कि इससे मेरा कोई लेनादेना नहीं है। लेकिन यह बात तो लालू यादव के पुत्र तेजस्वी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ भी कह रहे हैं। आश्चर्य होता है कि तेजस्वी यादव के मसले पर भ्रष्टाचार विरोधी ढोल पीटने वाले पनामा पेपर्स पर खामोश हैं।

गौरतलब है कि पनामा पेपर्स में करीब 500 भारतीयों का नाम आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इसकी जांच कराई जाएगी। उन्होंने 15 दिनों में जांच रिपोर्ट सौंपने के निर्देश भी दिए थे, लेकिन पिछले साल से अब तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं आई।
जानकारी के अुनवसार, पनामा जांच समिति के मामले में पिछले साल मल्टी एजेंसी इंवेस्टीगेशन (एमएआई) का गठन किया गया था, लेकिन एमएआई अभी तक कोई रिपेार्ट नहीं दे पाई है। आश्चर्य होता है कि चौबीस घंटे में एक मुख्यमंत्री से इस्तीफा दिलवाकर फिर उसकी शपथ दिलवाने वाले लोग भ्रष्टाचार के इस मामले में इतनी सुस्ती दिखा रहे हैं। एमएआई की कोई रिपोर्ट नहीं आने के बाद इसी साल जनवरी में वकील मनोहर लाल शर्मा ने पनामा जांच के खुलासे के लिए स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम की मांग की थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मल्टी एजेंसी इंवेस्टीगेशन (एमएआई) की ओर से सौंपी गईं सभी छह रिपोर्ट सौंपने को कहा था। लेकिन इसके बाद क्या हुआ कुछ पता नहीं चल रहा है।

पनामा ऐसा देश है जो उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका को जमीन के रास्ते से जोड़ता है। पनामा की एक कानूनी फर्म मोसेक फोंसेका के सर्वर को साल 2013 में हैक करने के बाद दुनिया भर के कुछ चुनिंदा पत्रकारों ने खुलासा किया था कि अपने देश का टैक्स बचाने के लिए लोग फर्जी कंपनियां बनाकर पैसे को ठिकाने लगाते हैं। मोसेक फोंसेका पैसे का मैनेजमेंट करती है। ऐसा बताया जाता है कि यह कंपनी लोगों का पैसा सुरक्षित रूप से ठिकाने लगाने का काम करती है। यह भी कहा जाता है कि यह कंपनी फर्जी कंपनी खोलकर उनके दस्तावेजों का हिसाब-किताब रखती है। 

दुनिया के 100 मीडिया ग्रुप्स के पत्रकारों ने एक करोड़ 10 लाख दस्तावेज का खुलासा किया था। बताया गया था कि 70 देशों के 370 संवाददाताओं ने करीब आठ माह तक दस्तावेजों की जांच की थी। इस बारे में आईसीआईजे ने कहा था कि हो सकता है कि कंपनी का काम पूरी तरह से गैरकानूनी न हो, लेकिन यह तय है कि इसके माध्यम से कई देशों के लोगों ने अपने पैसे को सुरक्षित किया है।

भारत में पांच सौ लोगों के नाम पनामा पेपर्स में आए थे। इन्होंने कितनी गड़बड़ी की है और कितने सही हैं यह तो जांच के बाद मालूम चलेगा। जिनके नाम आए थे वह इस तरह है। सदी के महानयक की उपाधि से मशहूर अभिनेता अमिताभ बच्चन, उनकी पुत्रवधु अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन। अभिनेता अजय देवगन। इंडियाबुल्स के समीर गहलोत, उद्योगपति गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी, अशोक गड़वारे, आदित्य गड़वारे और सुषमा गड़वारे, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह, पश्चिम बंगाल से नेता शिशिर बजोरिया, दिल्ली लोकसत्ता पार्टी के पूर्व नेता अनुराग केजरीवाल, दिवंगत इकबाल मिर्ची, अपोलो ग्रुप के चेयरमैन ओंकार कंवर, पूर्व आटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के पुत्र व बॉम्बे हॉस्पिटल में डॉक्टर जहांगीर एस सोराबजी, वकील और सॉलिसिटर जनरल रह चुके हरीष साल्वे, इंडो रामा सिंथेटिक्स के चेयरमैन मोहन लाल लोहिया, पूर्व विधायक अनिल वासुदेव सालगाउकर, सायरस पूनावाला के भाई जावेरे पूनावाला, डीएलएफ केपी सिंह, अमलगमेशंस ग्रुप के चेयरमैन की दिवंगत पत्नी इंदिरा सिवासेलम और उनकी बेटी मल्लिका श्रीनिवासन, मेहरासंस ज्वैलर्स अश्वनी कुमार मेहरा और परिवार के सदस्य, कॉटेज इंडस्ट्रीज एक्सपोजीशन (सीआईई) के फाउंडर व सीईओ अब्दुल राशिद मीर व उनकी पत्नी तबस्सुम। यही नहीं वरिष्ठ पत्रकार करण थापर का भी नाम सामने आया था।

नोट : आलेख विभिन्न मीडिया रिपोर्ट पर आधारित है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उपन्यासकार जगदीश चंद्र को समझने के लिए

हिंदी की आलोचना पर यह आरोप अकसर लगता है कि वह सही दिशा में नहीं है। लेखकों का सही मूल्यांकन नहीं किया जा रहा है। गुटबाजी से प्रेरित है। पत्रिकाआें के संपादकों की मठाधीशी चल रही है। वह जिस लेखक को चाहे रातों-रात सुपर स्टार बना देता है। इन आरोपों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। आलोचना का हाल तो यह है कि अकसर रचनाकर को खुद ही आलोचना का कर्म भी निभाना पड़ता है। मठाधीशी ऐसी है कि कई लेखक अनदेखे रह जाते हैं। उनके रचनाकर्म को अंधेरी सुरंग में डाल दिया जाता है। कई ऐसे लेखक चमकते सितारे बन जाते हैं जिनका रचनाकर्म कुछ खास नहीं होता। इन्हीं सब विवादों के बीच कुछ अच्छे काम भी हो जाते हैं। कुछ लोग हैं जो ऐसे रचनाकारों पर भी लिखते हैं जिन पर व त की धूल पड़ चुकी होती है। ऐसा ही सराहनीय काम किया है तरसेम गुजराल और विनोद शाही ने। इन आलोचक द्वव ने हिंदी साहित्य के अप्रितम उपन्यासकार जगदीश चंद्र के पूरे रचनाकर्म पर किताब संपादित की। जिसमें इन दोनों के अलावा भगवान सिंह, शिव कुमार मिश्र, रमेश कंुतल मेघ, प्रो. कुंवरपाल सिंह, सुधीश पचौरी, डा. चमन लाल, डा. रविकुमार अनु के सारगर्भित आलेख शामिल हैं। इनके अल

मधु कांकरिया को मिला कथाक्रम सम्मान-2008

मधु कांकरिया ने मारवाड़ी समाज से ताल्लुक रखते हुए भी उसके दुराग्रहों से बाहर निकलकर लेखन किया है। यह चीज उन्हें अन्य मारवाड़ी लेखिकाआें से अलग करती है। यह बात वरिष्ठ कथाकार और हंस के संपादक राजेंद्र यादव ने राय उमानाथ बली प्रेक्षाग्रह में पश्चिम बंगाल की लेखिका मधु कांकरिया को आनंद सागर स्मृति कथाक्रम सम्मान प्रदान करने के बाद कही। इस प्रतिष्ठापूर्ण सम्मान के साथ ही कथाक्रम-२००८ के दो दिवसीय आयोजन का आगाज हुआ। मधु को प्रख्यात आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी, वरिष्ठ कथाकार राजेंद्र यादव और कथाकार गिरिराज किशोर ने शॉल, स्मृति चिह्न और १५ हजार रुपये का चेक देकर पुरस्कृत किया। मधु कांकरिया खुले गगन के लाल सितारे, सलाम आखिरी, पत्ताखोर और सेज पर संस्कृति उपन्यासों के जरिये कथा साहित्य में पहचानी जाती हैं। इसके पहले कथाक्रम सम्मान संजीव, चंद्र किशोर जायसवाल, मैत्रेयी पुष्पा, कमलकांत त्रिपाठी, दूधनाथ सिंह, ओमप्रकाश वाल्मीकि, शिवमूर्ति, असगर वजाहत, भगवानदास मोरवाल और उदय प्रकाश को दिया जा चुका है। राजेंद्र यादव ने कहा, 'मारवाड़ी लेखिकाआें में महत्वपूर्ण नाम मन्नू भंडारी, प्रभा खेतान, अलका सरावगी औ

ख्वाजा, ओ मेरे पीर .......

शिवमूर्ति जी से मेरा पहला परिचय उनकी कहानी तिरिया चरित्तर के माध्यम से हुआ। जिस समय इस कहानी को पढ़ा उस समय साहित्य के क्षेत्र में मेरा प्रवेश हुआ ही था। इस कहानी ने मुझे झकझोर कर रख दिया। कई दिनों तक कहानी के चरित्र दिमाग में चलचित्र की तरह चलते रहे। अंदर से बेचैनी भरा सवाल उठता कि क्या ऐसे भी लोग होते हैं? गांव में मैंने ऐसे बहुत सारे चेहरे देखे थे। उनके बारे में तरह-तरह की बातें भी सुन रखी थी लेकिन वे चेहरे इतने क्रूर और भयावह होते हैं इसका एहसास और जानकारी पहली बार इस कहानी से मिली थी। कहानियों के प्रति लगाव मुझे स्कूल के दिनों से ही था। जहां तक मुझे याद पड़ता है स्कूल की हिंदी की किताब में छपी कोई भी कहानी मैं सबसे पहले पढ़ जाता था। किताब खरीदने के बाद मेरी निगाहें यदि उसमें कुछ खोजतीं थीं तो केवल कहानी। कविताएं भी आकर्षित करती थी लेकिन अधिकतर समझ में नहीं आती थीं इसलिए उन्हें पढ़ने में रुचि नहीं होती थी। यही हाल अब भी है। अब तो कहानियां भी आकर्षित नहीं करती। वजह चाहे जो भी लेकिन हाल फिलहाल में जो कहानियां लिखी जा रही हैं वे न तो पाठकों को रस देती हैं न ही ज्ञान। न ही बेचैन कर