ज्ञानपीठ की साहित्यिक पत्रिका में विभूति नारायण राय के विवादास्पद साक्षात्कार में लेखिकाओं के बारे में की गई टिप्पणी के बाद उठे तूफान को शांत करने के लिए बाजार से नया ज्ञानोदय की विवादित प्रतियां वापस ले ली गई हैं। इसके संपादक रवीन्द्र कालिया ने इस पूरे मामले के लिए हिंदी समाज से क्षमा मांगी है। ज्ञानपीठ के निर्देशक रवीन्द्र कालिया ने कहा कि बाजार में बची हुई नया ज्ञानोदय पत्रिका की प्रतियां वापस ले ली गई हैं और साक्षात्कार के हिस्से को हटाकर दो एक दिन में इसे फिर से प्रकाशित कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार समारोह के सिलसिले में गोवा प्रवास में होने के कारण वह अपने संपादकीय दायित्वों का निर्वहन नहीं कर सके, जिसके चलते पत्रिका में यह भूल चली गई।
कुछ पसंद नहीं आना मन का उदास हो जाना बेमतलब ही गुस्सा आना हां न कि भी बातें न करना हर पल आंखें बंद रखना रोशनी में आंखें मिचमिचना बिना पत्तों वाले पेड़ निहारना गिरते हुए पीले पत्तों को देखना भाव आएं फिर भी कुछ न लिखना अच्छी किताब को भी न पढ़ना किताब उठाना और रख देना उंगलियों से कुछ टाइप न करना उगते सूरज पर झुंझला पड़ना डूबते सूरज को हसरत से देखना चाहत अंधेरे को हमसफ़र बनाना खुद को तम में विलीन कर देना ये हमको हुआ क्या जरा बताना समझ में आये तो जरा समझना गीत कोई तुम ऐसा जो गाना शब्दों को सावन की तरह बरसाना बूंद बूंद से पूरा बदन भिगो देना हसरतों को इस कदर बहाना चलेगा नहीं यहां कोई बहाना #ओमप्रकाश तिवारी
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