ज्ञानपीठ की साहित्यिक पत्रिका में विभूति नारायण राय के विवादास्पद साक्षात्कार में लेखिकाओं के बारे में की गई टिप्पणी के बाद उठे तूफान को शांत करने के लिए बाजार से नया ज्ञानोदय की विवादित प्रतियां वापस ले ली गई हैं। इसके संपादक रवीन्द्र कालिया ने इस पूरे मामले के लिए हिंदी समाज से क्षमा मांगी है। ज्ञानपीठ के निर्देशक रवीन्द्र कालिया ने कहा कि बाजार में बची हुई नया ज्ञानोदय पत्रिका की प्रतियां वापस ले ली गई हैं और साक्षात्कार के हिस्से को हटाकर दो एक दिन में इसे फिर से प्रकाशित कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार समारोह के सिलसिले में गोवा प्रवास में होने के कारण वह अपने संपादकीय दायित्वों का निर्वहन नहीं कर सके, जिसके चलते पत्रिका में यह भूल चली गई।
हिंदी की आलोचना पर यह आरोप अकसर लगता है कि वह सही दिशा में नहीं है। लेखकों का सही मूल्यांकन नहीं किया जा रहा है। गुटबाजी से प्रेरित है। पत्रिकाआें के संपादकों की मठाधीशी चल रही है। वह जिस लेखक को चाहे रातों-रात सुपर स्टार बना देता है। इन आरोपों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। आलोचना का हाल तो यह है कि अकसर रचनाकर को खुद ही आलोचना का कर्म भी निभाना पड़ता है। मठाधीशी ऐसी है कि कई लेखक अनदेखे रह जाते हैं। उनके रचनाकर्म को अंधेरी सुरंग में डाल दिया जाता है। कई ऐसे लेखक चमकते सितारे बन जाते हैं जिनका रचनाकर्म कुछ खास नहीं होता। इन्हीं सब विवादों के बीच कुछ अच्छे काम भी हो जाते हैं। कुछ लोग हैं जो ऐसे रचनाकारों पर भी लिखते हैं जिन पर व त की धूल पड़ चुकी होती है। ऐसा ही सराहनीय काम किया है तरसेम गुजराल और विनोद शाही ने। इन आलोचक द्वव ने हिंदी साहित्य के अप्रितम उपन्यासकार जगदीश चंद्र के पूरे रचनाकर्म पर किताब संपादित की। जिसमें इन दोनों के अलावा भगवान सिंह, शिव कुमार मिश्र, रमेश कंुतल मेघ, प्रो. कुंवरपाल सिंह, सुधीश पचौरी, डा. चमन लाल, डा. रविकुमार अनु के सारगर्भित आलेख शामिल हैं। इनके अल
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