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फ्रांस में जो हो रहा है उसके ऐतिहासिक सबक


क्या आप जानते हैं कि फ्रांस में आजकल क्या हो रहा है? जो हो रहा है उसका मतलब क्या है? उसका सबक क्या है? किस ओर इशारा कर रहा है? जो लोग सड़क पर उतर कर विरोध कर रहे हैं क्या उन्हें ऐसा करना चाहिए? क्या वह गलत हैं? क्या उनके प्रदर्शन से इतिहास की किसी घटना की याद आती है? क्या इससे पूरे विश्व के लोगों और शासकों को कोई संदेश जाता है? इतने सारे सवालों का जवाब जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि इतिहास अपने आपको तभी दोहराता है जब शासक उसे जीने लगता है। किसी ने दुरुस्त फरफ़ाय है कि इतिहास जीने के लिए नहीं होता है। लेकिन शासक अक्सर इससे सबक नहीं लेते। यह भी कह सकते हैं कि उनका अल्प ज्ञान उन्हें न अतीत से कुछ सीखने देते है न ही भविष्य को लेकर दूरदर्शी होने देता है। ऐसे शासकों को अधिकतर समय क्षुद्रताओं में ही व्यतीत हो जाता है। 
बहरहाल, यह जानना जरूरी है कि फ्रांस में हो क्या रहा है। हो यह रहा है कि फ्रांस में पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतों और महंगाई को लेकर जन आंदोलन चल रहा है, जोकि 2 दिसंबर से हिंसक रूप ले चुका है। राजधानी पेरिस में सड़कों पर उतरे युवा वाहनों और सरकारी इमारतों में तोड़फोड़ और आगजनी की। इस पर लगाम के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों आपातकाल लगाने पर विचार कर रहे हैं। 
पिछले दो हफ्ते से पेरिस में महंगाई और सरकार के कर बढ़ाने के विरोध में चल रहे प्रदर्शनों के उग्र होने से 133 लोग घायल हो गए हैं, जिसमें 23 सुरक्षाकर्मी भी शामिल हैं। अब तक 300 से अधिक प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। मैक्रों ने रविवार को दंगा प्रभावित इलाके का दौरा भी किया। 
सरकार के प्रवक्ता बेंजामिन ग्रीवोक्स ने मीडिया से कहा है कि राज्य में शांति बहाली के लिए और प्रदर्शनकारियों से बातचीत के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। जब ग्रीवोक्स से आपातकाल लागू करने को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सरकार के पास यह भी एक विकल्प है। 
दरअसल, फ्रांस में कारों में इस्तेमाल होने वाला डीजल सबसे प्रमुख ईंधन है। पिछले 12 महीनों में डीजल की कीमत में 23 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। फ्रांस में डीजल की कीमत 1.7 डॉलर यानी 116.86 रुपये प्रति लीटर है जो कि 2000 के दशक के बाद से सबसे ज्यादा है। मैक्रों सरकार ने इस साल प्रति लीटर डीजल पर 7.6 फीसदी हाइड्रोकार्बन टैक्स लगा दिया था। इसी के विरोध में वहां की जनता विरोध कर रही है। लेकिन सरकार उनकी नहीं सुन रही है। ऐसे में प्रदर्शन हिंसक होता जा रहा है। सरकार शायद यही चाहती भी है। ताकि वह आंदोलन को कुचल सके। ऐसे हालात तभी बनते हैं जब सरकार का सरोकार जनता के प्रति खत्म हो जाता है और वह धनपतियों के लिए जीने मरने लगती है। 
सवाल यह है कि इस आंदोलन का इतिहास से क्या लेनादेना है? जवाब के लिए आइए इतिहास को जानते हैं। फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र था जो राजत्व के दैवी सिद्धान्त पर आधारित था। इसमें राजा को असीमित अधिकार प्राप्त थे और वह स्वेच्छाचारी था। लुई 14वें के शासनकाल में (1643-1715) निरंकुशता अपनी पराकाष्ठा पर थी। उसने कहा- मैं ही राज्य हूं। वह अपनी इच्छानुसार कानून बनाता था। उसने शक्ति का अत्यधिक केन्द्रीयकरण राजतंत्र के पक्ष में कर दिया। कूटनीति और सैन्य कौशल से फ्रांस का विस्तार किया। इस तरह उसने राजतंत्र को गंभीर पेशा बनाया।
 लुई 14वें ने जिस शासन व्यवस्था का केन्द्रीकरण किया था उसने योग्य राजा का होना आवश्यक था किन्तु उसके उत्तराधिकारी लुई १५वां एवं लूई १६वाँ पूर्णतः अयोग्य थे। लुई 15वां (1715-1774) अत्यंत विलासी, अदूरदर्शी और निष्क्रिय शासक था। आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध एवं सप्तवर्षीय युद्ध में भाग लेकर देश की आर्थिक स्थिति को भारी क्षति पहुँचाई। इसके बावजूद भी वर्साय का महल विलासिता का केन्द्र बना रहा। उसने कहा कि मेरे बाद प्रलय होगी। 
क्रांति की पूर्व संध्या पर लुई 16वें (1774 - 93) का शासक था। वह एक अकर्मण्य और अयोग्य शासक था। उसने भी स्वेच्छाचारित और निरंकुशता का प्रदर्शन किया। उसने कहा कि यह चीज इसलिए कानूनी है कि यह मैं चाहता हूं। अपने एक मंत्री के त्यागपत्र के समय उसने कहा कि-काश! मैं भी त्यागपत्र दे पाता। उसकी पत्नी मेरी एन्टोनिएट का उस पर अत्यधिक प्रभाव था। वह फिजूलखर्ची करती थी। उसे आम आदमी की परेशानियों की कोई समझ नहीं थी। एक बार जब लोगों का जुलूस रोटी की मांग कर रहा था तो उसने सलाह दी कि यदि रोटी उपलब्ध नहीं है तो लोग केक क्यों नहीं खाते।
इस तरह देश की शासन पद्धति पूरी तरह नौकरशाही पर निर्भर थी। जो वंशानुगत थी। उनकी भर्ती तथा प्रशिक्षण के कोई नियम नहीं थे और इन नौकरशाहों पर भी नियंत्रण लगाने वाली संस्था मौजूद नहीं थी। इस तरह शासन प्रणाली पूरी तरह भ्रष्ट, निरंकुश, निष्क्रिय और शोषणकारी थी। व्यक्तिगत कानून और राजा की इच्छा का ही कानून लागू होता था। फलतः देश में एक समान कानून संहिता का अभाव तथा विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कानूनों का प्रचलन था। इस अव्यवस्थित और जटिल कानून के कारण जनता को अपने ही कानून का ज्ञान नहीं था। इस अव्यवस्थित निरंकुश तथा संवेदनशील शासन तंत्र का अस्तित्व जनता के लिए कष्टदायी बन गया। इन उत्पीड़क राजनीतिक परिस्थितियों ने क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया। फ्रांस की अराजकपूर्ण स्थिति के बारें में यू कहा जा सकता है कि बुरी व्यवस्था का तो कोई प्रश्न नहीं, कोई व्यवस्था ही नहीं थी।
 ऐसे हालात के विरोध में फ्रांसीसी क्रांति हुई। जिसका असर पूरी दुनिया पर हुआ। 
साल 1789-1799  फ्रांस के इतिहास की राजनैतिक और सामाजिक उथल-पुथल एवं आमूल परिवर्तन की अवधि थी। बाद में, नेपोलियन बोनापार्ट ने फ्रांसीसी साम्राज्य के विस्तार द्वारा कुछ अंश तक इस क्रांति को आगे बढ़ाया। क्रांति के फलस्वरूप राजा को गद्दी से हटा दिया गया, एक गणतंत्र की स्थापना हुई। खूनी संघर्षों का दौर चला, और अन्ततः नेपोलियन की तानाशाही स्थापित हुई जिससे इस क्रांति के  कई मूल्यों पश्चिम यूरोप में तथा उसके बाहर प्रसार हुआ। इस क्रान्ति ने आधुनिक इतिहास की दिशा बदल दी। इससे विश्व भर में निरपेक्ष राजतन्त्र का ह्रास होना शुरू हुआ, नये गणतन्त्र और उदार प्रजातन्त्र बने।
आधुनिक युग में जिन महापरिवर्तनों ने पाश्चात्य सभ्यता को हिला दिया उसमें फ्रांस की राज्यक्रांति सर्वाधिक नाटकीय और जटिल साबित हुई। इस क्रांति ने केवल फ्रांस को ही नहीं अपितु समस्त यूरोप के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। फ्रांसीसी क्रांति को पूरे विश्व के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है। इस क्रान्ति ने अन्य यूरोपीय देशों में भी स्वतन्त्रता की ललक कायम की और अन्य देश भी राजशाही से मुक्ति के लिए संघर्ष करने लगे। इसने यूरोपीय राष्ट्रों सहित एशियाई देशों में राजशाही और निरंकुशता के खिलाफ वातावरण तैयार किया। 
आज समूची दुनिया में यही उदार और कल्याणकारी लोकतंत्र खतरे में है। पूरी दुनिया में अमीरों और गरीबों के बीच खाईं चौड़ी होती जा रही है। धार्मिक कट्टरता बढ़ती जा रही है। इसी के साथ अंध राष्ट्रवाद भी बढ़ता जा रहा है। रूढ़िवादी और चरमपंथी शक्तियां या तो सत्ता में गेन या उन्हें प्रभावित करने की स्थिति में हैं। ऐसे में लोकतंत्र खतरे में है। फ्रांस के ताजा जन आंदोलन इसी लोकतंत्र को बचाने और उदार बनाने के लिए है। इतिहास बताता है कि फ्रांस के लोग क्रांतिकारी होते हैं और उनकी क्रांति से न केवल व्यवस्था बदलती है बल्कि समूचा विश्व प्रभावित होता है और बदलता है। 


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