
हालात ने सिद्ध कर दिया कि बाजार की भूख को शांत करने लिए पंूजी चाहिए। बाजार की कोई सीमा नहीं, लेकिन पंूजी की है। यहीं से मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा हो जाता है। ऐसा होते ही बाजार खूंखार हो जाता है। वह ऐसी सांस लेता है कि धरती का विवेकशील प्राणी मनुष्य उसके उदर में समा जाता है। ऐसे हालात इसलिए आते हैं कि मनुष्य अपना विवेक ताक पर रखकर विकास की गति पर सवार हो जाता है। इसी को कहते हैं शेर की सवारी। जब तक आप शेर के ऊपर बैठे हैं तब तक तो ठीक, लेकिन नीचे गिरते ही शेर आपको निगल जाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि दुनिया को अपने चाबुक से चलाने वाले इससे कुछ सबक सीखेंगे।
सबक उन्हें भी सीखने की जरूरत है जो वैश्वीकरण का अंधानुकरण कर रहे हैं। पहले किसी देश की मंदी का असर अन्य देशों पर कम ही होता था, लेकिन आज धरतीकरण के जमाने में अमेरिकी कंपनी दिवालिया होती है तो भारतीय शेयर बाजार को बुखार आ जाता है। पंूजी का स्वाभाविक चरित्र चंचल है। जब उसे बाजार का साथ मिल जाता है तो वह अपना चरित्र दिखाने लगती है। पंूजी के कारण दुनिया एक गांव में बदल गई है। यही कारण है कि चंचला पूंजी इस गांव से उस गांव घूमती रहती है। जिस गांव में इसका आगमन होता है वहां तो बहार आ जाती है लेकिन जिस गांव से यह अपना बसेरा समेटती है वह जार-जार रोता है। पंूजी और बाजार पर आदमी की निर्भरता उसे ऐसे ही रुलाती रहेगी। यह कंगले को अरबपति बनाती है तो अरबपति को कंगला भी बना देती है।
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