सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नैतिकता भी कोई चीज होती है पाटिल साहब





केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल पर इस्तीफा देने का दबाव चारों तरफ से है। लेकिन उनका कहना है कि वह इस्तीफा नहीं देंगे। उन्हें पार्टी हाईकमान का पूरा समर्थन है। कांग्रेस ने भी कह दिया है कि वह इस्तीफा नहीं देंगे। लेकिन यदि पाटिल साहब में जरा भी विवेक है तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे ही देना चाहिए। ऐसा करके वह देश का भला तो करेंगे ही अपनी पार्टी कांग्रेस और सोनिया गांधी पर भी उपकार करेंगे। बेशक पाटिल साहब को अपनी चिंता न हो लेकिन देश और सोनिया गांधी का ख्याल करते हुए उन्हें त्यागपत्र दे ही देना चाहिए।
हालांकि उनके इस्तीफे से कुछ नहीं होने वाला है। कांग्रेस का कार्यकाल खत्म होने वाला है। अगला लोकसभा चुनाव नजदीक है। ऐसे में वह अब तक यदि त्यागपत्र दे दिए होते तो कहा जाता कि सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए उन्होंने ऐसा किया। लेकिन अब जबकि चारों तरफ से उनके इस्तीफे की मांग उठ रही है तो उन्हें विचार जरूर करना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि गृह मंत्री के रूप में वह नाकामयाब रहे हैं। उनकी असफलता इतनी बड़ी है कि उसकी भरभाई इस्तीफे से नहीं होने वाली है। लेकिन नैतिकता भी कोई चीज होती है पाटिल साहब।





टिप्पणियाँ

रंजन राजन ने कहा…
नेताआें को गिरगिट की तरह रंग बदलते सुना था, लेकिन एक ऐसा नेता जिसमें पार्टी आलाकमान के प्रति वफादारी के अलावा और कोई भी रंग न हो, हर तरह के मसलों से बेपरवाह कपड़े बदलने में जुटा हुआ है। ऐसे में यह शक होने लगता है कि कहीं मंत्री के कपड़े भी धमाकों के खून से सने तो नहीं थे। इस पर यकीन करने को जी तो नहीं करता, लेकिन इतना तो तय है कि देश को खून के और धब्बों से बचाने के लिए ऐसे गृहमंत्री को तुरंत बेशर्मी त्याग कर जिम्मेदारी किसी जिम्मेदार व्यिक्त के हवाले कर देनी चाहिए।
कुन्नू सिंह ने कहा…
ईनके कार्य काल मे बहुत बार धमाके हूवें और ये कूछ ना कर सके। सिर्फ दिलासा दे कर नीकल जाते की हम मजबूत होंगे। फिर धमाका होता फीर वही भाषण दे देते थे।
और जब सब कह रहे हैं तो कूछ तो सोचना चाहीये

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता/सवाल

कुछ पसंद नहीं आना मन का उदास हो जाना बेमतलब ही गुस्सा आना हां न कि भी बातें न करना हर पल आंखें बंद रखना रोशनी में आंखें मिचमिचना बिना पत्तों वाले पेड़ निहारना गिरते हुए पीले पत्तों को देखना भाव आएं फिर भी कुछ न लिखना अच्छी किताब को भी न पढ़ना किताब उठाना और रख देना उंगलियों से कुछ टाइप न करना उगते सूरज पर झुंझला पड़ना डूबते सूरज को हसरत से देखना चाहत अंधेरे को हमसफ़र बनाना खुद को तम में विलीन कर देना ये हमको हुआ क्या जरा बताना समझ में आये तो जरा समझना गीत कोई तुम ऐसा जो गाना शब्दों को सावन की तरह बरसाना बूंद बूंद से पूरा बदन भिगो देना हसरतों को इस कदर बहाना चलेगा नहीं यहां कोई बहाना #ओमप्रकाश तिवारी

रवींद्र कालिया और ममता कालिया को जनवाणी सम्मान

इटावा हिंदी निधि न्यास की ओर से आठ नवंबर को सोलहवें वार्षिक समारोह में मशहूर साहित्यकार रवींद्र कालिया और ममता कालिया को जनवाणी सम्मान दिया जाएगा। न्यास इस समारोह में रंगकर्मी एमके रैना (श्रीनगर), आईएएस अधिकारी मुकेश मेश्राम (लखनऊ), जुगल किशोर जैथलिया (कोलकाता), डॉ. सुनीता जैन (दिल्ली), विनोद कुमार मिश्र (साहिबाबाद), शैलेंद्र दीक्षित (इटावा), डॉ. पदम सिंह यादव (मैनपुरी), पं. सत्यनारायण तिवारी (औरैया), डॉ. प्रकाश द्विवेदी (अंबेडकर नगर), मो. हसीन 'नादान इटावी` (इटावा) के अलावा इलाहाबाद के पूर्व उत्तर प्रदेश महाधिव ता वीरेंद्र कुमार सिंह चौधरी, पत्रकार सुधांशु उपाध्याय और चिकित्सक डॉ. कृष्णा मुखर्जी को सारस्वत सम्मान देगी।

ख्वाजा, ओ मेरे पीर .......

शिवमूर्ति जी से मेरा पहला परिचय उनकी कहानी तिरिया चरित्तर के माध्यम से हुआ। जिस समय इस कहानी को पढ़ा उस समय साहित्य के क्षेत्र में मेरा प्रवेश हुआ ही था। इस कहानी ने मुझे झकझोर कर रख दिया। कई दिनों तक कहानी के चरित्र दिमाग में चलचित्र की तरह चलते रहे। अंदर से बेचैनी भरा सवाल उठता कि क्या ऐसे भी लोग होते हैं? गांव में मैंने ऐसे बहुत सारे चेहरे देखे थे। उनके बारे में तरह-तरह की बातें भी सुन रखी थी लेकिन वे चेहरे इतने क्रूर और भयावह होते हैं इसका एहसास और जानकारी पहली बार इस कहानी से मिली थी। कहानियों के प्रति लगाव मुझे स्कूल के दिनों से ही था। जहां तक मुझे याद पड़ता है स्कूल की हिंदी की किताब में छपी कोई भी कहानी मैं सबसे पहले पढ़ जाता था। किताब खरीदने के बाद मेरी निगाहें यदि उसमें कुछ खोजतीं थीं तो केवल कहानी। कविताएं भी आकर्षित करती थी लेकिन अधिकतर समझ में नहीं आती थीं इसलिए उन्हें पढ़ने में रुचि नहीं होती थी। यही हाल अब भी है। अब तो कहानियां भी आकर्षित नहीं करती। वजह चाहे जो भी लेकिन हाल फिलहाल में जो कहानियां लिखी जा रही हैं वे न तो पाठकों को रस देती हैं न ही ज्ञान। न ही बेचैन कर...