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जून, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

करोड़पतियों की संख्या में 22.6 फीसदी की बढ़ोतरी

प्रमुख निवेश बैंकिंग कंपनी मेरिल लिंच और कंसलटेंसी कंपनी कैपजेमिनी की ओर से जारी वर्ल्ड प्रॉपर्टी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2007 के दौरान भारत में करोड़पतियों की संख्या में 22.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, जो दुनिया में किसी भी देश के मुकाबले बहुत ज्यादा है। यह कितनी बढिया बात है कि देश में करॊडपति बढ रहे हैं लेकिन तेजी से बढ रहे गरीबॊं के बारे में क़या कहा जाए। उनकी संखया क़यॊं नहीं कम हॊ रही है। यही नहीं देश में अमीर और गरीब की खाइ भी तेजी से बढ रही है। मेरिल लिंच की पिछले साल की रिपोर्ट में भारत 20.5 फीसदी के डिवेलपमेंट रेट के साथ दूसरे नंबर पर था, जबकि सिंगापुर 21.2 फीसदी के साथ पहले नंबर पर था। भारत में अमीरों की संख्या साल 2007 में बढ़कर 23,000 हो गई है, जबकि इसके पिछले साल इनकी संख्या 15,000 थी। भारत के करोड़पतियों की संख्या बढ़ने की दर के लिहाज से चीन दूसरे नंबर पर है, जिसका डिवेलपमेंट रेट 20.3 फीसदी रहा। अब दुनिया भर के वैसे लोगों की संख्या बढ़कर 1.01 करोड़ हो गई है जो कम से कम 10 लाख डॉलर का निवेश कर सकते हैं। बेहद अमीर लोगों की संख्या में 8.8 फीसदी बढ़ गई है। मेरिल लिंच और कैपजेमिनी

कैसे करें क्राइम रिपोर्टिंग

मीडिया की विश्वसनीयता को बचाएं विकास के साथ हमें विसंगतियां भी मिल रही हैं। एक तरफ हमारे समाज में सम्पन्नता बढ़ रही है दूसरी ओर गरीबी और असमानता भी बढ़ रही है। ऐसे में समाज में अपराधों का होना लाजिमी है। मीडिया में इन्हीं अपराधों को भुनाने के लिए हाे़ड लगी रहती है। सबसे पहले के च कर में कुछ का कुछ प्रसारित कर दिया जाता है। जिससे केवल और केवल सनसनी फैलती है। इससे टीवी चैनलों का चाहे भला हो जाए लेकिन समाज का भला तो कतई नहीं होता। यही हाल प्रिंट मीडिया का भी है। आम आदमी प्रिंट मीडिया से उम्मीद करता है कि उसमें टीवी चैनलों से कुछ अलग होगा। लेकिन अपराध की खबरें यहां भी पुलिस के बयान पर आधरित होती हैं। जिनको छापने का कोई मतलब नहीं होता। टीवी चैनलों के रिपोर्टर यदि जल्दी दिखाने के च कर में खबर की तह तक नहीं जाते तो प्रिंट मीडिया के संवाददाता मेहनत से बचते हैं। किसी मामले में पुलिस जो कहा उसे ही छाप दिया जाता है। ऐसी खबरों में देखा गया है कि संवाददाता पुलिस अधिकारी से केस से संबंधित सवाल तक नहीं करते। ऐसा इसलिए होता है कि योंकि वह मान चुकेहोते हैं कि पुलिस जो कह रही है वही सही है। जबकि अधिकतर

देख तेरे संसार की हालत kaya हो गई.....

अमेरिका की छवि हमारे सामने एक धनी देश की है। हम यह मानते हैं कि वहां गरीबी नहीं है। यही कारण है कि हमारे देश के अधिकतर लोग अमेरिका जाना चाहते हैं। वहां काम करके वहीं बस जाना चाहते हैं। आज के उदारीकरण की आंधी में हमारे लिए ही नहीं दुनिया के अन्य विकासशील देशों के लोगों के लिए अमेरिका एक आदर्श देश हो गया है। लेकिन खुद अमेरिका के या हालात है उसे इस खबर से समझा जा सकता है। इसे पढ़कर तो यही कहा जा सकता है -- देख तेरे संसार की हालत kaya हो गई ..... अमेरिका में भूखों की भीड़ बढ़ी मुफ्त भोजन लेने वालों की संख्या में १५ से २० प्रतिशत तक का इजाफा अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण निम्न आय वर्ग के लोगों की पहंुच से बाहर हो गया है भोजन मोरोए। धरती पर सर्वाधिक समद्ध राष्ट्र अमरीका में मुफ्त खाना प्राप्त करने वाले भूखे लोगों की भीड़ बढ़ रही है योंकि ये बढ़ती महंगाई के कारण अपने लिए पर्याप्त भोजन नहीं जुटा पा रहे हैं। देश के सबसे बड़े

तेल का खेल

सिन्धु झा ऊर्जा सुरक्षा के नाम पर अभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल का खेल जारी रहेगा। तेल की कीमतें बढ़ने के लिए अमेरिका की खाड़ी राजनीति तो जिम्मेवार है साथ ही तेल को एक हथियार के रूप में भी अमेरिका इस्तेमाल कर रहा है। पश्चिमी देश भारत और चीन जैसे विकासशील देशों के खिलाफ इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, ताकि दोनों देश विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़कर चुनौती न दे सकें। जानकारों का कहना है कि विश्व स्तर पर मौजूदा मूल्य वृद्धि भारत और चीन पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। भारत सालाना १२_कराे़ड टन कच्चे तेल का आयात करता है। लगभग इतना ही चीन भी आयात कर रहा है। इस समय अमेरिकी, ब्रिटिश, फ्रेंच, जर्मन और रूसी कंपनियों का सिंडीकेट कच्चे तेल की कीमतों को तय करते हैं। न्यूयॉर्क_कमोडिटी_ए सचेंज (निमे स)_में कच्चे तेल का वायदा कारोबार होता है, जिसका लाभ बिचौलिये उठाते हैं। सिंडीकेट बाजार में तेल की कमी दिखाने के लिए कम माल खरीदते हैं और उसे ऊंची कीमत में बेचते हैं। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा_ने बताया कि तेल के कारोबार में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रही सट्टेबाजी की वजह से कीमतें बढ

राशन की तरह रसोई गैस-डीजल दे सरकार

केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार ने पेट्राल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में क्रमश: ५, ३ और ५० रुपये की बढ़ोतरी कर दी है। सरकार ने यह मूल्य वृद्धि इसलिए की है, योंकि अंतरराष्ट ्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत १३१ डालर प्रति बैरल तक पहंुच गई है। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में सार्वजनिक तेल कंपनियों को जबरदस्त घाटा उठाना पड़ रहा था। सरकार भी असमंजस में थी। एक तरफ कंपनियों का घाटा था, तो दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव। मूल्य वृद्धि का मतलब है कि महंगाई और बढ़ेगी, जोकि पहले से ही आसमान छू रही है। ऐसे में कांग्रेस का हाल लोकसभा चुनाव में कर्नाटक जैसा ही होगा। फिर भी सरकार ने यह कठोर फैसला लिया है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश को समझाने के लिए राष्ट ्र को संबोधित भी किया। उनका कहना है कि फैसला सुनहरे भविष्य के लिए लिया गया है। यह देश हित में है। बहरहाल, सरकार का तर्क अपनी जगह है और विरोधियों का अपनी जगह। जनता की नाराजगी भी अपनी जगह है। लेकिन एक तरह से सरकार गलत नहीं है। आखिर वह कब तक तेल पर सब्सिडी देती रहेगी? पेट्रोल में पांच रुपये बढ़ जाने से कोई कार या मोटरसाइकिल चलाना नहीं छाे़ड देगा। वैसे भी लोग गै