केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार ने पेट्राल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में क्रमश: ५, ३ और ५० रुपये की बढ़ोतरी कर दी है। सरकार ने यह मूल्य वृद्धि इसलिए की है, योंकि अंतरराष्ट ्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत १३१ डालर प्रति बैरल तक पहंुच गई है। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में सार्वजनिक तेल कंपनियों को जबरदस्त घाटा उठाना पड़ रहा था। सरकार भी असमंजस में थी। एक तरफ कंपनियों का घाटा था, तो दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव। मूल्य वृद्धि का मतलब है कि महंगाई और बढ़ेगी, जोकि पहले से ही आसमान छू रही है। ऐसे में कांग्रेस का हाल लोकसभा चुनाव में कर्नाटक जैसा ही होगा। फिर भी सरकार ने यह कठोर फैसला लिया है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश को समझाने के लिए राष्ट ्र को संबोधित भी किया। उनका कहना है कि फैसला सुनहरे भविष्य के लिए लिया गया है। यह देश हित में है।
बहरहाल, सरकार का तर्क अपनी जगह है और विरोधियों का अपनी जगह। जनता की नाराजगी भी अपनी जगह है। लेकिन एक तरह से सरकार गलत नहीं है। आखिर वह कब तक तेल पर सब्सिडी देती रहेगी? पेट्रोल में पांच रुपये बढ़ जाने से कोई कार या मोटरसाइकिल चलाना नहीं छाे़ड देगा। वैसे भी लोग गैरजरूरी कामों के लिए भी इनका इस्तेमाल करते हैं। अब जहां जरूरी हो वहीं उपयोग करें। ऐसे ही रसोई गैस की बात है। महीने में पचास रुपये अतिरि त देने से किसी के बजट में खास फर्क नहींं पड़ेगा। हां, हाय-हाय करने को कोई कितना कर ले। रही बात डीजल की तो उसका दूरगामी असर पड़ सकता है। वह भी इस कारण की कई कार कंपनियों ने अपनी कार डीजल चालित बना दी हैं।
दरअसल, अब समय आ गया है कि इस संबंध में सरकार को स्पष्ट नीति बना लेना चाहिए। जो इस तरह हो सकती है।
१- सरकार को डीजल से चलने वाली कारों पर तत्काल रोक लगा देनी चाहिए।
२- रसोई गैस के लिए राशनिंग सिस्टम बना देना चाहिए। जिस तरह से सरकार गरीबों के लिए राशन देती है उसी तरह गरीबों को रसाई गैस भी उपलब्ध कराये। बाकी को बाजार के हवाले कर देना चाहिए।
३- पेट्रोल पर भी यही व्यवस्था लागू कर सकती है।
४- पेट्रो पदार्थों की मूल्य वृद्धि अंतरराष्ट ्रीय कीमतों के आधार पर कर देना चाहिए। यानी जब कीमतें बढ़ें तो सरकार को भी मूल्य बढ़ा देना चाहिए।
बहरहाल, सरकार का तर्क अपनी जगह है और विरोधियों का अपनी जगह। जनता की नाराजगी भी अपनी जगह है। लेकिन एक तरह से सरकार गलत नहीं है। आखिर वह कब तक तेल पर सब्सिडी देती रहेगी? पेट्रोल में पांच रुपये बढ़ जाने से कोई कार या मोटरसाइकिल चलाना नहीं छाे़ड देगा। वैसे भी लोग गैरजरूरी कामों के लिए भी इनका इस्तेमाल करते हैं। अब जहां जरूरी हो वहीं उपयोग करें। ऐसे ही रसोई गैस की बात है। महीने में पचास रुपये अतिरि त देने से किसी के बजट में खास फर्क नहींं पड़ेगा। हां, हाय-हाय करने को कोई कितना कर ले। रही बात डीजल की तो उसका दूरगामी असर पड़ सकता है। वह भी इस कारण की कई कार कंपनियों ने अपनी कार डीजल चालित बना दी हैं।
दरअसल, अब समय आ गया है कि इस संबंध में सरकार को स्पष्ट नीति बना लेना चाहिए। जो इस तरह हो सकती है।
१- सरकार को डीजल से चलने वाली कारों पर तत्काल रोक लगा देनी चाहिए।
२- रसोई गैस के लिए राशनिंग सिस्टम बना देना चाहिए। जिस तरह से सरकार गरीबों के लिए राशन देती है उसी तरह गरीबों को रसाई गैस भी उपलब्ध कराये। बाकी को बाजार के हवाले कर देना चाहिए।
३- पेट्रोल पर भी यही व्यवस्था लागू कर सकती है।
४- पेट्रो पदार्थों की मूल्य वृद्धि अंतरराष्ट ्रीय कीमतों के आधार पर कर देना चाहिए। यानी जब कीमतें बढ़ें तो सरकार को भी मूल्य बढ़ा देना चाहिए।
टिप्पणियाँ
कंहा देती हैं?
क्या देती हैं.?
किसको देती है?
आपने कहा है-
गरीबो के लिए.
गरीबों को नहीं.
क्यों?