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जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
पनामा पेपर्स : भारत के शरीफों से कब उतरेगा नकाब? आजकल भ्रष्टाचार चर्चा में है। बिहार में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक गठबंधन टूटकर दूसरा बन गया। इसी के साथ भ्रष्टाचार पर सियासत में नैतिकता की नई परिभाषा भी लिखी गई। दूसरी ओर पड़ोसी देश पाकिस्तान में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की कुर्सी चली गई। शरीफ की कुर्सी पनामा पेपर्स की वजह से गई है। इसके बाद से भारत भी सवाल उठ रहा है कि यहां के शरीफों का नकाब कब उतरेगा? पूछा जा रहा है कि क्या भारत में भी पनामा पेपर्स में नाम आने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी? भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही मुहिम में शामिल होने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस्तीफा देने के दस मिनट के अंदर ही बधाई देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मसले पर मनमोहन सिंह की तरह मौन हैं। न तो उनकी मन की बात सुनाई दे रही है न ही ट्विटर पर अंगुलिया चल रही हैं। आखिर ऐसा क्यों हैं कि करीब पांच सौ भारतीयों का नाम पनामा पेपर्स में आने के बाद भी हमारे देश में उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है? जबकि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री की कुर्सी चली गई? इंटरनेशनल कन्सॉर्टियम ऑ
बिहार के सियासी शोकगीत की हकीकत बिहार में नीतीश कुमार के महागठबंधन का साथ छोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाने को बहुत सारे लोग सही बता रहे हैं। ऐसे लोग किसी हद तक सही हो भी सकते थे यदि वह यह नहीं कहते कि नीतीश कुमार ने अपनी बेदाग छवि बचाने के लिए ऐसा किया है। चूंकि लालू प्रसाद यादव के बेेटे और सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है तो वह सरकार नहीं चला पा रहे थे। इस्तीफा देने के बाद नीतीश ने कहा भी कि कफन में थैली नहीं होती और लालच की कोई सीमा नहीं होती और लोकतंत्र लोकलाज से चलता है। यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार बचाने की कोशिश नहीं की। उन्होंने लालू का समर्थन किया, जिसका मतलब है कि भ्रष्टाचार का समर्थन करना। नीतीश ने इस्तीफा दिया तो पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्विट करके बधाई दी। कहा कि भ्रष्टाचार की लड़ाई में उनका स्वागत है। दरअसल, यह सारे तर्क अपनी सुविधानुसार गढ़े गए हैं। यह सब वैसे ही है जैसे अपराध करने वाला अपने पक्ष में तर्क देता है। हकीकत यह है कि नीतीश कुमार महागठबंधन में सहज नहीं थे। उनकी मनमानी नहीं चल रही थी। बाजवजूद इस