सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कविता, डर

डर
----
तेज बारिश हो रही है
दफ्तर से बाहर निकलने पर उसे पता चला
घर जाना है
बारिश है
अंधेरा घना है
बाइक है लेकिन हेलमेट नहीं है
वह डर गया
बिना हेलमेट बाइक चलाना
खतरे से खाली नहीं होता
दो बार सिर को बचा चुका है हेलमेट
शायद इस तरह उसकी जान भी
फिर अभी तो बारिश भी हो रही है
और रात भी
सोचकर उसका डर और बढ़ गया
बिल्कुल रात के अंधेरे की तरह
उसे याद आया किसी फिल्म का संवाद
जो डर गया वह मर गया
वाकई डरते ही आदमी सिकुड़ जाता है
बिल्कुल केंचुए की तरह जैसे किसी के छूने पर वह हो जाता है
इंसान के लिए डर एक अजीब बला है
पता नहीं कब किस रूप में डराने आ जाय
रात के अंधेरे में तो अपनी छाया ही प्रेत बनकर डरा जाती है
मौत एक और डर कितने प्रकार के हैं
कभी बीमारी डराती है तो कभी महामारी
कभी भूख तो कभी भुखमरी
समाज के दबंग तो डराते ही रहते हैं
नौकरशाही और सियासत भी डराती है
कभी रंग के नाम पर तो कभी कपड़े के नाम पर
कभी सीमाओं के तनाव के नाम पर तो कभी देशभक्ति के नाम पर
तमाम उम्र इंसान परीक्षा ही देता रहता है डर के विभिन्न रूपों का
एक डर से पार पाता है कि दूसरा पीछे पड़ जाता है
डर कभी आगे आगे चलता है तो कभी पीछे पीछे
कई बार बगलगीर हो जाता है
और मुस्कुराते हुए पूछता है हालचाल
कहिये श्रीमान सब ठीक तो है न
मानो परीक्षा का पेपर जांचने के बाद आया हो चेहरे का भाव पढ़ने
डर के भय में कैसे प्रक्रिया देता है इंसान
मुस्कुराता है कि रो देता है
जब डर ही जिंदगी बन जाय तो कौन डरता है डर से
शायद इसीलिए समय-समय पर रचे जाते हैं बड़े-बड़े डर
डर जितना ही बड़ा हो जाता है
जिजिविषा उतनी ही मजबूत हो जाती है मनुष्य की।

टिप्पणियाँ

सुधीर राघव ने कहा…
सुंदर कविता

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ख्वाजा, ओ मेरे पीर .......

शिवमूर्ति जी से मेरा पहला परिचय उनकी कहानी तिरिया चरित्तर के माध्यम से हुआ। जिस समय इस कहानी को पढ़ा उस समय साहित्य के क्षेत्र में मेरा प्रवेश हुआ ही था। इस कहानी ने मुझे झकझोर कर रख दिया। कई दिनों तक कहानी के चरित्र दिमाग में चलचित्र की तरह चलते रहे। अंदर से बेचैनी भरा सवाल उठता कि क्या ऐसे भी लोग होते हैं? गांव में मैंने ऐसे बहुत सारे चेहरे देखे थे। उनके बारे में तरह-तरह की बातें भी सुन रखी थी लेकिन वे चेहरे इतने क्रूर और भयावह होते हैं इसका एहसास और जानकारी पहली बार इस कहानी से मिली थी। कहानियों के प्रति लगाव मुझे स्कूल के दिनों से ही था। जहां तक मुझे याद पड़ता है स्कूल की हिंदी की किताब में छपी कोई भी कहानी मैं सबसे पहले पढ़ जाता था। किताब खरीदने के बाद मेरी निगाहें यदि उसमें कुछ खोजतीं थीं तो केवल कहानी। कविताएं भी आकर्षित करती थी लेकिन अधिकतर समझ में नहीं आती थीं इसलिए उन्हें पढ़ने में रुचि नहीं होती थी। यही हाल अब भी है। अब तो कहानियां भी आकर्षित नहीं करती। वजह चाहे जो भी लेकिन हाल फिलहाल में जो कहानियां लिखी जा रही हैं वे न तो पाठकों को रस देती हैं न ही ज्ञान। न ही बेचैन कर

उपन्यासकार जगदीश चंद्र को समझने के लिए

हिंदी की आलोचना पर यह आरोप अकसर लगता है कि वह सही दिशा में नहीं है। लेखकों का सही मूल्यांकन नहीं किया जा रहा है। गुटबाजी से प्रेरित है। पत्रिकाआें के संपादकों की मठाधीशी चल रही है। वह जिस लेखक को चाहे रातों-रात सुपर स्टार बना देता है। इन आरोपों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। आलोचना का हाल तो यह है कि अकसर रचनाकर को खुद ही आलोचना का कर्म भी निभाना पड़ता है। मठाधीशी ऐसी है कि कई लेखक अनदेखे रह जाते हैं। उनके रचनाकर्म को अंधेरी सुरंग में डाल दिया जाता है। कई ऐसे लेखक चमकते सितारे बन जाते हैं जिनका रचनाकर्म कुछ खास नहीं होता। इन्हीं सब विवादों के बीच कुछ अच्छे काम भी हो जाते हैं। कुछ लोग हैं जो ऐसे रचनाकारों पर भी लिखते हैं जिन पर व त की धूल पड़ चुकी होती है। ऐसा ही सराहनीय काम किया है तरसेम गुजराल और विनोद शाही ने। इन आलोचक द्वव ने हिंदी साहित्य के अप्रितम उपन्यासकार जगदीश चंद्र के पूरे रचनाकर्म पर किताब संपादित की। जिसमें इन दोनों के अलावा भगवान सिंह, शिव कुमार मिश्र, रमेश कंुतल मेघ, प्रो. कुंवरपाल सिंह, सुधीश पचौरी, डा. चमन लाल, डा. रविकुमार अनु के सारगर्भित आलेख शामिल हैं। इनके अल

रवींद्र कालिया और ममता कालिया को जनवाणी सम्मान

इटावा हिंदी निधि न्यास की ओर से आठ नवंबर को सोलहवें वार्षिक समारोह में मशहूर साहित्यकार रवींद्र कालिया और ममता कालिया को जनवाणी सम्मान दिया जाएगा। न्यास इस समारोह में रंगकर्मी एमके रैना (श्रीनगर), आईएएस अधिकारी मुकेश मेश्राम (लखनऊ), जुगल किशोर जैथलिया (कोलकाता), डॉ. सुनीता जैन (दिल्ली), विनोद कुमार मिश्र (साहिबाबाद), शैलेंद्र दीक्षित (इटावा), डॉ. पदम सिंह यादव (मैनपुरी), पं. सत्यनारायण तिवारी (औरैया), डॉ. प्रकाश द्विवेदी (अंबेडकर नगर), मो. हसीन 'नादान इटावी` (इटावा) के अलावा इलाहाबाद के पूर्व उत्तर प्रदेश महाधिव ता वीरेंद्र कुमार सिंह चौधरी, पत्रकार सुधांशु उपाध्याय और चिकित्सक डॉ. कृष्णा मुखर्जी को सारस्वत सम्मान देगी।