प्रिय नितेश,
बहुत ही निराशाजनक है आपका वक्तव्य। उसे पढ़ने के बाद मैं जो लिखने जा रहा हूं उसे ध्यान से पढ़ना। ये ज्ञान की बातें नहीं हैं।
हर किसी का यथार्थ स्वप्नलोक जैसा नहीं होता है। इसीलिए स्वप्नलोक रचना पड़ता है। एक सपना देखना पड़ता है फिर उसके लिए जीना पड़ता है। फिर यही जीवन हसीन हो जाता है। कवि अवतार सिंह पाश ने लिखा है कि बहुत खतरनाक होता है सपनों का मर जाना....जिसके सपने मरते हैं वह उसी दिन मर जाता है... हमारे देश मे ऐसे 60 फीसदी लोग हैं, जो लाश हैं। मरे हुए हैं। फिर भी जिंदा कहे जाते हैं। ये इसलिए मरे हुए हैं, क्योंकि इन्होंने अपने सपनों को मार रखा है। इन्होंने स्वप्नलोक रचना छोड़ दिया है। उम्मीद छोड़ दी है। मैं मानता हूं कि असंभव कुछ भी नहीं है। अपने दायरे और अपनी क्षमताओं को पहचानें। उसी के अनुकूल सपने बुनें। कामयाब होंगे। जरूर होंगे। मैंने यह किया है। कोई भी कर सकता है। लाखों लोग कर रहे हैं। बचपन में जब साइकिल नहीं थी तो उसके सपने देखता था। साइकिल मिली। फिर बाइक का सपना देखने लगा, वह भी मिली। इसी तरह बचपन में बैल से खेत जोतते देखता तो कल्पना करता कि कोई मशीन होती जो पल भर में खेत जोत देती। फ़सल काट देती। आज ऐसा हो रहा है। ऐसी मशीनें हैं।
मेरा अखबार में जो पहला लेख छपा था वह यही था कि सपने भी जीवन देते हैं..देखकर तो देखो...अपने लिए न सही। अपनी मां के लिए। जिससे आपका अस्तित्व है। पिता के लिए जो आपके होने का सबूत है। इन दोनों के उस असीम प्यार के लिए जो आप पर इतने सालों तक न्योछावर किया है...अपने भाइयों के लिए जो आपको बहुत प्यार करते हैं...अपने दोस्तों के लिए...किसी परिचित के लिये। मेरे लिये...किसी के भी लिए।
कविता कोई उत्पाद नहीं है। न ही कवि फैक्ट्री है। कविता फसल है और कवि किसान है। एक फसल के उत्पादन के लिए किसान 4 से 6 माह की प्रतीक्षा करता है। फसल के बोने से लेकर पकने तक एक किसान कई प्रक्रियाओं से गुजरता है। फसल बोने से पहले किसान खेत की तैयारी करता है। बीज का चयन करता है। फिर खाद डालता और फिर बिजाई करता है। उसके बाद उसकी सिंचाई और निराई-गुड़ाई करता है। इन सब के बीच हर सुबह हर शाम और हर दोपहर खेत में जाता है। फसल को निहारता है। फसल अच्छी तो खुश होता है। सपने देखता है। पालता है और बुनता है। फसल खराब हुई तो निराश हो जाता है, लेकिन उसी समय से अगली फसल के लिए तैयारी शुरू कर देता है। फिर सपने देखने लगता है। कविता भी फसल है, जिसे कवि बोता है। कवि किसान होता है। किसान सहनशील, धैर्यवान, संयमी, पुरुषार्थी, स्वप्नजीवी और आशावान होता है। वह कहता है जब तक सांस है आस है। नर हो न निराश करो मन की भावना भी उसी में होती है। किसान है तो समाज है। मनुष्य है। मानवता है और मानव सभ्यता है। जिस दिन किसान नहीं, उसी दिन यह मानव सभ्यता भी नहीं होगी। किसान का यथार्थ ही उसे स्वप्नजीवी बनाता है। अपने यथार्थ पर ही वह स्वप्नलोक रचता है। किसान रचयिता है। सृजनकर्ता है। इसीलिए वह कवि है और कवि इसलिए किसान है।
क्योंकि वह कविता रचता है। कविता जो समाज को संवेदनशील बनाती है। स्वप्निल बनाती है। कविता निराश को, हताश को हौसला देती है। कविता सपने देखना बताती है। सिखाती है। बिना पंख उड़ना सिखाती है। उड़ने का हौसला देती है। उम्मीद भर्ती है। मनुष्य को इंसान बनाती है। कविता विविधता में एकता के रंग भर्ती है। समाज मे समरसता घोलती है। कविता कवि की रचना है लेकिन वह मानवता का पाठ होती है। इसलिए वही कवि है जो किसान जैसा है। जो किसान जैसा नहीं है उसकी कविता में कोई सार, कोई पाठ, कोई संदेश, कोई स्वप्न, कोई आशा, कोई उम्मीद , कोई मानवता, कोई संवेदनशीलता, कोई इंसानियत, कोई ईश्वर नहीं होता है।
शहीद भगत सिंह ने एक सपना देखा और उसके लिए जिये। मरे तो उसी सपने के लिए और शहीद कहलाये। देश के गौरव बने। यही हाल अन्य क्रांतिकारियों का रहा। भले ही उनके जीते उनका सपना पूरा नहीं हुआ लेकिन उन्होंने सपना देखा। उसे पूरा करने के लिए उसे जिया। उनके मरने के बाद ही सही उनका सपना पूरा हुआ। महात्मा गांधी जी ने आजाद भारत का सपना नहीं देखा होता तो आजादी की लड़ाई क्यों लड़ते और आज देश के राष्ट्रपिता कैसे कहे जाते? लेनिन ने सपने नहीं देखे होते तो रूस में क्रांति नहीं होती और दुनिया एक प्रगतिशील विचार को धरातल पर मूर्त रूप में, साकार रूप में देखने से वंचित रह जाती। इसलिए मेरे मित्र आने यथार्थ को पहचानें उस किसान की तरह जो खेत की मिट्टी को पहचान कर फसल का चयन करता है। जो मौसम के अनुकूल फसल की बिजाई करता है और उसका उत्पादन करता है। किसान बनो और उसके पसीने की गंध को पहचानो....
- ओमप्रकाश तिवारी
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