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जुलाई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आम आदमी की खून पी रही उच्च शिक्षा व्यवस्था

हमारे देश की उच्च शिक्षा व्यवस्था नागरिकों का किस तरह से शोषण कर रही है इसकी एक झलक एचएसबीसी वैश्विक सर्वेक्षण में देखने को मिलती है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत में माता-पिता अपने बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए पैसे जोड़ने के वास्ते छुट्टियों में भी काम करते हैं। वे अपने बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए बैंक से कर्ज भी लेते हैं। 49 प्रतिशत भारतीय माता-पिता समय से अतिरिक्त घंटे काम करते हैं और अपने बच्चों की यूनिवर्सिटी की फीस भरने के लिए दूसरी नौकरी करते हैं। सवाल उठता है कि लोग ऐसा करने को विवश क्यों हैं? दरअसल, उच्च शिक्षा के निजीकरण ने इसे लोगों से दूर कर दिया है। आम आदमी तो अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने की सोच भी नहीं सकता है। यही वजह है कि सरकार कौशल विकास जैसे कार्यक्रमों पर जोर दे रही है। इस तरह सरकार लोगों को ऐसी योजनाओं में उलझा कर अपने दायित्व से दूर हो जाती है। यही नहीं एक खास समुदाय को कमाई और मलाई खाने का मौका देना भी होता है। एचएसबीसी वैश्विक सर्वे में भारत सहित 15 देशों में 10,000 माता-पिता और 1,500 छात्रों की शिक्षा पर किए गए सर्वे में दावा किया गया है कि भ

सेंसेक्स की चमक में दम तोड़ती जिंदगियां

यह न्यू इंडिया है। यहां भारत गायब है। यहां सेंसेक्स का उछलना या गिरना बड़ी बात है। भूख, बेरोजगारी या आर्थिक तंगी से मरना कोई बात नहीं है। चौकीदार को भागीदारी पर शर्म की जगह गर्व है। उजली कमीज पर दाग अच्छे लगने लगे हैं। ऐसे चमकीले समय में कुछ गंदिली जिंदगियां दम तोड़ती हैं तो क्या आश्चर्य? इंडिया विश्व की छठी अर्थव्यवस्था है। वह विश्व गुरु बनने वाला है। ऐसे में भारत को कौन पूछे? विकास तो इंडिया में कुलाचे भर रहा है, वह भारत क्यों जाय? कुछ दिन पहले देश की राजधानी दिल्ली में तीन बच्चों की मौत भूख से हो गयी। इस सच को नकार कर गंगाजल की तरह पी लिया गया। अब प्रतिदिन उछलते सेंसेक्स और तेज आर्थिक विकास के दावों के बीच झारखंड की राजधानी रांची में आर्थिक तंगी की वजह से एक ही परिवार के सात लोगों की आत्महत्या की खबर सामने आई है। डीआईजी एवी होमकर का कहना है कि ऐसा लग रहा है कि पैसों की तंगी के कारण दो भाइयों ने पहले पूरे परिवार को मार डाला और फिर खुद को फांसी लगा ली। मौके से दो सुसाइड नोट मिले हैं, जिनमें से एक पंद्रह पन्ने का और दूसरा दो पन्ने का है। होमकर ने बताया कि सच्चिानंद झा का बड़ा बेटा दीपक

मुसाफिर के जाने के बाद

कविता ...…...... मुसाफिर के जाने के बाद …................... मुसाफिर के जाने के बाद कई लोग सामने आएंगे अफसाना सुनाने यकीन मानिए कलम तोड़ देंगे उसकी वाहवाही में खूबियों पर तो पूरी किताब लिख देंगे वश यही नहीं बताएंगे कि गुनहगार वे भी हैं उसके पैरों में पड़े छालों के लिए पथ पर उसके कांटे उन्होंने भी रखे थे कहीं पत्थर रखे तो कहीं गड्ढे खोदे थे मुस्कुराये थे उसके हर एक जख्म पर अब आंसू बहाकर अपने गुनाह धो रहे कितने मतलबी हैं फरेब से ज्यादा फरेबी जो आज सीधे बन रहे टेढ़े इतने जैसे जलेबी @ ओमप्रकाश तिवारी

चमत्कार के चक्कर में न पड़ें...

‘जब हम फंदे पर लटकेंगे तो भगवान के दर्शन होंगे और भगवान हम सबको बचा लेंगे... लेकिन भगवान ने नहीं बचाया और 11 जानें चली गईं। दिल्ली के बुराड़ी के भाटिया परिवार के घर के मंदिर के रजिस्टर में उक्त बातें लिखी मिली हैं। पुलिस इस आधार पर मान  रही है कि चमत्कार के चक्कर में 11 लोगों की जान चली गयी। यह निराधार भी नहीं लग रहा है। दरअसल, इसे आप क्या कहेंगे?  यह अंधविश्वास है कि विश्वास है या आस्था है? जहां न कोई सवाल होता है न ही तर्क किया जाता है। सवाल किया भी जाता है तो अव्वल तो जवाब दिया नहीं जाता और यदि दिया भी गया तो वह बेकार का कुतर्क होता है। किसी चमत्कार में लिपटी कहानियां किसी के नाम की कथा के रूप में सुना दी जाती हैं। इस धरती पर या कहें ब्रम्हांड पर कुदरत ही अंतिम सत्य है। वही संचिलत करती है पूरे ब्रम्हांड को। जिज्ञासु और प्रकृति का मित्र बनकर ही उसे जाना समझा जा सकता है। इसी के बीच से मनुष्य अपने विकास का रास्ता निकाल सकता है और खुद के भी अस्तित्व को बचा सकता है। वरना हश्र बुराड़ी के भाटिया परिवार जैसा ही होगा। भाटिया परिवार तो खत्म हो गया लेकिन दुनिया में अरबों लोग आस्था और चमत्कार के