जो खबरें हैं
वे गायब हैंखबरें गढ़ी जा रही हैं
बनाई जा रही हैं
किसी के अनुकूल
किसी के प्रतिकूल
अपनी पसंद की
उसकी पसंद की
खबर जो होनी चाहिए थी
कुछ दंगाइयों ने कर लिया अपहरण
खबर वह बन गई
जो दंगाई चाहते थे
खबर वह बन गई
जो आतंकी चाहते थे
हर रोज अखबार के पन्नों में
खबर के नाम पर
परोस दिया जाता है
तमाम तरह की गढ़ी गई खबरें
ठोक पीटकर बनाई गई खबरें
आदेश-निर्देश से लिखी-लिखाई गई खबरें
कौन चाहता है इन्हें पढऩा
समाचार न विचार
केवल एक किस्म का अचार
टीवी चैनलों पर बहस का शोर
कूपमंडूक लोग फैला रहे होते हैं ध्वनि प्रदूषण
बहुत कष्ट और शोक के साथ
बंद कर देना पड़ता है टीवी
कई-कई दिन नहीं देखते हैं
टीवी पर समाचार
नहीं देखना और सुनना है
झूठ का व्याभिचार
सूचना विस्तार के युग में
गायब कर दी गई है सूचना
हर पल प्रसारित की जा रही है
गैरजरूरी गैर वाजिब सूचना
सूचना के नाम पर
अफवाहों का पैकेज
प्रसारित किया जा रहा है
अंधाधुंध चौबीस घंटे
रिफाइंड करना मुश्किल हो गया है
काम की खबरों को
शक होने लगा है
अखबार में छपी
मुस्कराती तस्वीर पर
सवाल उठता है कि क्यों हंस रहा है
क्या मिल गया है इसे
किसे धोखा दे रहा है
जब हंसी भी शक के दायरे में आ जाए
रोने पर सवाल उठने लगे
नफरत सत्य हो जाए
हिंसा समाचार हो जाए
प्रवचन विचार हो जाए
तब हवा का दमघोंटू हो जाना ही बेहतर है
शहरों का मर जाना ही बेहतर है
सभ्यताओं का ममी बन जाना ही बेहतर है
यूं ही जहरीली नहीं होती जा रही हवा
जहर घोला जा रहा है इसमें
इसी काम में लगे हैं वे चौबीस घंटे
उन्हें गुमान है कि वे बचे रहेंगे
यकीन मानिये
परमाणु बम बनाने वाले भी मरते हैं
फर्क बस इतना ही होता है
कभी पहले तो कभी बाद में मरते हैं
- ओमप्रकाश तिवारी
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