ज्ञानपीठ की साहित्यिक पत्रिका में विभूति नारायण राय के विवादास्पद साक्षात्कार में लेखिकाओं के बारे में की गई टिप्पणी के बाद उठे तूफान को शांत करने के लिए बाजार से नया ज्ञानोदय की विवादित प्रतियां वापस ले ली गई हैं। इसके संपादक रवीन्द्र कालिया ने इस पूरे मामले के लिए हिंदी समाज से क्षमा मांगी है। ज्ञानपीठ के निर्देशक रवीन्द्र कालिया ने कहा कि बाजार में बची हुई नया ज्ञानोदय पत्रिका की प्रतियां वापस ले ली गई हैं और साक्षात्कार के हिस्से को हटाकर दो एक दिन में इसे फिर से प्रकाशित कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार समारोह के सिलसिले में गोवा प्रवास में होने के कारण वह अपने संपादकीय दायित्वों का निर्वहन नहीं कर सके, जिसके चलते पत्रिका में यह भूल चली गई।
शिवमूर्ति जी से मेरा पहला परिचय उनकी कहानी तिरिया चरित्तर के माध्यम से हुआ। जिस समय इस कहानी को पढ़ा उस समय साहित्य के क्षेत्र में मेरा प्रवेश हुआ ही था। इस कहानी ने मुझे झकझोर कर रख दिया। कई दिनों तक कहानी के चरित्र दिमाग में चलचित्र की तरह चलते रहे। अंदर से बेचैनी भरा सवाल उठता कि क्या ऐसे भी लोग होते हैं? गांव में मैंने ऐसे बहुत सारे चेहरे देखे थे। उनके बारे में तरह-तरह की बातें भी सुन रखी थी लेकिन वे चेहरे इतने क्रूर और भयावह होते हैं इसका एहसास और जानकारी पहली बार इस कहानी से मिली थी। कहानियों के प्रति लगाव मुझे स्कूल के दिनों से ही था। जहां तक मुझे याद पड़ता है स्कूल की हिंदी की किताब में छपी कोई भी कहानी मैं सबसे पहले पढ़ जाता था। किताब खरीदने के बाद मेरी निगाहें यदि उसमें कुछ खोजतीं थीं तो केवल कहानी। कविताएं भी आकर्षित करती थी लेकिन अधिकतर समझ में नहीं आती थीं इसलिए उन्हें पढ़ने में रुचि नहीं होती थी। यही हाल अब भी है। अब तो कहानियां भी आकर्षित नहीं करती। वजह चाहे जो भी लेकिन हाल फिलहाल में जो कहानियां लिखी जा रही हैं वे न तो पाठकों को रस देती हैं न ही ज्ञान। न ही बेचैन कर
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