लेखक वीएन राय फिर विवादों में हैं। राय साहब जब से महात्मा गांधी अंतर्राष्टï्रीय हिंंदी विश्वविद्यालय के वीसी बने हैं तब से ही विवाद उनका पीछा नहीं छोड़ रहे। कभी उनको अपने जाति के व्यक्ति को अध्यापक नियुक्त करने पर आलोचना का सामना करना पड़ता है तो कभी उन्हें दलित जाति के अध्यापक को विश्वविद्यालय से निकाल देने के लिए जातिवादी कहा जाता है। अब कहा जा रहा है कि उहोंने भारतीय ज्ञानपीठ से निकलने वाली मासिक पत्रिका नया ज्ञानोदय को दिए साक्षात्कार में महिलाओं पर अश्लील टिप्पणी की है। इस पर महिला लेखकों ने ऐतराज जताया है और मानव संशाधन मंत्रालय से उनके इस्तीफे की मांग की है।
हालांकि अपने इस्तीफे की मांग को राय ने फासिस्ट करार दिया है। लेकिन मानव संसाधन मंत्रालय ने कहा है कि महिलाओं के खिलाफ ऐसी टिप्पणी उनके सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली और मर्यादा के प्रतिकूल है। मंत्रालय इस संबंध में आई खबरों का पता लगाएगा और अगर सही पाया गया तो कार्रवाई करेगा। मानव संसाधन मंत्रालय को इस तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए कि महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय जब से बना है अपनी पढ़ाई से कम अपने वीसी के कारण अधिक चर्चा में रहा है।
इस विवाद का रोचक पहलू यह भी है कि जहां एक तरफ कई लेखिकाएं वीएन राय का विरोध कर रही हैं वहीं ममता कालिया राय के समर्थन में बोल रही हैं। ममता कालिया का कहना है कि अनावश्यक रूप से विवाद पैदा करने की कोशिश के तहत राय के साक्षात्कार को लेखक बनाम लेखिका बनाने की कोशिश की जा रही है। राय क्रांतिकारी लेखक हैं और उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा है। उन्होंने स्त्री विमर्श के नाम पर यौन विमर्श की दुकान चलाने वालों पर टिप्पणी की है। जबकि लेखिका मैत्रेयी पुष्पा का कहना है कि राय का बयान छापने लायक ही नहीं था। जो व्यक्ति सार्वजनिक रूप से लेखिकाओं के बारे में ऐसा बोलता हो वह अपनी छात्राओं और शिक्षिकाओं से कैसे बात करता होगा।
सवाल उठता है कि जो बात अन्य महिला लेखकों को अपमानजनक लग रही है वही ममता कालिया को क्रांतिकारी क्यों लग रही है? इस सवाल का उत्तर इस तथ्य में भी खोजा जा सकता है। नया ज्ञनोदय के संपादक रवींद्र कालिया हैं। उन्होंने राय का साक्षात्कार छापा है। ममता कालिया रवींद्र कालिया की पत्नी हैं। एक तथ्य यह भी है कि ममता कालिया महात्मा गांधी विश्वविद्यालय से निकलने वाली हिंदी नामक अंग्रेजी की पत्रिका की संपादक भी हैं।
यह बात भी गौर करने की है कि यदि किसी ने अपने साक्षात्कार में कोई अनुचित बात कह भी दी तो क्या किसी पत्रिका के संपादक को उसे वैसे ही छाप देना चाहिए? क्या छपना चाहिए और क्या नहीं यह तय करने का विवेकाधिकार तो संपादक के पास ही होता है। वीएन राय बेशक कहें कि उनके कहे को कांटछांट कर छापा गया है लेकिन इसमें कोई सत्ययता प्रतीत नहीं होती। क्योंकि अकसर ऐसे विवादों को बाद ऐसा ही कहा जाता है।
बहरहाल, इस विवाद से हिंदी साहित्य में क्या कुछ चल रहा है उसे समझने में काफी मदद मिल सकती है।
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