माकपा ने यूपीए सरकार को पेट्रोलियम पलिए पार्टी ने एक बुकलेट दार्थों के दाम बाजार पर छोडऩे के खतरों से आगाह किया है। पार्टी के अनुसार इस नीति से सरकारी तेल कंपनियां दीवालिया हो जाएंगी। सरकार के इस फैसले का पर्दाफाश करने के जारी किया है।
माकपा का कहना है कि सरकार तेल की कीमतों में वृद्धि की वजह तेल कंपनियों का घाटे में होना बताया है, लेकिन यह गलत है। सभी कंपनियां लाभ में हैं। संसद में पेश बैलेंस सीट से इस बात की पुष्टि होती है।
संसदीय समिति भी कह चुकी है कि सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स दर कम करना चाहिए। इनकी कीमत में 51 फीसदी टैक्स है, जबकि पाकिस्तान में 30 और श्रीलंका में 37 फीसदी ही टैक्स है।
माकपा ने कहा है कि सरकार का यह कहना गलत है कि दाम बढ़ाने पर भी सरकार सालाना 53 हजार करोड़ का बोझ सहेगी। हकीकत यह है कि इससे सरकार के खजाने में 120 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त आने का अनुमान है।
सरकार कीमतों में वृद्धि की दूसरी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों का बढऩा बता रही है, लेकिन पिछले छह माह में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रति लीटर मात्र 70 पैसे बढ़ोत्तरी हुई, जबकि यहां पेट्रोल में 6.44 रुपये, डीजल में 4.55 रुपये, केरोसिन में 3 रुपये और गैस सिलेंडर में 35 रुपये की वृद्धि हो चुकी है।
माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात और पूर्व सांसद दीपांकर मुखर्जी ने शुक्रवार को बुकलेट जारी करते हुए आरोप लगाया कि यूपीए सरकार निजी क्षेत्र की देशी-विदेशी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए ही इस रास्ते पर आगे बढ़ रही है। वृंदा करात ने कहा कि यह भी संयोग है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तेल के दामों पर अंकुश लगाने व छूट देने संबंधी दोनों फैसलों से जुड़े हैं। वर्ष 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विदेशी तेल कंपनियों की लूट को खत्म करने के लिए तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया था तब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री के वित्त सलाहकार थे। अब तेल के दामों को बाजार पर छोडऩे का फैसला भी वही ले रहे हैं।
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