हिंदी साहित्य पर फिल्मी असर : हकीकत से दूर कहानी को पुरस्कार कहावत है कि भूखे भजन न होई गोपाला, लेकिन कथादेश की अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता के प्रथम पुरस्कार विजेता प्रेम रंजन अनिमेष ने अपनी कहानी पानी-पानी में भूखे रहकर तीन युवकों से सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करवा दी। शायद उन्होंने पाठकों को यह बताने का प्रयास किया है कि गरीब लोग भूखे रह कर भी अपने सपने को पूरे कर सकते हैं। यदि उनका यह मकसद है तो यही हमारी व्यवस्था भी कहती और चाहती है। सपने देखो और मेहनत के बल पर उसे पूरा करो। लेकिन जो गलाकाट प्रतियोगिता इस व्यवस्था में है उसमें तो किसी गरीब को सपने देखने और उसे मेहनत के दम पर पूरा करने को कहने का मतलब है सेहतमंद लोगों की दौड़ में किसी विकलांग को दौड़ा देना। यह व्यवस्था यही तो कर रही है। हजारों धन संपन्न जैसे सेहतमंद लोगों से करोड़ों गरीब जैसे विकलांगों को मुकाबले में उतार दिया गया है। संभत: लेखक इस व्यवस्थ का ही विरोध करना चाहता है लेकिन भाषा-शैली के प्रवाह में वह रूमानी हो गया। वह भूल गया कि किसी भी हालत में एक समय भोजन करके कोई तीन-तीन दिन तक नहीं रह सकता। ऐसे हाल में पढ़ाई क
सामयिक विषयॊं पर सेहतमंद बहस के लिए।