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मधु कांकरिया को मिला कथाक्रम सम्मान-2008



मधु कांकरिया ने मारवाड़ी समाज से ताल्लुक रखते हुए भी उसके दुराग्रहों से बाहर निकलकर लेखन किया है। यह चीज उन्हें अन्य मारवाड़ी लेखिकाआें से अलग करती है। यह बात वरिष्ठ कथाकार और हंस के संपादक राजेंद्र यादव ने राय उमानाथ बली प्रेक्षाग्रह में पश्चिम बंगाल की लेखिका मधु कांकरिया को आनंद सागर स्मृति कथाक्रम सम्मान प्रदान करने के बाद कही। इस प्रतिष्ठापूर्ण सम्मान के साथ ही कथाक्रम-२००८ के दो दिवसीय आयोजन का आगाज हुआ। मधु को प्रख्यात आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी, वरिष्ठ कथाकार राजेंद्र यादव और कथाकार गिरिराज किशोर ने शॉल, स्मृति चिह्न और १५ हजार रुपये का चेक देकर पुरस्कृत किया। मधु कांकरिया खुले गगन के लाल सितारे, सलाम आखिरी, पत्ताखोर और सेज पर संस्कृति उपन्यासों के जरिये कथा साहित्य में पहचानी जाती हैं। इसके पहले कथाक्रम सम्मान संजीव, चंद्र किशोर जायसवाल, मैत्रेयी पुष्पा, कमलकांत त्रिपाठी, दूधनाथ सिंह, ओमप्रकाश वाल्मीकि, शिवमूर्ति, असगर वजाहत, भगवानदास मोरवाल और उदय प्रकाश को दिया जा चुका है।
राजेंद्र यादव ने कहा, 'मारवाड़ी लेखिकाआें में महत्वपूर्ण नाम मन्नू भंडारी, प्रभा खेतान, अलका सरावगी और मधु कांकरिया का है। इन सबके लेखन की पृष्ठभूमि अलग है, लेकिन मधु कांकरिया ने राजस्थानी मारवाड़ी समाज की रूढ़ियों, अंधविश्वासी नजरिए और गद्दी पर बैठ कर पैसा कमाने की वृत्ति से अलग निकलकर रचनाकर्म किया है।`
आलोचक वीरेंद्र यादव ने मधु के व्यि तत्व और कृतित्व को समग्रता में समेटने का प्रयास किया। उन्होंने कहा, 'अपने जीवन के चार दशक सामान्य गृहिणी के रूप में बिताने के बाद अभी ड़ेढ दशक पहले ही मधु कांकरिया ने लेखन शुरू किया, लेकिन वह अपनी रचनाआें से 'लेट कमर` होते हुए भी महत्वपूर्ण लेखिका बन गइंर्। वह पश्चिम बंगाल के क्षेत्र से आती हैं, जो राजनीतिक सक्रियता, वैचारिक हस्तक्षेप और अन्य मसलों का क्षेत्र है। उसे ही उन्होंने लेखन में बुना। उन्होंने इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या न सलवाद को लेखन के लिए चुना। उन्होंने सामंती पितृसत्तात्मक समाज और धर्म से नारी की मुि त को वैचारिक आधार दिया। उनका लेखन सिद्धांत से निस्सृत न होकर जीवन की व्यावहारिकता से उद्भूत है।`
प्रख्यात कथाकार गिरिराज किशोर ने उनके उपन्यास 'सेज पर संस्कृति` का जिक्र करते हुए कहा, 'जब स्त्री सश तीकरण की बात उठती है, तो शरीर की मुि त में ही नारी की मुि त की चर्चा होती है। लेकिन स्त्री सश तीकरण का एक माध्यम वह भी है, जिसे मधु कांकरिया ने उठाया है। उन्होंने धर्म से स्त्री की मुि त की बात उठाई है। उन्होंने सभी धर्मों के दकियानूसीपन को उजागर किया है। लेखक का अनिवार्य पक्ष है कि वह चीजों का विश्लेषण करके लिखे। मधु के लेखन में यह मिलता है।`
कथाक्रम सम्मानित लेखिका मधु कांकरिया ने अपने दो टूक उद्बोधन में अपने बचपन, पारिवारिक स्थिति और बंगाल के परिवेश को याद करते हुए अपनी रचना यात्रा की शुरुआत की वजह बताई। उन्होंने कहा, 'अपने भाई और उसके मित्रों से मैंने यूबा की क्रांति, वियतनाम के संघर्ष और रूस की क्रांति की बातें सुनी थीं। लेकिन पश्चिम बंगाल में न सलवाद तेजी से फैल गया। हिंसा का तांडव शुरू हो गया। भाई के इंजीनियरिंग कॉलेज से लौट आने से हमारी खुशियों और उम्मीदों पर तुषारापात हो गया। इसी बीच २० हजार मासूम नवयुवक न सलवाद की भेंट चढ़ गए। बरसों बाद जब कलम उठी तो प्रेम कहानी लिखना चाहती थी, लेकिन मेरा पहला उपन्यास खुले गगन के लाल सितारे की कहानी इन्हीं नवयुवकों को समर्पित हो गई, जो बेकसूर मारे गए थे।` उन्होंने कहा कि लेखक उन्हीं सवालों को उठाता है, जो जिंदगी उसके झोले में डाल देती है।
कार्यक्रम में प्रख्यात आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी, शैलेंद्र सागर, वीरेंद्र यादव व स्थानीय व देश भर से आए कथाकारों की भी सहभागिता रही।

साभार अमर उजाला

टिप्पणियाँ

Udan Tashtari ने कहा…
मधु जी को बधाई एवं शुभकामनाऐं.
36solutions ने कहा…
मधु जी को हार्दिक शुभकामनायें, आपको भी बहुत बहुत धन्‍यवाद इन प्रस्‍तुतियों के लिए ।



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