इराक के पूर्व रास्त्रपति सद्दाम हुसैन को फांसी दिलवा कर और उसका टीवी चैनलों के माध्यम से भाै़ंडा प्रदर्शन कराकर अमेरिकी राष्ट ्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने दुनिया को या संदेश दिया? यह सवाल इसलिए योंकि यह बात तो आईने की तरह साफ है कि सद्दाम हुसैन की हत्या के लिए जो तरीका अपनाया गया वह कहीं से भी एक अपराधी को दिया गया दंड नहीं लगता।
इसमें कोई शक नहीं कि स ाम ने अपनी सत्ता बचाने के लिए अपने विरोधियों को मौत के घाट उतार दिया था। (कोई भी सत्तासीन आदमी यही करता है। दुनिया ऐसे उदाहरणें से भरी पड़ी है। खुद अमेरिका के सत्ताधारी यही करते रहे हैं।) अपने इस कुकृत्य के लिए वह अपराधी थे, लेकिन जिस तरह से उन्हें सजा सुनिश्चित की गई उससे तो यह भी सवाल उठता है कि या इराक में हुए असंख्य नरसंहारों और कत्लेआम के लिए जार्ज बुश दोषी नहीं हैं? जाहिर है कि स ाम को अमेरिका ने अपनी कुत्सित राजनीति का मोहरा बनाया और मौत का ऐसा खेल खेला, जिसकी निंदा के लिए शब्द भी कम पड़ जाते हैं।
इराक पर जब अमेरिका ने हमला किया था तब भी विश्व के अधिकतर देशों ने उसका तीखा विरोध किया था। इसी तरह जब स ाम को फांसी पर लटकाया गया तो उसका भी तीखा विरोध हुआ। यह स्वाभाविक भी था। दुनिया को यह तो बताया जाता है कि स ाम तानाशाह थे। वह एक क्रूर व्यि त थे। सनकी थे और अपनी सत्ता बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। लेकिन यह नहीं बताया जाता कि स ाम ने इराक के लिए या किया। पूरी दुनिया में स ाम की छवि बेशक एक तानाशाह की बनाई गई है, लेकिन वह अपने देश मंे लोकप्रिय थे। कुछ चंद लोगों को यदि छाे़ड दिया जाए तो स ाम के शासन काल में प्रजा सुखी थी। महिलाआें को काम करने की आजादी थी। स ाम कट्ट रवादी नहीं, बल्कि उदारवादी थे। वह इसलाम को आधुनिक नजरिये से देखते थे। यही कारण था कि कट्ट रपंथी उन्हें पसंद नहीं करते थे। इन्हें महिलाआें को पुरुषों के समान काम करने पढ़ने-लिखने की अजादी देना नहीं भाता था। ऐसे लोग इराक और इराकी समाज को आदिकाल में ही रखना चाहते थे। अब शायद यह लोग अपनी मंशा में सफल हो जाएं, लेकिन इराक अब पहले वाला इराक कभी नहीं हो सकता।
इराक पर हमला करने से पहले अमेरिका ने यह कहा था कि स ाम विश्व शांति के लिए खतरा है। उसका संबंध आतंकवादी संगठन अलकायदा से है। वह रासायनिक हथियार बना चुका है जिससे पूरी दुनिया को नष्ट कर देगा। अब तक दुनिया ने देख लिया है कि यह सभी दावे झूठ का पुलिंदा निकले। इराक में कोई रासायनिक हथियार नहीं मिला। अलकायदा से स ाम का संबंध भी नहीं सिद्ध किया जा सका। इसी के साथ यह भी उतना ही सच है कि स ाम हुसैन इटली के मुरासोली मारन और जर्मनी के हिटलर की तरह का तानाशाह भी नहीं थे। (यह गुण तो कमोबेश हर अमेरिकी राष्ट ्रपति में पाया जाता है।)
स ाम ने लगभग आठ सालों तक ईरान से लड़ाई लड़ी तो इसके पीछे अमेरिका की ही शह थी। इसी शह ने स ाम को कुवैत पर भी हमला करने का हौसला दिया। तात्पर्य यह कि स ाम जब तक अमेरिका के इशारे पर पाले हुए कुत्ते की तरह दुम हिलाते रहे तब तक तो वह अमेरिका को प्रिय बने रहे, लेकिन जिस दिन उन्हें यह अभास हुआ कि अमेरिका उनका इस्तेमाल कर रहा है तो उन्होंने दुम हिलाना बंद कर दिया। ऐसा करते ही वह अमेरिका के लिए दुश्मन नंबर एक हो गए। और अमेरिका ने उन्हें मौत के घाट उतार कर ही दम लिया।
स ाम को फांसी दिलवाकर बुश ने दुनिया को निमन् संदेश देने का प्रयास किया है।
१-अमेरिका का विरोध करने वालों का स ाम जैसा ही हश्र होगा।
२-अमेरिका दुनिया का अकेला सुपर पावर है। उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता।
३-ईसाइयत इसलाम से श्रेष्ठ है।
४-अमेरिका अपनी मर्जी करता रहेगा।
यह जानते हुए भी कि दुनिया एक ध्रुवीय हो चुकी है। अमेरिका अपनी मनमानी चला रहा है, बावजूद इसके अमेरिका के विरोधी न केवल दुनिया में हैं बल्कि लैटिन अमेरिकी देशों में भी हैं। जो बुश को शैतान कहने से भी गुरेज नहीं करते, वह भी संयु त राष्ट ्र की सभा में। यूबा के राष्ट ्रपति फिदेल कास्त्रो को कौन भूल सकता है, जो पिछले कई सालों से अमेरिका का विरोध करते आ रहे हैं। उनकी हत्या के लिए अमेरिका न जाने कितनी साजिशें रच चुका है और रच रहा है। फिर भी वह उसे अगंूठा दिखाते हुए शान से शासन कर रहे हैं। उत्तर कोरिया ने अमेरिका को धत्ता बताते हुए परमाणु परीक्षण कर लिया। अमेरिका ने धमकाया तो उसने भी धमकाया।
स ाम को शूली पर चढ़वाकर बुश ने भले ही यह संदेश दिया कि उनका विरोध करने वाले का यही अंजाम होगा, लेकिन दुनिया यह भी जानती है कि अपने लाख प्रयासों के बावजूद अमेरिका आज तक अलकायदा के सरगना आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को नहीं पकड़ पाया है।
स ाम को फांसी दिलवाना बुश की कूटनीति का हिस्सा है। अमेरिका ने शियाआें का कत्ल करने के आरोप में सुन्नी स ाम हुसैन को सजा दी। इससे यह साफ संदेश गया है कि स ाम ने शियाआें पर जुल्म किया है। अब इराक में शियाआें के हाथ में सत्ता है। वह सुन्नियांे के प्रति बदले की भावना से काम करेंगे। जैसा कि स ाम को फांसी देने वाले जल्लाद ही व्य त कर रहे थे। इसका परिणाम यह होगा कि अब इराक शिया और सुन्नी की लड़ाई का अखाड़ा बन जाएगा। जिसकी परिणति इराक के विभाजन के रूप में होगी। शियाआें का अलग इराक और सुन्नियों का अलग। कुर्द भी अपना इराक अलग ही बनाएंगे। इस तरह इराक तो बर्बाद हो ही जाएगा। पूरी दुनिया में इसलामिक समुदाय दो भागों में बंट जाएगा।
इस तरह अमेरिका ने संगठित इसलामी संस्कृति को विभाजित करके उनकी एकता को चुनौती दी है। इसलाम के शिया और सुन्नी में बंटने से सभ्यता के टकराव की अवधारणा कमजोर पड़ेगी और दुनिया में ईसाइयत का झंडा बुलंद होगा। अमेरिका का यह मकसद पूरा ही हो जाएगा इसे मान लेना न केवल जल्दी होगी, बल्कि की मामले का सरलीकरण करना भी होगा।
दरअसल, सभ्यता का टकराव अब और तीखा और तीव्र होगा। जेहाद के नाम पर आतंकी संगठनों और आतंकियों की बाढ़ आ जाएगी। जिनसे निपटना अमेरिका और उसके दोस्तों के लिए आसान नहीं होगा। हालांकि शैतान पैदा करके फिर अपने लिए खतरनाक हो जाने पर उसका संहार करना अमेरिका का शगल है। यह इनकी संस्कृति में है। जिसे इनकी चर्चित फिल्मों में भी देखा जा सकता है। इनकी यह मानसिकता इनके धर्म से सृजित हुई है। ईसाई यह मानते हैं कि प्रायाश्चित करने पर प्रभु हर पाप को माफ कर देता है। यही अवधारणा ईसाइयों से पाप पर पाप करवाती है। योंकि इन्हें यकीन होता है कि चर्च में जाकर जब यह प्रायश्चित के चार आंसू बहाएंगे तो प्रभु इनके सारे पापों को माफ कर देगा। हो सकता है कि इनके प्रभु इन्हें माफ कर देते हों, लेकिन जिन लोगों की जिंदगी को यह नारकीय बना देते हैं वह शायद ही इन्हें कभी माफ कर पाते हैं।
स ाम को मार कर बुश अपने मकसद में कितने कामयाब हो पाएंगे यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन इतना तो तय है कि मुर्दा स ाम जिंदा स ाम से अधिक खतरनाक हो गया है। स ाम तो मर का नायक हो गए और जार्ज बुश जीत कर भी खलनायक हो गए। स ाम हुसैन ने फांसी के फंदे को गले लगाते समय भी मुंह पर कपड़ा नहीं डाला और शानदार तरीके से शहीद हो गए। वहीं उन्हें मारने वाले नकाब में थे। मरने वाले से अधिक भयभीत तो मारने वाले थे। या यह उनकी कायरता नहीं थी?
इसी तरह इंटरनेट और टीवी चैनलों पर स ाम को फांसी देने का दृश्य दिखाकर अमेरिका ने स ाम को जहां हीरो ही बनाया वहीं वह खुद विलेन बन गया। स ाम की फांसी की आज दुनिया भर में जो विरोध हो रहा है वह शायद तब कम होता यदि स ाम को इस तरह फांसी पर लटकते न दिखाया गया होता। आज स ाम के समर्थकों में जोश है। वह स ाम की तरह मरने का सपना देखने लगे हैं। हौसला बुलंद है। वह कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हैं। आने वाले दिनों में उनके इस जोश की परिणति भी जरूर देखने को मिलेगी। तब शायद अमेरिका को लगे कि उसने स ाम को मार कर और टीवी चैनलों पर मौत को खबर बनाकर प्रसारित करने का कितना खतरनाक खेल खेला है। आने वाले दिनों में यदि अमेरिका में या उसके मित्र देशों में ९/११ जैसी घटना होती है तो अमेरिका को शायद ही वैसा समर्थन मिल पाएगा जैसा ९/११ के समय मिला था। उस समय पूरी दुनिया की संवेदना अमेरिका और अमेरिकियों के साथ थी लेकिन अब शायद ही ऐसा हो। इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिकी थिंक टैंक को जल्द ही एहसास हो जाएगा कि उसने स ाम के मामले में या खोया है और या पाया है।
टिप्पणियाँ
आपने लिखा...ईसाई यह मानते हैं कि प्रायाश्चित करने पर प्रभु हर पाप को माफ कर देता है। यही अवधारणा ईसाइयों से पाप पर पाप करवाती है। ...यह तो काफी हद तक हिंदुओं पर भी लागू है। वैसे इस बहस का आज क्या संदर्भ है,समझ नहीं आया। कहीं गलती से कहीं का माल कहीं और तो नहीं चिपक गया???
आप वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें तो टिप्पणी डालने वालों को सुविधा होगी।
कभी फुरसत में हों तो यहां भी पधारें-
http://gustakhimaaph.blogspot.com
इटली में तमिल नेताओं की घुसपैठ क्यों करा रहे हो???
धन्यवाद