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श्रम संस्कृति का अपमान है बिहारी को भिखारी कहना

भारतीय अस्मिता को खंडित करते हैं ऐसा कहने वाले

गोवा के गृहमंत्री रवि नायक का कहना है कि वह पटना से पणजी सीधी रेल सेवा शुरू करने के खिलाफ हैं। इससे गोवा में भिखारियों की संख्या बढ़ जाएगी, योंकि यहां बिहार से भिखारी आने लगेंगे।
गोवा के गृहमंत्री रवि नायक के बयान पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि बिहार के लोगों की भावना आहत करने वाले नायक बिना शर्त माफी मांगे। नीतीश ने कहा कि एक जिम्मेदार पद पर बैठे व्यि त द्वारा इस तरह का बयान दिया जाना उचित नहीं है। इस तरह की बातों की सभी को निंदा करनी चाहिए और मंत्री को अपना बयान वापस लेते हुए इसके लिए माफी मांगनी चाहिए। नीतीश ने कहा कि बिहारी भिखारी नहीं होते, हमने मेहनत और मेधा के बल पर हर जगह अपना झंडा गाड़ा है।
नीतीश का कहना सौ फीसदी सही है कि बिहारी भिखारी नहीं होते। लेकिन जिसने इस आशय का बयान दिया है उसका तत्काल मानसिक चेकअप कराया जाना चाहिए। आश्चर्य होता है कि इतनी गंदी सोच लेकर लोग जिम्मेदार पदों पर कैसे बने रह जाते हैं? रवि नायक को यह इल्म होना चाहिए कि भारतीय अस्मिता रूपी हार क्षेत्रीय अस्मीताआें रूपी बहुरंगीय फूलों से बना है। जो क्षेत्रीय अस्मिताआें का सम्मान नहीं करता उससे राष्ट ्रीय अस्मिता के सम्मान की उम्मीद नहीं की जा सकती।
दरअसल, देश में आज बिहारियों ही नहीं समूचे हिंदी भाषी राज्यों के लोगों को गाली देने का प्रचलन सा हो गया है। चंूकि बिहार से अधिक लोग रोजी-रोटी की तलाश में देश के विभिन्न शहरों में जाते हैं तो सबसे अधिक निशाना इन्हें ही बनाया जाता है। आज बिहरी शब्द का मतलब बिहार के निवासी से नहीं रह गया है। बिहारी शब्द मजदूर, मेहनतकश, श्रमजीवी का प्रतीक बन गया है। मुंबई हो या दिल्ली या फिर पंजाब यहां पर मेहनत का काम बिहार, यूपी, एमपी और राजस्थान के लोग करते हैं। यही कारण है कि इन्हें यहां पर भैया कहा जाता है, जोकि बिहारी शब्द का ही पर्याय है।
जब कोई व्यि त बिहारी या भैया कहता है तो श्रम के प्रति उसकी घृणा ही व्य त होती है। श्रम करना या इतना घृणित है? श्रमिक गंदे होते हैं। पसीने से भीगे होते हैं लेकिन देश निर्माण में जितना योगदान किसी उद्योगपति का होता है उतना ही श्रमिक का भी होता है। जो लोग श्रमिकों से घृणा करते हैं उनसे संवेदनशील होने की आशा कैसे की जा सकती है।
पंजाब में इस साल बिहार से मजदूर नहीं आए तो यहां पर धान की रोपाई प्रभावित हो गई। यहां के किसान अपने नजदीकी रेलवे स्टेशनों पर जाकर मजदूर तलाशते देखे गए। यही नहीं अधिक मजदूरी देने के बावजूद उन्हें श्रमिक नहीं मिले। यूपी, बिहार के लोगों को भैया कहकर घृणा व्य त करने वाले पंजाबियों को पहली बार एहसास हुआ कि श्रम की या कीमत होती है। यही नहीं पंजाब में अब यूपी-बिहार के लोग बहुत कम आ रहे हैं। इस कारण यहां के कारखानों को भी सस्ते मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं। खासकरके लुधियाना का होजरी उद्योग प्रभावित हो रहा है।
पूछा जा सकता है कि यहां अब दूसरे राज्यों से श्रमिक यों नहीं आ रहे हैं? कारण साफ है कि मेहनत करके जीवनऱ्यापन करने वालों से यदि किसी शहर या प्रांत में घृणा की जाएगी तो वहां पर मेहनतकश लोग यों जाएंगे? वैसे भी अन्य राज्यों की अपेक्षा पंजाब में मजदूरी बहुत कम मिलती है। यहां पर सरकार ने भी न्यूनतम मजदूरी में वढ़ोत्तरी नहीं की है। फै टरी मालिक तो वैसे भी निर्धारित मजदूरी नहीं देते। इस राज्य में गुजरात की तरह मजदूरों का जबरजस्त शोषण किया जाता है। अधिकतर कारखानों में बारह घंटे काम लिया जाता है, जिसके एवज में मजदूरी बहुत कम दी जाती है। मजदूरों के लिए पीएफ और ईएसआई जैसी सुविधाएं तो दूर की काै़डी हैं। मजदूरों के हक में बोलने वाला भी कोई नहीं होता। यदि कोई बोलता भी है तो अपराध और पैसे के गठजाे़ड से बनाए गए तंत्र से उसकी बोलती बंद करा दी जाती है।
पंजाब में एक वा य अ सर सुना जा सकता है कि भैयों ने गंद पा दी है। इस एक वा य में श्रमिकों के प्रति सारी घृणा व्य त होती है। यहां पर मजदूरों को रहने के लिए किराये पर देने के वास्ते स्थानीय लोग भैया र्वाटर बनाते हैं। जहां पर ऐसे कमरे बनाए जाते हैं, वहां इनकी संख्या दस से कम नहीं होती। इन कमरों के लिए जरूरी सुविधाएं तक नहीं दी जातीं। फिर भी इसमें लोग रहते हैं। ऐसे कमरों में कोई भी आदमी नहीं रह सकता फिर भी यह लोग रहते हैं और कमरा मालिकों को किराया भी देते हैं। रहना इनकी मजबूरी है, योंकि इनकी आय इतनी नहीं होती कि यह इससे बेहतर कमरों में रह सकें। साफ-सुधरा रहने के लिए पैसे की जरूरत होती है। पसीने की बदबू को भगाने के लिए तेल-सबुन के साथ पानी की भी जरूरत होती है। जब मुश्किल से पानी ही नसीब हो रहा हो तो पसीने की बदबू कैसे भगाई जाए? ऐसे में आदमी गंद ही पाएगा। अब यदि गंद से बचना है तो मेहनतकश लोगों को जीवन जीने लायक मजदूरी तो देनी होगी। यह हाल केवल पंजाब का ही नहीं है। अधिकतर राज्यों और शहरों मेंं ऐसे ही हालात हैं। जाहिर है कि श्रम के बदले यदि उचित मजदूरी नहीं मिलेगी तो आदमी भिखारी ही नजर आएगा। क्षेत्रीय अस्मिता का सम्मान करने के साथ ही लोगों को श्रम संस्कृति का भी सम्मान करना होगा। श्रम करने वाले श्रमिक को हेय न समझें। उसका सम्मान करें, योंकि वह है तो आप हैं। आपके होने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।

टिप्पणियाँ

अनुनाद सिंह ने कहा…
आपकी बातों से सहमत हूँ कि हमे श्रम-संस्कृति का सम्मान करना सीखना होगा। आज यह हमारे राष्ट्रीय चरित्र के सबसे बड़े दोष के रूप में हम सबको ललकार रहा है।

किन्तु मुझे तो लगता है कि बिहारी लोग बुद्धि के पर्याय भी हैं; साहस के पर्याय भी हैं और देशप्रेम के पर्याय भी ।

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