बच्चों को स्कूल की साइंस की किताब में पढ़ाया जाता है कि सूर्यग्रहण एक खगोलीय घटना है। सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा के आ जाने से सूर्यग्रहण लगता है। इसी तरह चंद्रमा और पृथ्वी केबीच में सूर्य के आ जाने से चंद्रग्रहण लगता है। जाहिर सी बात है कि इसका कारण वैज्ञानिक है।
यह तो है वैज्ञानिक नजरिया। लेकिन इसी बात को धार्मिक नजरिये से भी देखा जाता है। लोग सूर्य और चंद्रमा की उपासना करते हैं। धरती की भी करते हैं। इसके लिए उनकी अपनी आस्थाएं हैं। जाहिर है कि जहां आस्था होती है वहां तर्क नहीं किया जाता। तर्क करने वाला नास्तिक हो जाता है। सदियों से आस्था की दुकान इसी फलसफेपर चल रही है।
इसी कारण जब सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण लगता है तो कुछ लोगों की आस्थाएं हावी हो जाती हैं। कहा जाता है कि इस बार सूर्यग्रहण तबाही लाने वाला है। विनाश करने वाला है। फला राशि वाले सावधान रहें। उनका भारी नुकसान होने वाला है। फिर उपाय भी बताया जाता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से इसकी मारक क्षमता कम हो जाएगी। कहने की जरूरत नहीं कि ज्योतिषियों की दुकान इसी भय पर टिकी है। यह लोग पहले भय दिखाते हैं फिर उसका समाधान। बदले में हो जाते हैं मालामाल। आजकल तो तरह-तरह के ज्योतिषी टीवी चैनलों पर लोगों का भविष्य बताते नजर आते हैं। वह अपने दावे इतने विश्वास के साथ करते हैं कि लगता है वह जो कह रहे हैं अभी घाटित हो जाएगा।
शुक्रवार को सूर्यग्रहण था। सभी टीवी चैनल तैयार थे अपने-अपने ज्योतिषियों के साथ। एक चैनल चीख रहा था कि घर से बाहर न निकलें। यह न करें, वह न करें। उसके स्टूडियों में ज्योतिषी बैठा था वह सूर्यग्रहण का प्रभाव राशियों के हिसाब से विश्लेषित कर रहा था। और प्रभाव को कम करने का उपाया भी बता रहा था। इसी बीच चैनल से फोनलाइन से एक वैज्ञानिक जु़ड जाता है। एंकर महोदया उससे पूछ लेती है कि ज्योतिषी कह रहे हैं कि ग्रहण के दौरान घर से बाहर नहीं निकला चाहिए। इस पर वैज्ञानिक पहले हंसा फिर बोला कि यह तो कूपमंडूकता है। आदमी को कुएं का मे़ढक बनाने वाली बात है। हम तो बाहर निकलकर ही सूर्यग्रहण देख रहे हैं। यदि घर से ही न निकलें तो इस खगोलीय घटना का वैज्ञानिक अध्ययन ही न कर पाएं।
इस बार सूर्यग्रहण लगा तो चैनलों ने अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक सोच को खूंटी पर टांग दिया और अंधविश्वास को बढ़ावा दिया। यही कारण है कि टीवी चैनलों के सामाजिक सरोकारों पर शक किया जाने लगा है। आस्था की बात अपनी जगह है लेकिन जहां पर वैज्ञानिक चेतना को प्रसारित करने की जरूरत होती है वहां तो इसे करना ही चाहिए। एक वैज्ञानिक सोच वाला समाज सृजित करने के लिए यह जरूरी है। योंकि ऐसा समाज ही देश का विकास कर सकता है। हमारे देश में अभी भी बहुत अशिक्षा है ऐसे में आस्था के नाम पर अंधविश्वास को बढ़ावा देना किसी देशद्रोह से कम नहीं है।
यह तो है वैज्ञानिक नजरिया। लेकिन इसी बात को धार्मिक नजरिये से भी देखा जाता है। लोग सूर्य और चंद्रमा की उपासना करते हैं। धरती की भी करते हैं। इसके लिए उनकी अपनी आस्थाएं हैं। जाहिर है कि जहां आस्था होती है वहां तर्क नहीं किया जाता। तर्क करने वाला नास्तिक हो जाता है। सदियों से आस्था की दुकान इसी फलसफेपर चल रही है।
इसी कारण जब सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण लगता है तो कुछ लोगों की आस्थाएं हावी हो जाती हैं। कहा जाता है कि इस बार सूर्यग्रहण तबाही लाने वाला है। विनाश करने वाला है। फला राशि वाले सावधान रहें। उनका भारी नुकसान होने वाला है। फिर उपाय भी बताया जाता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से इसकी मारक क्षमता कम हो जाएगी। कहने की जरूरत नहीं कि ज्योतिषियों की दुकान इसी भय पर टिकी है। यह लोग पहले भय दिखाते हैं फिर उसका समाधान। बदले में हो जाते हैं मालामाल। आजकल तो तरह-तरह के ज्योतिषी टीवी चैनलों पर लोगों का भविष्य बताते नजर आते हैं। वह अपने दावे इतने विश्वास के साथ करते हैं कि लगता है वह जो कह रहे हैं अभी घाटित हो जाएगा।
शुक्रवार को सूर्यग्रहण था। सभी टीवी चैनल तैयार थे अपने-अपने ज्योतिषियों के साथ। एक चैनल चीख रहा था कि घर से बाहर न निकलें। यह न करें, वह न करें। उसके स्टूडियों में ज्योतिषी बैठा था वह सूर्यग्रहण का प्रभाव राशियों के हिसाब से विश्लेषित कर रहा था। और प्रभाव को कम करने का उपाया भी बता रहा था। इसी बीच चैनल से फोनलाइन से एक वैज्ञानिक जु़ड जाता है। एंकर महोदया उससे पूछ लेती है कि ज्योतिषी कह रहे हैं कि ग्रहण के दौरान घर से बाहर नहीं निकला चाहिए। इस पर वैज्ञानिक पहले हंसा फिर बोला कि यह तो कूपमंडूकता है। आदमी को कुएं का मे़ढक बनाने वाली बात है। हम तो बाहर निकलकर ही सूर्यग्रहण देख रहे हैं। यदि घर से ही न निकलें तो इस खगोलीय घटना का वैज्ञानिक अध्ययन ही न कर पाएं।
इस बार सूर्यग्रहण लगा तो चैनलों ने अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक सोच को खूंटी पर टांग दिया और अंधविश्वास को बढ़ावा दिया। यही कारण है कि टीवी चैनलों के सामाजिक सरोकारों पर शक किया जाने लगा है। आस्था की बात अपनी जगह है लेकिन जहां पर वैज्ञानिक चेतना को प्रसारित करने की जरूरत होती है वहां तो इसे करना ही चाहिए। एक वैज्ञानिक सोच वाला समाज सृजित करने के लिए यह जरूरी है। योंकि ऐसा समाज ही देश का विकास कर सकता है। हमारे देश में अभी भी बहुत अशिक्षा है ऐसे में आस्था के नाम पर अंधविश्वास को बढ़ावा देना किसी देशद्रोह से कम नहीं है।
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