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देख तेरे संसार की हालत kaya हो गई.....

अमेरिका की छवि हमारे सामने एक धनी देश की है। हम यह मानते हैं कि वहां गरीबी नहीं है। यही कारण है कि हमारे देश के अधिकतर लोग अमेरिका जाना चाहते हैं। वहां काम करके वहीं बस जाना चाहते हैं। आज के उदारीकरण की आंधी में हमारे लिए ही नहीं दुनिया के अन्य विकासशील देशों के लोगों के लिए अमेरिका एक आदर्श देश हो गया है। लेकिन खुद अमेरिका के या हालात है उसे इस खबर से समझा जा सकता है। इसे पढ़कर तो यही कहा जा सकता है --देख तेरे संसार की हालत kaya हो गई.....


अमेरिका में भूखों की भीड़ बढ़ी


मुफ्त भोजन लेने वालों की संख्या में १५ से २० प्रतिशत तक का इजाफा
अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण निम्न आय वर्ग के लोगों की पहंुच से बाहर हो गया है भोजन

मोरोए। धरती पर सर्वाधिक समद्ध राष्ट्र अमरीका में मुफ्त खाना प्राप्त करने वाले भूखे लोगों की भीड़ बढ़ रही है योंकि ये बढ़ती महंगाई के कारण अपने लिए पर्याप्त भोजन नहीं जुटा पा रहे हैं।
देश के सबसे बड़े मुफ्त भोजन भंडार सेकंड हारवेस्ट का कहना है कि पिछले वर्ष के मुकाबले देश के भोजन भंडारों पर मुफ्त भोजन लेने वालों की संख्या में १५ से २० प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। अनेक भोजन भंडारों को इनकी आपूर्ति करना मुश्किल हो रहा है। इस भंडार की देश भर में २०० से अधिक शाखाएं हैं।
भोजन भंडार आपूर्तिकर्ताआें से जल्दी खराब नहीं होने वाले भोज्य पदार्थ प्राप्त करते हैं और अपनी शाखाआें के जरिए देशभर में वितरित करते हैं। इन शाखाआें के पास भोजन प्राप्त करने वालों लोगों की सही संख्या का ब्योरा उपलब्ध नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है। अर्थव्यवस्था की मंदी के कारण ईधन और खानपान का सामान महंगा होने से यह निम्न आय वर्ग के लोगों की पहुंच से बाहर हो गया है। इन लोगों में ऐसे लोग भी शामिल हैं जिनके पास रोजगार नहीं है और मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं।
भोजन भंडारों का कहना है कि बेरोजगार हुए अनेक लोग इन मुफ्त भोजन भंडारों पर पहुंच रहे हैं। इन लोगों को सस्ती दरों पर या मुफ्त भोजन दिया जा रहा है। उत्तरी डैकोटा में ग्रेट प्लैंस भोजन भंडार की प्रवक्ता मर्सिया पालसन का कहना है कि एक नौकरी से परिवार के लिए भोजन जुटाना मुश्किल हो रहा है। सस्ता या मुफ्त भोजन प्राप्त करने वाले परिवारों में ऐसे भी हैं जहां दो या तीन लोग काम कर रहे हैं।
अरिजोना के डौगलास के वृद्ध देखभाल केंद्र में काम करने वाली ओल्गा मेडिना के लिए ११०० डालर प्रति माह की आमदनी पर काम करना मुश्किल हो रहा है। इस वेतन में वह अपने बुजुर्ग माता पिता और बेटे का लालन पालन करती हैं, लेकिन महंगे ईधन और भोजन के कारण उसे परेशानी हो रही है।
मेडिना पिछले कई सप्ताह से परिवार के लिए दूध, फल और सब्जियां सेफवे सुपर मार्केट के बाहर कू़डेदान से बटोरती है। पिछले माह उसे डौगलास के मुफ्त भोजन भंडार के सामने लाइन लगानी पड़ी थी, योंकि उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं था। उसका नंबर १४७ लोगों के पीछे था। उसने अपने आंसू चश्में के पीछे छिपाते हुए कहा कि हमें जीने के लिए बहुत कुछ सहना पड़ रहा है। यह सम्मानजनक नहीं है, लेकिन हम भूखे हैं और भूख बहुत बुरी चीज है। मोरोए का मुफ्त भोजन भंडार एंजेल फूड मिनिस्ट्रीज जरूरतमंद लोगों को सस्ती दरों पर भोजन उपलब्ध कराता है। यह एक परिवार के लिए ६० डालर की कीमत का भोजन पैकेट तैयार करता है और उसे ३० डालर में लोगों को देता है। इसका वितरण ३५ राज्यों के गिरजाघरों से जु़डा है। इसके संस्थापक जोसेफ विंगो कहते हैं कि अपने अच्छे दिनों में भी अमरीकी अर्थव्यवस्था समाज के अनेक वगोटव की जरूरत पूरी करने में नाकाम रही।
जार्जिया की २८ वर्षीय सेलेना लेविस एक बुटीक चलाती है। वह अपनी भोजन की जरूरतें पूरी करने के लिए उत्तरी अटलांटा के मुफ्त भोजन भंडार पर जा रही है। एक वर्ष पहले वह इसी भोजन भंडार को कुछ डालर खैरात के तौर पर दान करती थी। फिलहाल बुटीक चल नहीं रहा है और उसके लिए यह तय करना मुश्किल हो गया है कि वह दूसरा काम तलाशे या बुटीक चलाती रहे। बुटीक चलाना उसका सपना था और वह इसे तोड़ना नहीं चाहती। ऐसी कहानी उन अन्य छोटे व्यापारियों की है जो आर्थिक मंदी में फंस गए हैं।
डौगलास मुफ्त भोजन भंडार की लाइन में खड़ी ब्रैंडा सालाजर ने २५ वर्ष तक चिकित्सा सहायक के पद पर काम किया है। उसे पेंशन के तौर ४४ डालर प्रति माह मिलते हैं। मकान का किराया, कार की गैस भराने और अन्य सामान खरीदने के बाद उसके पास भोजन के लिए महज १६ डालर बचते हैं, जबकि उसे दूध, हरी प्याज और अंगूर खरीदने हैं और इनकी कीमत १७ डालर है। वह कहती है कि बस भगवान का भरोसा है।

टिप्पणियाँ

36solutions ने कहा…
चिंतनीय तस्वीर है यह महाशक्ति यानी दादा अमेरिका की । पता नहीं फिर भी क्यूं अमेरिका कनाडा के लिये जी जान एक किये होते हैं ।

धन्यवाद बडे भाई ।


आरंभ
अबरार अहमद ने कहा…
सही कहा सर। दूर के ढोल सुहावने होते हैं यह कहावत अमेरिका और हम पर फिट बैठती है, क्योंकि हम भारतीय यही समझते हैं कि अमेरिका में सब मर्सडीज में ही चलते और पिज्जा खाते हैं। मुफ्तखोर यहां भी हैं और वहां भी। और शायद पूरी धरती पर।
अबरार अहमद ने कहा…
सही कहा सर। दूर के ढोल सुहावने होते हैं यह कहावत अमेरिका और हम पर फिट बैठती है, क्योंकि हम भारतीय यही समझते हैं कि अमेरिका में सब मर्सडीज में ही चलते और पिज्जा खाते हैं। मुफ्तखोर यहां भी हैं और वहां भी। और शायद पूरी धरती पर।

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