एक मित्र ने फोन करके बताया कि हिंदी आउट लुक के नए अंक में एक परिचर्चा प्रकाशित की गई है। इसमें नया ज्ञानोदय के संपादक श्री रवींद्र कालिया, उपन्यासकार श्री असगर वजाहत और पत्रिका के संपादक श्री आलोक मेहता के विचार हैं। इसी परिचर्चा में श्री कालिया ने देश में हो रही कन्या भ्रूण हत्या पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि इस विषय पर हिंदी के लेखक मौन हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि आज देश में यह समस्या महामारी का रूप लेती जा रही है। इस पर लेखकों की चुप्पी चिंता की विषय है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि किसी ने कुछ काम ही नहीं किया है। खुद कालिया जी ने नया ज्ञानोदय के मार्च-२००८ अंक में मेरी कहानी कु़डीमार प्रकाशित की है। आश्चर्य होता है कि जब वह यह कह रहे थे कि इस विषय पर कहानी नहीं लिखी गई है तो उन्हें इस कहानी की याद यों नहीं आई? काम नही हो रहा है, यह शिकायत जायज है, लेकिन जो काम हो रहा है उसे रेखांकित न करना या यह उस लेखक के साथ अन्याय नहीं है?
दोस्तो, किसी को मारने के लिए चाकू और बंदूक की ही जरूरत नहीं होती। हत्याएं इस तरह भी की जाती हैं....।
इसमें कोई शक नहीं कि आज देश में यह समस्या महामारी का रूप लेती जा रही है। इस पर लेखकों की चुप्पी चिंता की विषय है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि किसी ने कुछ काम ही नहीं किया है। खुद कालिया जी ने नया ज्ञानोदय के मार्च-२००८ अंक में मेरी कहानी कु़डीमार प्रकाशित की है। आश्चर्य होता है कि जब वह यह कह रहे थे कि इस विषय पर कहानी नहीं लिखी गई है तो उन्हें इस कहानी की याद यों नहीं आई? काम नही हो रहा है, यह शिकायत जायज है, लेकिन जो काम हो रहा है उसे रेखांकित न करना या यह उस लेखक के साथ अन्याय नहीं है?
दोस्तो, किसी को मारने के लिए चाकू और बंदूक की ही जरूरत नहीं होती। हत्याएं इस तरह भी की जाती हैं....।
टिप्पणियाँ
"jo log jyada jante h wo insan ko km phchnte h"
ye to ap bhi jante h fir kalia to mhajankar thahre, wo apne siva dusre ko kaise yad rkh skte h