हिंदी साहित्य को नई दिशा देने वाले समालोचक डॉ. बच्चन सिंह का शनिवार को निधन हो गया। पक्षाघात से वह लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। ८९ वर्षीय बच्चन सदैव साहित्यकारों के प्रेरणाश्रोत रहे। उनके परिवार में दो पुत्र डॉ. सुरेंद्र प्रताप सिंह और राजीव सिंह तथा दो पुत्रियां आशा सिंह और कुसुम सिंह हैं। हरिश्चंद्र घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया।
डॉ. बच्चन को वर्ष २००७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी पहली रचना 'क्रांतिकारी कवि निराला` से ही हिंदी साहित्य जगत में उनकी पहचान कायम हो गई। 'हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास` के जरिए उन्होंने हिंदी साहित्य को देखने की नई दृष्टि दी। जौनपुर और फिर बनारस में उन्होंने शिक्षा हासिल की।
काशी में ही हिंदू इंटरमीडिएट कालेज से अध्यापन शुरू किया। बीएचयू के हिंदी विभाग और फिर वहां से हिमाचल प्रदेश विवि शिमला में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष तथा कुलपति का काम संभाला।
डॉ. बच्चन को वर्ष २००७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी पहली रचना 'क्रांतिकारी कवि निराला` से ही हिंदी साहित्य जगत में उनकी पहचान कायम हो गई। 'हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास` के जरिए उन्होंने हिंदी साहित्य को देखने की नई दृष्टि दी। जौनपुर और फिर बनारस में उन्होंने शिक्षा हासिल की।
काशी में ही हिंदू इंटरमीडिएट कालेज से अध्यापन शुरू किया। बीएचयू के हिंदी विभाग और फिर वहां से हिमाचल प्रदेश विवि शिमला में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष तथा कुलपति का काम संभाला।
टिप्पणियाँ
अविनाश वाचस्पति