रोहतक में मैं दिल्ली रोड हूं। शहर के बीचों बीच से निकली हूं। हर रोज अनगिनत लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती हूं। मेरे ऊपर से हजारों वाहन हर रोज गुजर जाते हैं। लेकिन मैं उफ़ तक नहीं करती। मुझे भी कष्ट होता है। दर्द होता है जब मेरे शरीर पर गड्डों रूपी घाव होते हैं। लेकिन मैं सहती हूं। किसी राहगीर को गिराती नहीं। उसकी जान नहीं लेती। जो अपनी जिंदगी खोते हैं अक्सर उनकी या सामने वाले की ही गलती होती है। कभी ट्रैफिक नियमोँ का न मानना तो कभी तेज रफ्तार। मैं हर मौत पर रोती हूं। अफसोस जताती हूं। अगले ही पल लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने में जुट जाती हूं।
आज मैं बहुत उदास हूं। रात भर रोई हूं। मेरे जेहन में कई सवाल हैं जिनका कोई उत्तर नहीं दे रहा है। मैं जानना चाहती हूं कल दोपर मेरे सीने पर चढ़कर जिस लड़की को गोली मार कर हत्या कर दी गयी उसकी गलती क्या थी? यही की उसने किसी से प्यार किया था? एक ऐसे युवक से जो उसकी जाति का नहीं था? जिससे वह प्यार करती थी वह ऐसी जाति से था जिसे यह सभ्य समाज सम्मान नहीं देता? क्यों कोई जाति से छोटा बड़ा हो जाता है? क्यों रिश्तों से बड़ी जाति हो जाती है? कई बार धर्म भी हो जाता है? क्यों अपने ही बच्चों के दुश्मन हो जाते हैं माता पिता? वे माता पिता जो जन्म देते हैं, पालते हैं पोषते हैं, लिखाते पढ़ाते और बड़ा करते हैं, क्यों किसी से प्यार करने पर उन बच्चों की जान ले लेते हैं? लोग क्यों नहीं मेरी तरह प्यार करते हर किसी से बिना उसका धर्म पूछे? बिना उसकी जाति पूछे? क्यों नहीं उसे पहुंचने देते उसके गंतव्य तक? इंसान जो खुद को विचारवान, तर्कशील और सभ्य कहता है कहां से लाता है इतनी नफरत? इतनी हिंसा?
जहां उस लड़की को गोली मारी गयी वह शहर का दिल है। हमेशा व्यस्त रहता है। वहीं पर लघु सचिवालय है, जिसमे पुलिस के कप्तान का दफ्तर है। जिले के डीसी का ऑफिस है। कोर्ट है। कचहरी है। दो पुलिस थाने हैं। यह सब ऐसे है जिसे इंसानों ने अपनी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए बनाया है, ताकि वह शांति से रह सके। लेकिन यह सब अक्सर विफल हो जाते हैं। यह सब क्यों अपनी जिम्मेदारी निभाने में फेल हो जाते हैं? लड़की की सुरक्षा में तैनात किया गया सिपाही भी मारा गया। वह न अपनी रक्षा कर पाया न ही लड़की की। यह कैसी बेबसी है? इससे तो यही लगता है कि इंसानों की बनाई व्यवस्था फेल है उसकी हिंसा और नफरत के आगे? मुझे तो लगता है इंसानों को प्यार से, शांति से रहना ही नहीं आता। वह हर पल या तो ढोंग करता है या अभिनय। उसे जिंदगी जीना नहीं आता। उसे अभी सभ्य होना बाकी है। सदी दर सदी हुआ उसका विकास झूठा है। अधूरा है। उसे अभी संवेदनशील होना है।
इंसानों को मुझसे सीखना चाहिए। हालांकि इंसानों ने ही मुझे बनाया है। लेकिन किसी की मदद करना, प्यार करना, रिश्ते निभाना, संवेदनशील होना उसे मुझसे सीखना चाहिए.... मैं सड़क हूं..मैं दिल्ली रोड हूं। केवल रोहतक ही नहीं हर शहर में हूं... राहगीरों को उनके लक्ष्य तक, गन्तव्य तक पहुंचाती हूं... बिना रुके, बिना थके, बिना उफ़ किये, हर पल, 24 घंटे, सेवा में तत्पर... मैं सड़क हूं लेकिन हर इंसान से प्यार करती हूं... क्या तुम भी ऐसा कर सकते हो? तुम्हीं से पूछ रही हूं लड़की पर गोली चला कर मारने वाले, सिपाही को मारने वाले, बेटी से नफरत करने वाले, बहन की जान लेने वाले, हर किसी से नफरत करने वाले, हर पल हिंसा पर उतारू रहने वाले, जाति और धर्म में बांट कर लोगों की शांति छीनने वाले...क्या तुम्हारे पास मेरे सवालों का जवाब है...? तुम जवाब दे भी नहीं सकते। तुम तो जीवन छीनते हो। कभी किसी को जीवन देकर देखो, जीना आ जाएगा। तुम्हें भी प्यार हो जाएगा। लेकिन तुम यह कर नहीं सकते, क्योंकि तुम कायर हो और डरपोक भी। मेरी एक बात याद रखो, नफरत और हिंसा की जिंदगी लंबी नहीं होती। खुशहाल तो बिल्कुल भी नहीं....।
@ ओमप्रकाश तिवारी
आज मैं बहुत उदास हूं। रात भर रोई हूं। मेरे जेहन में कई सवाल हैं जिनका कोई उत्तर नहीं दे रहा है। मैं जानना चाहती हूं कल दोपर मेरे सीने पर चढ़कर जिस लड़की को गोली मार कर हत्या कर दी गयी उसकी गलती क्या थी? यही की उसने किसी से प्यार किया था? एक ऐसे युवक से जो उसकी जाति का नहीं था? जिससे वह प्यार करती थी वह ऐसी जाति से था जिसे यह सभ्य समाज सम्मान नहीं देता? क्यों कोई जाति से छोटा बड़ा हो जाता है? क्यों रिश्तों से बड़ी जाति हो जाती है? कई बार धर्म भी हो जाता है? क्यों अपने ही बच्चों के दुश्मन हो जाते हैं माता पिता? वे माता पिता जो जन्म देते हैं, पालते हैं पोषते हैं, लिखाते पढ़ाते और बड़ा करते हैं, क्यों किसी से प्यार करने पर उन बच्चों की जान ले लेते हैं? लोग क्यों नहीं मेरी तरह प्यार करते हर किसी से बिना उसका धर्म पूछे? बिना उसकी जाति पूछे? क्यों नहीं उसे पहुंचने देते उसके गंतव्य तक? इंसान जो खुद को विचारवान, तर्कशील और सभ्य कहता है कहां से लाता है इतनी नफरत? इतनी हिंसा?
जहां उस लड़की को गोली मारी गयी वह शहर का दिल है। हमेशा व्यस्त रहता है। वहीं पर लघु सचिवालय है, जिसमे पुलिस के कप्तान का दफ्तर है। जिले के डीसी का ऑफिस है। कोर्ट है। कचहरी है। दो पुलिस थाने हैं। यह सब ऐसे है जिसे इंसानों ने अपनी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए बनाया है, ताकि वह शांति से रह सके। लेकिन यह सब अक्सर विफल हो जाते हैं। यह सब क्यों अपनी जिम्मेदारी निभाने में फेल हो जाते हैं? लड़की की सुरक्षा में तैनात किया गया सिपाही भी मारा गया। वह न अपनी रक्षा कर पाया न ही लड़की की। यह कैसी बेबसी है? इससे तो यही लगता है कि इंसानों की बनाई व्यवस्था फेल है उसकी हिंसा और नफरत के आगे? मुझे तो लगता है इंसानों को प्यार से, शांति से रहना ही नहीं आता। वह हर पल या तो ढोंग करता है या अभिनय। उसे जिंदगी जीना नहीं आता। उसे अभी सभ्य होना बाकी है। सदी दर सदी हुआ उसका विकास झूठा है। अधूरा है। उसे अभी संवेदनशील होना है।
इंसानों को मुझसे सीखना चाहिए। हालांकि इंसानों ने ही मुझे बनाया है। लेकिन किसी की मदद करना, प्यार करना, रिश्ते निभाना, संवेदनशील होना उसे मुझसे सीखना चाहिए.... मैं सड़क हूं..मैं दिल्ली रोड हूं। केवल रोहतक ही नहीं हर शहर में हूं... राहगीरों को उनके लक्ष्य तक, गन्तव्य तक पहुंचाती हूं... बिना रुके, बिना थके, बिना उफ़ किये, हर पल, 24 घंटे, सेवा में तत्पर... मैं सड़क हूं लेकिन हर इंसान से प्यार करती हूं... क्या तुम भी ऐसा कर सकते हो? तुम्हीं से पूछ रही हूं लड़की पर गोली चला कर मारने वाले, सिपाही को मारने वाले, बेटी से नफरत करने वाले, बहन की जान लेने वाले, हर किसी से नफरत करने वाले, हर पल हिंसा पर उतारू रहने वाले, जाति और धर्म में बांट कर लोगों की शांति छीनने वाले...क्या तुम्हारे पास मेरे सवालों का जवाब है...? तुम जवाब दे भी नहीं सकते। तुम तो जीवन छीनते हो। कभी किसी को जीवन देकर देखो, जीना आ जाएगा। तुम्हें भी प्यार हो जाएगा। लेकिन तुम यह कर नहीं सकते, क्योंकि तुम कायर हो और डरपोक भी। मेरी एक बात याद रखो, नफरत और हिंसा की जिंदगी लंबी नहीं होती। खुशहाल तो बिल्कुल भी नहीं....।
@ ओमप्रकाश तिवारी
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