रोहतक में प्रदेश सरकार की ओर से आयोजित तीन दिवसीय किसान मेले के अंतिम दिन सोमवार को प्रदेश के कृषि मंत्री ओपी धनखड़ किसानों को संबोधित कर रहे थे तो किसान उनकी हूटिंग कर रहे थे। किसानों ने कृषि मंत्री को बोलने तक नहीं दिया। इसी तरह किसानों ने केंद्रीय इस्पात मंत्री बीरेंद्र सिंह को भी बोलने नहीं दिया। लेकिन बीरेंद्र सिंह ढीठ निकले। उन्होंने कहा कि तुम्हें नहीं सुनना है, मत सुनो, लेकिन मैं तो बोलूंगा। वह बोले भी, लेकिन किसानों ने नहीं सुना। बाद में केंद्रीय मंत्री नितिन गडगरी ने पानी और पराली के माध्यम से कुछ भावुक किस्म का भाषण दिया तो किसानों ने सुन लिया।
नितिन गडकरी ने कहा कि वह पंजाब की नदियों का पाकिस्तान जा रहा पानी हरियाणा को देंगे। किसानों को लगा कि बंदे में दम है। पानी हरियाणा और पंजाब की सियासत में काफी मायने रखता है। जब भी चुनाव आता है पानी का मुद्दा प्रदेश की फिजाओं में गूंजने लगता है। सभी राजनीतिक दल इस पर अपने-अपने तरीके से वार और पलटवार की सियासत करते हैं। लेकिन समाधान आज तक नहीं निकला। हरियाणा के नेता कहते हैं कि हम अपने हिस्से का पानी लेकर रहेेंगे और पंजाब के नेता कहते हैं कि एक बूंद भी पानी नहीं देंगे। इसी तरह पराली भी अब सियासी हो गई है। धान हो या गेहूं की फसल दोनों ही सीजन में पराली किसानों के गले पड़ जाती है। किसान जलाते हैं तो आसमान में धुआं उठता है और देश की राजधानी प्रदूषित हो जाती है। लोगों का सांस लेना मुश्किल हो जाती है। जानते ही हैं कि देश की राजधानी में देश की सरकार रहती है।
ऐसे में पानी और पराली पर गडकरी को सुनना तो बनता था। लेकिन बंदा पंजाब का पानी हरियाणा लाएगा कैसे? यह नहीं बताया। इतना जरूर कहा कि उत्तराखंड में डैम बनाएंगे। अब जिन्हें भौगोलिक ज्ञान है उनका चौंकना लाजिमी था। बाकी के लिए खुाश्ी की ही बात थी। वैसे ही जैसे कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ पिछले कई सालों से कह रहे हैं कि पशुओं के लिए पीजी खोलेेंगे। लेकिन आज तक एक भी नहीं खोला। वैसे ही जैसे वह पशुपालन की पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय खोलना चाहते हैं, पिछले चार सालों से, लेकिन आज तक नहीं खोल पाए। अपने इस विचार को वह आज तक कैबिनेट तक में नहीं ला पाए। हां, यह जरूर कहते हैं कि लोग उन्हें स्वामीनाथन कहते हैं। जबकि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट उन्होंने लागू नहीं की। विपक्ष में रहते इसी रिपोर्ट को लागू कराने के लिए वस्त्र उतार कर प्रदर्शन करते थे। अब जब विपक्ष कह रहा है कि स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट को लागू करो तो कह रहे हैं कि विपक्ष ने सत्ता में रहते नहीं लागू किया इसलिए वह इस पर तो बात ही न करे। मंत्री साहब, यह नहीं बताते कि विपक्ष ने सत्ता में रहते लागू नहीं किया तो आपने कुर्ता फाड़ प्रदर्शन किया और सत्ता में यह कह कर आए कि हम लागू करेंगे, तो अब क्यों नहीं लागू कर रहे हो? यह तो कहकर मुकर जाना हुआ। लेकिन दोष शायद मंत्री जी का नहीं है। यह तो उनकी पार्टी की फितरत है। पार्टी के बड़े-बड़े नेता कहते कुछ और हैं करते कुछ और हैं। जो कहते हैं वह करते नहीं और जो करते हैं उसके बारे में कहते नहीं हैं।
बहरहाल, रोहतक में आयोजित तीन दिवसीय कृषि मेले के बारे में कृषि मंत्री ने कहा कि इसमें प्रदेश के हर दसवें किसान ने भाग लिया। मंत्री जी हैं तो सही ही कह रहे हैं यह मानना भूल ही होगी। मेले में चाहे जितने किसान आए हों, लेकिन इस मेले की जरूरत नहीं थी। जिस तरह मेले में अव्यवस्थाएं थीं उसी तरह किसानों और कृषि, पशुपालन और बागवानी के संबंध में सरकार की नीतियों और व्यवस्थाओं में भी है। यदि जिला स्तर पर बने कृषि कल्याण केंद्र, उद्यान विभाग और पशुपालन विभाग सही तरीके से काम करते और सरकार की ओर से सही तरीके से ग्रांट दी जाती तो इस तरह के मेले की जरूरत ही न पड़ती। किसानों को अपने जिले में ही जानकारी मिल जाए तो उसे किसी किसान मेले में सरकारी बस में बैठकर जाने की जरूरत नहीं है। हालत यह है कि कृषि कल्याण केंद्र, बीज निगम, मिट्टी टेस्ट करने वाले केंद्र, कृषि विज्ञान केंद्र और उद्यान विभाग सही तरीके से काम नहीं कर रहे हैं। इन विभागों में अधिकारियों और कर्मचारियों की भारी कमी है। जो हैं वह काम करने से कतराते हैं। इसके अलावा सरकार की ओर से किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी भी समय पर नहीं दी जाती है। अनुदान के नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है। केवल डेयरी खोलने के लिए ही यदि सही तरीके से अनुदान दे दिया जाए तो देश में दूध का दरिया बह जाए।
किसान मेले में दूसरे दिन दोपहर में मैं भी पहुंच गया था। सोचा कुछ ज्ञान ले आते हैं। शायद जीवन में कभी काम आ जाए। मेले में जब पहुंचा तो आसमान में सूरज नाराज सा दिख रहा था तो हवा का भी मिजाज ठीक नहीं था। धूल भरी आंधी के बीच तिरपाल के नीचे बंधे पशुओं को निहारना किसी अनदेखी-अनजानी प्रेयसी के वियोग में तड़पने जैसा था। कई पंडालों में लगी प्रदर्शनी भी कुछ खास नहीं मिला। वातानुकूलित होने की वजह से इन पंडालों में पहाड़ी हवा का एहसास जरूर किया। लेकिन अधिकतर स्टाल या तो खाली थे या उनकी उपयोगिता न के बराबर थी। अधिकतर स्टालों से किसान ब्रोशर बटोर रहे थे और हाथों में लेकर घूम रहे थे। शायद घर जाकर उन्हें पढ़ें और काम की कोई चीज निकाल लें। यह भी हो सकता है कि रास्ते में कहीं फेंक दें। स्टालों में निजी कंपनियों का बोलबाला था। निजी कंपनियां किसानों का कितना भला करती हैं यह सर्वविदित है।
कुछ पंडालों में किसानों को जानकारी देने की व्यवस्था की गई थी। लेकिन कब कितने बजे किस बारे में जानकारी दी जाएगी इसका कहीं उल्लेख नहीं था। लिहाजा किसान जिस पंडाल में कार्यशाला चल रही होती थी उसी में जाकर बैठ जाता था। इस बीच उसे चिंता दोपहर के खाने की भी होती थी और शाम को बस से घर जानेे की भी।
मेले में कृषि यंत्रों भी प्रदर्शनी लगी थी, लेकिन वे कोई नए नहीं थे। इन सब के बीच जादूगर की मौजूदगी ने थोड़ा चौंकाया। फिर सोचा मेले में मनोरंजन की व्यवस्था न हो तो मेला कैसा? कई लोग सेल्फी ले रहे थे जादूगर के साथ। सेल्फी नए जमाने का नया मनोरंजन है। लेकिन मेरी ऐसे मनोरंजन में दिलचस्पी नहीं थी। इसलिए वहां रुका नहीं। गेट से बाहर निकल ही रहा था कि पीछे से आवाज आई कि सब ड्रामा है। सुनकर पलटकर देखा। एक सज्जन जोकि सस्ते और गंदे कपड़े धारण किये हुए थे। पैर में सस्ती चप्पल पहने थे और हाथों में कई कंपनियों के पंपलेट लिए हुए थे इस वाक्य को उवाचा था। मुझे वह वेद व्यास जैसे कवि नजर आए। वह पूरी तल्ललीनता से मेले की उपयोगिता की समीक्षा कर रहे थे। उन्हें सुनते हुए मैं सड़क पर आ गया और वह अपनी बस में जाकर बैठ गए। उन्हें अपने घर जाना था और मुझे अपने।
- ओमप्रकाश तिवारी
नितिन गडकरी ने कहा कि वह पंजाब की नदियों का पाकिस्तान जा रहा पानी हरियाणा को देंगे। किसानों को लगा कि बंदे में दम है। पानी हरियाणा और पंजाब की सियासत में काफी मायने रखता है। जब भी चुनाव आता है पानी का मुद्दा प्रदेश की फिजाओं में गूंजने लगता है। सभी राजनीतिक दल इस पर अपने-अपने तरीके से वार और पलटवार की सियासत करते हैं। लेकिन समाधान आज तक नहीं निकला। हरियाणा के नेता कहते हैं कि हम अपने हिस्से का पानी लेकर रहेेंगे और पंजाब के नेता कहते हैं कि एक बूंद भी पानी नहीं देंगे। इसी तरह पराली भी अब सियासी हो गई है। धान हो या गेहूं की फसल दोनों ही सीजन में पराली किसानों के गले पड़ जाती है। किसान जलाते हैं तो आसमान में धुआं उठता है और देश की राजधानी प्रदूषित हो जाती है। लोगों का सांस लेना मुश्किल हो जाती है। जानते ही हैं कि देश की राजधानी में देश की सरकार रहती है।
ऐसे में पानी और पराली पर गडकरी को सुनना तो बनता था। लेकिन बंदा पंजाब का पानी हरियाणा लाएगा कैसे? यह नहीं बताया। इतना जरूर कहा कि उत्तराखंड में डैम बनाएंगे। अब जिन्हें भौगोलिक ज्ञान है उनका चौंकना लाजिमी था। बाकी के लिए खुाश्ी की ही बात थी। वैसे ही जैसे कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ पिछले कई सालों से कह रहे हैं कि पशुओं के लिए पीजी खोलेेंगे। लेकिन आज तक एक भी नहीं खोला। वैसे ही जैसे वह पशुपालन की पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय खोलना चाहते हैं, पिछले चार सालों से, लेकिन आज तक नहीं खोल पाए। अपने इस विचार को वह आज तक कैबिनेट तक में नहीं ला पाए। हां, यह जरूर कहते हैं कि लोग उन्हें स्वामीनाथन कहते हैं। जबकि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट उन्होंने लागू नहीं की। विपक्ष में रहते इसी रिपोर्ट को लागू कराने के लिए वस्त्र उतार कर प्रदर्शन करते थे। अब जब विपक्ष कह रहा है कि स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट को लागू करो तो कह रहे हैं कि विपक्ष ने सत्ता में रहते नहीं लागू किया इसलिए वह इस पर तो बात ही न करे। मंत्री साहब, यह नहीं बताते कि विपक्ष ने सत्ता में रहते लागू नहीं किया तो आपने कुर्ता फाड़ प्रदर्शन किया और सत्ता में यह कह कर आए कि हम लागू करेंगे, तो अब क्यों नहीं लागू कर रहे हो? यह तो कहकर मुकर जाना हुआ। लेकिन दोष शायद मंत्री जी का नहीं है। यह तो उनकी पार्टी की फितरत है। पार्टी के बड़े-बड़े नेता कहते कुछ और हैं करते कुछ और हैं। जो कहते हैं वह करते नहीं और जो करते हैं उसके बारे में कहते नहीं हैं।
बहरहाल, रोहतक में आयोजित तीन दिवसीय कृषि मेले के बारे में कृषि मंत्री ने कहा कि इसमें प्रदेश के हर दसवें किसान ने भाग लिया। मंत्री जी हैं तो सही ही कह रहे हैं यह मानना भूल ही होगी। मेले में चाहे जितने किसान आए हों, लेकिन इस मेले की जरूरत नहीं थी। जिस तरह मेले में अव्यवस्थाएं थीं उसी तरह किसानों और कृषि, पशुपालन और बागवानी के संबंध में सरकार की नीतियों और व्यवस्थाओं में भी है। यदि जिला स्तर पर बने कृषि कल्याण केंद्र, उद्यान विभाग और पशुपालन विभाग सही तरीके से काम करते और सरकार की ओर से सही तरीके से ग्रांट दी जाती तो इस तरह के मेले की जरूरत ही न पड़ती। किसानों को अपने जिले में ही जानकारी मिल जाए तो उसे किसी किसान मेले में सरकारी बस में बैठकर जाने की जरूरत नहीं है। हालत यह है कि कृषि कल्याण केंद्र, बीज निगम, मिट्टी टेस्ट करने वाले केंद्र, कृषि विज्ञान केंद्र और उद्यान विभाग सही तरीके से काम नहीं कर रहे हैं। इन विभागों में अधिकारियों और कर्मचारियों की भारी कमी है। जो हैं वह काम करने से कतराते हैं। इसके अलावा सरकार की ओर से किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी भी समय पर नहीं दी जाती है। अनुदान के नाम पर केवल खानापूर्ति की जा रही है। केवल डेयरी खोलने के लिए ही यदि सही तरीके से अनुदान दे दिया जाए तो देश में दूध का दरिया बह जाए।
किसान मेले में दूसरे दिन दोपहर में मैं भी पहुंच गया था। सोचा कुछ ज्ञान ले आते हैं। शायद जीवन में कभी काम आ जाए। मेले में जब पहुंचा तो आसमान में सूरज नाराज सा दिख रहा था तो हवा का भी मिजाज ठीक नहीं था। धूल भरी आंधी के बीच तिरपाल के नीचे बंधे पशुओं को निहारना किसी अनदेखी-अनजानी प्रेयसी के वियोग में तड़पने जैसा था। कई पंडालों में लगी प्रदर्शनी भी कुछ खास नहीं मिला। वातानुकूलित होने की वजह से इन पंडालों में पहाड़ी हवा का एहसास जरूर किया। लेकिन अधिकतर स्टाल या तो खाली थे या उनकी उपयोगिता न के बराबर थी। अधिकतर स्टालों से किसान ब्रोशर बटोर रहे थे और हाथों में लेकर घूम रहे थे। शायद घर जाकर उन्हें पढ़ें और काम की कोई चीज निकाल लें। यह भी हो सकता है कि रास्ते में कहीं फेंक दें। स्टालों में निजी कंपनियों का बोलबाला था। निजी कंपनियां किसानों का कितना भला करती हैं यह सर्वविदित है।
कुछ पंडालों में किसानों को जानकारी देने की व्यवस्था की गई थी। लेकिन कब कितने बजे किस बारे में जानकारी दी जाएगी इसका कहीं उल्लेख नहीं था। लिहाजा किसान जिस पंडाल में कार्यशाला चल रही होती थी उसी में जाकर बैठ जाता था। इस बीच उसे चिंता दोपहर के खाने की भी होती थी और शाम को बस से घर जानेे की भी।
मेले में कृषि यंत्रों भी प्रदर्शनी लगी थी, लेकिन वे कोई नए नहीं थे। इन सब के बीच जादूगर की मौजूदगी ने थोड़ा चौंकाया। फिर सोचा मेले में मनोरंजन की व्यवस्था न हो तो मेला कैसा? कई लोग सेल्फी ले रहे थे जादूगर के साथ। सेल्फी नए जमाने का नया मनोरंजन है। लेकिन मेरी ऐसे मनोरंजन में दिलचस्पी नहीं थी। इसलिए वहां रुका नहीं। गेट से बाहर निकल ही रहा था कि पीछे से आवाज आई कि सब ड्रामा है। सुनकर पलटकर देखा। एक सज्जन जोकि सस्ते और गंदे कपड़े धारण किये हुए थे। पैर में सस्ती चप्पल पहने थे और हाथों में कई कंपनियों के पंपलेट लिए हुए थे इस वाक्य को उवाचा था। मुझे वह वेद व्यास जैसे कवि नजर आए। वह पूरी तल्ललीनता से मेले की उपयोगिता की समीक्षा कर रहे थे। उन्हें सुनते हुए मैं सड़क पर आ गया और वह अपनी बस में जाकर बैठ गए। उन्हें अपने घर जाना था और मुझे अपने।
- ओमप्रकाश तिवारी
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