सचाई, ईमानदारी और समानता की नींव पर खड़े डेरे को झूठ और आडंबर का शाही महल बना दिया
संत मत का अनुसरण करने वाला डेरा सच्चा सौदा आजकल सुर्खियों में है। वजह है डेरे की गद्दी पर आसीन गुरमीत राम रहीम, जिसे दो साध्वियों से बलात्कार के मामले में 20 साल की सजा मिली है। राम रहीम रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है। किसी संत परंपरा वाले गुरु के लिए इससे शर्मनाक हरकत और कोई नहीं हो सकती। लेकिन गुरमीत तो संत है ही नहीं। संत और सूफी परंपरा से तो उसका कोई लेना देना ही नहीं है। उसने तो सूफी और संत परंपरा को पथभ्रष्ट ही नहीं, बल्कि तहस-नहस कर दिया। सादगी, सच्चाई, भाईचारा और समानता की पक्षधर संत परंपरा को गुरमीत ने लूट, ठगी, बेईमानी और अपराध का गढ़ बना दिया। आज न जाने कितने सच डेरा सच्चा सौदा में दफन हैं। इसमें कोई शक नहीं कि यह डेरे के करोड़ों अनुयायियों के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ है।
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम पर कई तरह के आरोप लगे और लग रहे हैं। कुल मिलाकर संत से बाबा बने गुरमीत राम रहीम ने देश की एक ऐसी परंपरा का नाश कर दिया, जिसमें देश के बहुसंख्यक आबादी की धड़कनें बसतीं थीं। जिसकी अपनी एक संस्कृति और तहजीब थी। जो गरीबों, शोषितों और पीड़ितों को आश्रय ही नहीं जीवन भी देता था। जो संत कबीर, संत रैदास, संत रहीम से निकलकर पल्वित और पुष्पित हुई थी। गुरमीत ने अपने नाम के पीछे राम और रहीम जोड़ सूफी परंपरा को आगे बढ़ाने का केवल ख्वाब ही दिखाया। गद्दी पर बैठने के साथ ही उसने ऐसी हरकतें शुरू कर दी कि संत परंपरा उसके नाम तक में ही सिमटकर रह गई। गुरमीत के बलात्कार के मामले में जेल जाने के बाद डेरा सच्चा सौदा के बारे में जो भी सामने आ रहा है उसके लिए यदि कोई दोषी है तो वह है गुरमीत और उसके लाखों अनुयायी जिन्होंने उसमें अंधविश्वास और अंधभक्ति रखी। गुरमीत ने गद्दी पर बैठने के साथ ही डेरे को संत परंपरा से विमुख करना शुरू कर दिया था। ढोंग, अंधविश्वास और अपराध के रास्ते से गुजारते हुए डेरे को ग्लैमर की चकाचौंध तक पहुंचा दिया। यह सब उसने अपने अंधभक्त अनुयायियों के दम पर ही किया।
संत मत का अनुसरण करने वाले संत शाह मस्ताना जी ने सन 1948 में सिरसा के बेगू मार्ग पर डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की थी। 1960 में डेरे की गद्दी पर संत शाह सतनाम विराजमान हुए। साल 1990 में महज 23 साल की उम्र में रहस्यमय परिस्थितियों में डेरे की गद्दी पर राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के गुरुसर मोड़िया गांव में मग्घर सिंह और नसीब कौर के घर जन्मे गुरमीत सिंह विराजमान हो गए। ऐसा माना जाता है कि गुरमीत ने तत्कालीन संत से यह गद्दी जबरन हासिल की है। जिस तरह का व्यक्तित्व गुरमीत का रहा है वैसे व्यक्ति को कोई भी संत अपना उत्तराधिकारी नहीं बना सकता। इस बात को मनोचिकित्सक भी स्वीकार करते हैं। महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की प्रोफेसर डा. प्रोमिला बतरा कहती हैं कि इसकी पूरी आशंका है कि गुरमीत ने डेरे की गद्दी जबरन हासिल की है। उसके जैसे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति को कोई संत डेरे की गद्दी दे ही नहीं सकता। इस बात की आशंका इससे भी बलवती होती है कि गुरमीत पर स्कूल के दिनों से ही आवारागर्दी और लड़कियों से छेड़छाड़ के आरोप लगे थे। चर्चा तो यह भी है कि गुरमीत ने एक खालिस्तान समर्थक अपने दोस्त की मदद से डेरे की गद्दी हासिल की। इसके बाद डेरा लंबे समय तक आतंकी गतिविधियों का केंद्र भी रहा है। बाद में उसके दोस्त को एक मुठभेड़ में मार दिया गया।
गद्दीनशीन होने के बाद गुरमीत ने डेरे को एक रहस्य बना दिया। धर्म के नाम पर वसूली शुरू कर दी और तमाम ऐसी गतिविधियां शुरू की, जिसका संत परंपरा से कोई वास्ता ही नहीं था। गुरमीत की सारी गतिविधियां संदिग्ध रहीं। सामाजिक कार्य भी फायदे के लिए किए गए। डेरा प्रेमियों का उपयोग सियासी ताकत हासिल करने के लिए किया गया। यह आम धारणा है कि जो एक बार डेरे में गया तो वह वहीं का होकर रह गया। समर्थक डेरे की संस्कृति में रमा तो बर्बाद हुआ और नहीं रमा तो भी बर्बाद हो गया। यही नहीं जिसने विरोध में मुंह खोला उसे जान से हाथ धोना पड़ा।
क्या है संत परंपरा
लगभग 13वीं सदी के बाद से भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में संत मत सूफी परंपरा को मानने वाले गुरुओं का समूह था। इस मत को इस क्षेत्र में काफी प्रसिद्धि मिली थी। इन गुरुओं की शिक्षाओं की विशेषता यह है कि वे अंतर्मुखी और प्रेम भक्ति के दैवीय सिद्धांत से जुड़े रहे। सामाजिक रूप से समतावादी रहे। हिंदू धर्म की जाति प्रथा को नहीं मानते हुए हर मनुष्य को समान मानते हैं। धार्मिक अंतर को भी नहीं मानते। उनके लिए सभी धर्मों के लोग एक समान हैं। एक तरह से वह धार्मिक आडंबर और पाखंड को अस्वीकार करते हैं।
संत परंपरा भी मुख्य रूप से दो समूहों में बंटी हुई है। एक पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश क्षेत्र के संतों का उत्तरी समूह था, जोकि अपनी अभिव्यक्ति के लिए मुख्य तौर पर बोलचाल वाली हिंदी का इस्तेमाल करता था। दूसरा दक्षिणी समूह था, जिसकी भाषा पुरातन मराठी है। इसका प्रतिनिधित्व नामदेव और महाराष्ट्र के अन्य संत करते हैं। संत मत परंपरा में जिंदा गुरु को महत्व दिया जाता है, जिसे सतगुरु या पूर्ण गुरु कहा जाता है।
क्या है संत का मतलब
सत्यवादी, आशावादी और सही मार्ग पर चलने वाले को संत कहा जाता है। वैसे संत शब्द संस्कृत की सद् धातु से बना है और कई प्रकार से प्रयोग किया गया है। मसलन, सत्य, वास्तविक, ईमानदार और सही। इसका मूल अर्थ है सत्य जानने वाला अथवा जिसने अंतिम सत्य का अनुभव कर लिया हो। संत शब्द से अर्थ आमतौर पर एक अच्छे व्यक्ति से लिया जाता है, लेकिन इसका विशेष अर्थ मध्यकालीन भारत के संत कवियों से लिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि संत मत भगवत गीता में वर्णित भक्ति पर आधारित था। यह किसी विशिष्ट धार्मिक परंपरा के बजाय आध्यात्मिक व्यक्तित्वों का ऐसा विविधतापूर्ण समूह जान पड़ता है जो सामान्य आध्यात्मिक मूल को स्वीकार करता है। संत मत संप्रदाय और जातिवादी नहीं है। संत कवियों ने ईश्वर नाम को सच्चा रक्षक कहा और धार्मिक आडंबरों को मूल्यहीन कह कर खारिज कर दिया। उन्होंने इस विचार को स्थापित किया कि धर्म, ईश्वर के प्रति समर्पण का विषय है जो कि हृदय में बसता है। मध्यकालीन और आधुनिक भारत में केवल संत परंपरा ही है जिसने हिंदू और मुस्लिम सीमाओं को तोड़ा है। जूलियस जे. लिप्नर ने कहा है कि संतों की धार्मिक शिक्षाओं ने कई हिंदुओं के जीवन का उत्थान किया है।
omprakash tiwari
टिप्पणियाँ