लोकपाल एक बार फिर चर्चा में है। ऐसे में इसके बारे में कुछ जानकारियां काफी दिलचस्प हैं। मैंने यह लेख सितंबर २००४ में लिखा थ। नवभारत टाइम्स से इसे अपने ४ सितंबर २००४ के अंक में प्रकाशित किया था। ऐसा नहीं है कि लोकपाल आज का मुद्दा है। समय -समय पर यह मामला आता रहा है। इस लेख को पढ़कर इसे समझा जा सकता है। - ओमप्रकाश तिवारी लोकपाल का मामला एक बार फिर उठा है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से लोकपाल की नियुक्ति में देरी का कारण बताने को कहा है। पिछले दिनों अदालत ने महान्यायवादी हरीश साल्वे से पूछा कि अखबार खोलने पर रोज एक नया घोटाला सामने आता है , तो ऐसे में क्या यह ठीक नहीं होगा कि सार्वजनिक जीवन में पांव पसारते भ्रष्टाचार के मद्देनजर लोकपाल की नियुक्ति कर दी जाए। इस पर श्री साल्वे ने पिछले साल लोकसभा में पेश हो चुके लोकपाल विधेयक का जिक्र किया। अब देखना यह है कि सरकार क्या कदम उठाती है। यह बड़े दुर्भाग्य की बात
सामयिक विषयॊं पर सेहतमंद बहस के लिए।