सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दुनिया के सात महापाप (deadly sins) क्या हैं?

मिर्ज़ा एबी बेग आप में से अकसर लोगों ने दुनिया के सात आश्चर्य के बारे में सुना पढ़ा और देखा होगा इन अजूबों में अब भारत का ताजमहल भी शामिल है, लेकिन क्या आप सात महापाप के बारे में भी जानते हैं? नए साल से गले मिलने और साथ ही पुराने साल को अलविदा कहने का समय आ गया है. पूरे विश्व में इस वक़्त मस्ती और एक प्रकार के जश्न का माहौल है और लोग न जाने कितने प्रकार के संकल्प और प्रतिज्ञा के बारे में सोच रहे होंगे... इस मौक़े पर हम लेकर आए हैं दुनिया के सात महापाप. क्या होते हैं ये सात महापाप? अंग्रेज़ी भाषा और पश्चिमी साहित्य एवं संस्कृति में इसे किस प्रकार देखा जाता है? अंग्रेज़ी में इन्हें सेवेन डेडली सिंस (Seven deadly sins) या कैपिटल वाइसेज़ (Capital vices) या कारडिनल सिंस (Cardinal sins) भी कहा जाता है. जब से मनुष्य ने होश संभाला है तभी से उनमें पाप-पुण्य, भलाई-बुराई, नैतिक-अनैतिक जैसे आध्यात्मिक विचार मौजूद हैं. सारे धर्म और हर क्षेत्र में इसका प्रचलन किसी न किसी रूप में ज़रूर है. यह सेवेन डेडली सिंस (Seven deadly sins) या कैपिटल वाइसेज़ (Capital vices) या कारडिनल सिंस (Cardinal sins) इस

कुछ अपनी कहो....

राजीव उत्तराखंडी तुमने भी देश की भट्ट ी बुझाई हमने भी देश की भट्ट ी बुझाई होंगे चंद माह में चुनाव दोनों ही के देश में तब न तुम रहोगे कुर्सी पर और न ही रहेंगे हम मिले जब गले एक-दूसरे से तो बोले कानों में बुश और मनमोहन।

बाजार व्यवस्था में छटपटता इनसान

इनसान अपनी ही बनाई व्यवस्था में छटपटा रहा है। विकास की चाह में खुद को बाजार के हवाले करने वाला आदमी आज बाजार की चाल से जार-जार रो रहा है। वित्तीय कंपनियां दिवालियां हो रही हैं और शेयर बाजार फर्श पर लोट रहा है। एक ही दिन में कराे़डों-अरबों का वारा-न्यारा हो जा रहा है। कुछ दिन पहले तक खबरें दुनिया में अरबतियों की बढ़ती संख्या पर आ रही थीं आज अरबों के खाक होने की आ रही हैं। हालात ने सिद्ध कर दिया कि बाजार की भूख को शांत करने लिए पंूजी चाहिए। बाजार की कोई सीमा नहीं, लेकिन पंूजी की है। यहीं से मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा हो जाता है। ऐसा होते ही बाजार खूंखार हो जाता है। वह ऐसी सांस लेता है कि धरती का विवेकशील प्राणी मनुष्य उसके उदर में समा जाता है। ऐसे हालात इसलिए आते हैं कि मनुष्य अपना विवेक ताक पर रखकर विकास की गति पर सवार हो जाता है। इसी को कहते हैं शेर की सवारी। जब तक आप शेर के ऊपर बैठे हैं तब तक तो ठीक, लेकिन नीचे गिरते ही शेर आपको निगल जाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि दुनिया को अपने चाबुक से चलाने वाले इससे कुछ सबक सीखेंगे। सबक उन्हें भी सीखने की जरूरत है जो वैश्वीकरण का अंधानुकरण क

आतंकवाद की वजहों को तलाशना होगा

सख्त कानून से नहीं रुकेगा आतंकवाद तेरह सितंबर को दिल्ली में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के बाद केंद्र सरकार को आतंकवाद से निपटने के लिए सख्त कानून की याद आ गई। यही कारण है कि सवा चार साल पहले सत्ता में आते ही पोटा को समाप्त करने वाली सरकार द्वारा गठित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने आतंकवाद के खात्मे के लिए मजबूत सुरक्षा उपायों से लैस सख्त और व्यापक कानून बनाने की वकालत की है। उसने पोटा का नाम नहीं लिया है मगर उसके कई प्रावधानों को नए कानून में शामिल करने की जरूरत बताई है। आयोग ने आतंकी अपराधों की जांच के लिए संघीय जांच एजेंसी बनाने की भी सिफारिश की है। एआरसी की आठवीं रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत आरोपी किसी भी व्यि त को जमानत पर रिहा नहीं किया जाना चाहिए। संघीय जांच एजेंसी बनाने का भी सुझाव दिया गया है। अभी तक केंद्र सरकार किसी सख्त कानून का विरोध करती रही है। यही नहीं सत्ता में आते ही उसने अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में लागू किए पोटा कानून को हटा दिया था। तभी से जब भी देश में आतंकी धमाके करते थे तो केंद्र सरकार भाजपा के निशाने पर आ जाती थी। भाज

नैतिकता भी कोई चीज होती है पाटिल साहब

केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल पर इस्तीफा देने का दबाव चारों तरफ से है। लेकिन उनका कहना है कि वह इस्तीफा नहीं देंगे। उन्हें पार्टी हाईकमान का पूरा समर्थन है। कांग्रेस ने भी कह दिया है कि वह इस्तीफा नहीं देंगे। लेकिन यदि पाटिल साहब में जरा भी विवेक है तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे ही देना चाहिए। ऐसा करके वह देश का भला तो करेंगे ही अपनी पार्टी कांग्रेस और सोनिया गांधी पर भी उपकार करेंगे। बेशक पाटिल साहब को अपनी चिंता न हो लेकिन देश और सोनिया गांधी का ख्याल करते हुए उन्हें त्यागपत्र दे ही देना चाहिए। हालांकि उनके इस्तीफे से कुछ नहीं होने वाला है। कांग्रेस का कार्यकाल खत्म होने वाला है। अगला लोकसभा चुनाव नजदीक है। ऐसे में वह अब तक यदि त्यागपत्र दे दिए होते तो कहा जाता कि सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए उन्होंने ऐसा किया। लेकिन अब जबकि चारों तरफ से उनके इस्तीफे की मांग उठ रही है तो उन्हें विचार जरूर करना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि गृह मंत्री के रूप में वह नाकामयाब रहे हैं। उनकी असफलता इतनी बड़ी है कि उसकी भरभाई इस्तीफे से नहीं होने वाली है। लेकिन नैतिकता भी कोई चीज होती है पाटिल सा

टके के लिए सब कुछ जायज

पिछले दिनों परिकल्पना प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशित बेर्टोल्ट बे्रष्ट की कृति तीन टके का उपन्यास पढ़ रहा था। इस रचना में लेखक ने व्यापारिक पंूजीपति वर्ग की अनैतिकता, लालच और उसके कथित राष्ट ्रवाद की असलियत को नंगा कर दिया है। पंूजीपति वर्ग की जिस तरह से लेखक ने बखिया उधे़डी है उससे सहसा यकीन नहीं होता कि ऐसा भी होता है। यदि होता है तो बहुत ही खतरनाक है। लेखक ने बताया है कि इस समाज में तो मुनाफे के लिए सबकुछ जायज है। यहां लाभ के लिए प्रेम का एक नाटक है, शादी एक व्यापार है, किसी की हत्या करना, बेटी और पत्नी का इस्तेमाल करना सबकुछ ऐसे होता है जैसे किसान अपने पशुआेंे के लिए चारा काटता है। व्यापार और अपराध जगत का गुप्त संबंध ऐसी हकीकत के रूप में सामने आता है कि रूह कांप जाती है। यह सब ऐसी बातें हैं जिन पर मैं विश्वास ही नहीं कर पाया। कई दिनों तक सोचता रहा कि या ऐसा भी होता है? यही कारण है कि उपन्यास पढ़कर रख दिया। किताब में जिन चरित्रों, घटनाआें और दृश्यों को पढ़ा था उनका विश्लेषण जरूरी था। हालांकि प्रकाशक ने दावा किया है कि उपन्यास पढ़ते समय कई बार लगता है कि यह आज के भारत के लिए लिखा गया है

या हम धर्मनिरपेक्ष होने की कीमत चुका रहे हैं?

इस बार मानवता के दुश्मनों ने देश की राजधानी दिल्ली को निशाना बनया है। लगातार चार धमाके करके करीब २५ लोगों की जान ले ली और १०० से अधिक लोगों को घायल कर दिया। जेहाद के नाम पर यह ऐसा खून -खराबा है जिसकी जितनी निंदा की जाए कम ही होगी। निर्दोष लोगों की जान लेकर कौन सी जेहाद की जंग लड़ी जा रही है इसका जवाब कौन देगा? एक बड़ा सवाल यह भी उठने लगा है कि या हम धर्मनिरपेक्षता की कीमत चुका रहे हैं? कुछ बीमार मानसिकता के सनकी लोग हैं जो आए दिन देश में खून की होली खेल रहे हैं और हम हैं कि यह सब होते देखने को मजबूर हैं। यह मजबूरी इसलिए है कि हमारी सरकार देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाए रखने केलिए प्रतिबद्ध है। देश में होने वाले बम धमाकों में एक समुदाय विशेष के लोग ही पकड़े जाते हैं। जब उनकी गिरफ्तारियां होती हैं तो यह सवाल भी उठने लगता है कि एक धार्मिक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। फिर इस पर राजनीति होने लगती है। कुछ लोग विरोध तो कुछ समर्थन में आ जाते हैं और मामला ले-देकर फिर वहीं रहा जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि यदि सरकार सख्ती बरते तो जिस तरह से आए दिन आतंकी अपने नापाक इरादों को अंजाम दे रह

मुंबई किसकी है?

मुंबई के संयु त पुलिस आयु त (कानून व्यवस्था) केएल. प्रसाद के इस बयान पर कि मुंबई किसी के बाप की नहीं है, को शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने अमर्यादित और भड़काऊ करार दिया है। गौरतबल है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के बच्चन परिवार के खिलाफ आंदोलन को लेकर प्रसाद ने यह बयान दिया था। एमएनएस ने जया बच्चन पर मराठियों के खिलाफ बयान देने का आरोप लगाया था। शिवसेना के मुखपत्र 'सामना` में लिखे संपादकीय में बाल ठाकरे ने कहा कि केएल.प्रसाद ने जिस तरह का बयान दिया है इससे पहले मुंबई में किसी पुलिस अधिकारी ने ऐसा बयान नहीं दिया। शायद प्रसाद को हिंदी भाषा की अच्छी जानकारी नहीं है इसलिए इसका गलत इस्तेमाल किया गया है। इन बातों को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से पुलिस अधिकारियों को यह निर्देश दिया जाना चाहिए कि वे मराठी में ही संवाददाताआें को संबोधित करें। इस तरह के लोग अपनी पूरी जिंदगी महाराष्ट्र में गुजार देते हैं लेकिन वे मराठी बोलने से कतराते हैं। इस तरह की बातें स्वीकार्य नहीं हैं। ठाकरे ने मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करके देखे जाने के तर्क को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि इस महान शहर पर स

सद्दाम की फांसी के बहाने

इराक के पूर्व रास्त्रपति सद्दाम हुसैन को फांसी दिलवा कर और उसका टीवी चैनलों के माध्यम से भाै़ंडा प्रदर्शन कराकर अमेरिकी राष्ट ्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने दुनिया को या संदेश दिया? यह सवाल इसलिए योंकि यह बात तो आईने की तरह साफ है कि सद्दाम हुसैन की हत्या के लिए जो तरीका अपनाया गया वह कहीं से भी एक अपराधी को दिया गया दंड नहीं लगता। इसमें कोई शक नहीं कि स ाम ने अपनी सत्ता बचाने के लिए अपने विरोधियों को मौत के घाट उतार दिया था। (कोई भी सत्तासीन आदमी यही करता है। दुनिया ऐसे उदाहरणें से भरी पड़ी है। खुद अमेरिका के सत्ताधारी यही करते रहे हैं।) अपने इस कुकृत्य के लिए वह अपराधी थे, लेकिन जिस तरह से उन्हें सजा सुनिश्चित की गई उससे तो यह भी सवाल उठता है कि या इराक में हुए असंख्य नरसंहारों और कत्लेआम के लिए जार्ज बुश दोषी नहीं हैं? जाहिर है कि स ाम को अमेरिका ने अपनी कुत्सित राजनीति का मोहरा बनाया और मौत का ऐसा खेल खेला, जिसकी निंदा के लिए शब्द भी कम पड़ जाते हैं। इराक पर जब अमेरिका ने हमला किया था तब भी विश्व के अधिकतर देशों ने उसका तीखा विरोध किया था। इसी तरह जब स ाम को फांसी पर लटकाया गया तो

भारत से जंग की तैयारी में है पाक : ओबामा

चुनाव के समय कूटनीतिक बयान फा स न्यूज से साक्षात्कार में डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बराक ओबामा ने कहा कि आतंक के विरुद्ध युद्ध के नाम पर अमेरिका से मिल रही आर्थिक मदद को पाकिस्तान भारत के खिलाफ जंग की तैयारी में खर्च कर रहा है। ओबामा ने पाकिस्तान पर अमेरिका से मिली रकम का दुरुपयोग करने का सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा है कि अगर वह राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतकर व्हाइट हाउस में पहुंचे तो उसे आतंक के नाम पर दिया जा रहा सैन्य सहयोग रोक देंगे। उन्होंने कहा कि उनका प्रशासन पाकिस्तान को अफगान सीमा से सटे इलाकों को आतंकियों का पनाहगाह नही बनने देगा। ओबामा ने कहा कि वह अफगानिस्तान पर ध्यान केंद्रित करते हुए पाकिस्तान में आतंकियों का गढ़ ढहाने का दबाव बनाएंगे। उन्होंने माना कि अभी अमेरिका बिना बारीकी से परखे पाकिस्तान को सैन्य सहयोग दे रहा है। नतीजतन वह अमेरिकी मदद को भारत के खिलाफ जंग की तैयारी में खर्च किए जा रहा है। ओबामा का कहना है कि वह आतंकी संगठन अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन को पाताल से भी खोज निकालेंगे। ऐसा होकर रहेगा, योंकि अपने कार्यकाल में वह