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आंगन में बाजार गायब फुटपाथ

इस बार गांव गया तो देखा वहां से निकल रहे हाइवे से फुटपाथ ही गायब है। पहले यह सड़क कम चाै़डी थी, अब अधिक चाै़डी हो गई है। जब कम चाै़डी थी तो उसके किनारों पर इंर्ट के खडंजे लगे थे। उसके बाद पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ हुआ करता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। सड़क चाै़डी हुई तो खडंजे सहित फुटपाथ भी गायब हो गया। अब पैदल यात्री और साइकिल से चलने वाले कहां जाएं? यह भी देखने में आया कि बाजार तो आंगन तक में घुस गया। जो वस्तुएं शहरों में बिक रही हैं वही गांव में भी धड़ल्ले से बिक रही हैं। गांव की युवा पीढ़ी दातुन के बजाए पेस्ट करती है। ऐसी बहुत सारी चीजें हैं जो शहर की सीमा ताे़डकर गांवों में पहंुच गई हैं। लेकिन आम आदमी के उपयोग में आने वाला फुटपाथ गायब हो गया है। सड़क पर चलते हुए आम आदमी कहा जाए? बाजार ने आम आदमी को हाशिए पर डाल दिया है लेकिन यही बाजार आम आदमी से उसका हाशिया भी छीन ले रहा है।
फुटपाथ पर चलते हुए आम आदमी जिंदगी के सपने देखता था। अब उसके चलने के रास्ते को ही खत्म कर दिया गया है तो उसके सपनों का या होगा? इसे आम आदमी के सपनों की हत्या नहीं कहेंगे? इस देश में आम आदमी जरूरत है? यह व्यवस्था ऐसे लोगों को शायद बोझ समझने लगी है लेकिन यदि यही न रहे तो इस व्यवस्था का कैसा हाल होगा?

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