-अशोक मिश्र
नया ज्ञानोदय का मार्च २००८ का अंक लगभग दो दिन में पढ़ गया। शुरुआत में ही 'ज्ञानोदय` के पूर्व संपादक शरद देवड़ा पर प्रो. परेश ने कम शब्दों में काफी और अच्छी जानकारी दी। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कश्मीर के विख्यात कवि रहमान राही से डॉ. आरसु की बातचीत भी अच्छी रही। कवि राही जी की इस बात से बिल्कुल सहमत हुआ जा सकता है कि साहित्यकार का प्रतिबद्ध होना जरूरी है। यह प्रतिबद्धता दार्शनिक स्तर पर हो सकती है, राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी। प्रतिबद्धता कैसी होगी, इसको तय भी रचनाकार खुद ही करता है।
कहानियों में इस बार कुछ उल्लेखनीय हैं। अगर बात की जाए, द्रोणवीर कोहली की कहानी 'टीन का ट्रंक` की, तो यह मार्मिक प्रेम कहानी है। एक नन्हीं सी कैटी के प्रति छोटे से बच्चे वजीर की प्रेम कहानी को काफी खूबसूरत अंदाज में पिरोया गया है। कैटी द्वारा चाटे गए नीबू को टीन के ट्रंक में छिपाकर रखने, उसे चोरी चोरी चाटने, बाद मंे सड़ जाने पर भाइयों द्वारा फेंक दिए जाने के बाद भी ट्रंक में बसी नीबू की महक को पूरी जिंदगी महसूस करना अपने आप में अभूतपूर्व है।
ज्ञान प्रकाश विवेक की कहानी 'कार` जहां अपने पुत्रों द्वारा उपेक्षित किंतु सरल हृदय बुजुर्ग की कहानी है, वहीं राजकुमार राकेश की कहानी 'अबू मलंग का कंकाल` वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था को प्याज की तरह छील कर रख देती है। कहानी 'मेरे ख्वाबों मंे जिंदगी भर दो` (स्नोवा बॉर्नो) और कहानी 'लहास` (कमल कुमार) भी काफी प्रभावित करती हैं। ये दोनों कहानियां अपने शिल्प की वजह से भी पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
नया ज्ञानोदय की दो कहानियां (ओमप्रकाश तिवारी की 'कु़डीमार` और बीएस बीर की 'बड़ी मां`) आकार में भले ही बड़ी न हों, लेकिन इन दोनों के फलक इनके आकार से कहीं ज्यादा बड़े हैं। ओमप्रकाश तिवारी की कहानी 'कु़डीमार` अपने शिल्प और कथ्य की वजह से भी विशेष उल्लेखनीय है। पिछले आठ साल से ओमप्रकाश तिवारी की कहानियां पढ़ता आ रहा हूं, छपने से पहले और छपने के बाद भी। कई कहानियों की पृष्ठभूमि से भी परिचित हूं। कुछ कहानियों के कथ्य, शिल्प, बिंब विधान या ट्रीटमेंट ( लाइमे स) पर सहमति-असहमति के अवसर भी कम नहीं आए। लेकिन कहानी 'कु़डीमार` को बेशक उनकी कुछ चुनिंदा कहानियों में शुमार किया जा सकता है। कु़डी यानी लड़की को मार देने की परंपरा कमोबेश पूरे देश में रही है और प्रकारांतर से आज भी मौजूद है। दाइयों का काम अब अल्ट्रा साउंड मशीनें और अमेरिका से आयातित किटें कर रही हैं। लड़की को गर्भ में ही या जन्म लेने पर मार देने वाले मां-बाप की आत्मा ऐसे महापातक पर कचोटती नहीं होगी, ऐसा सोचना भी गलत है। सामाजिक और आर्थिक दबाव में लड़कियों को असमय मार देने वाला बाहर भले ही मुस्कुराता रहता हो, लेकिन उसकी अंतरात्मा रोती रहती है। कई बार तो लोग यह पाप पचा नहीं पाते और कुलदीप की तरह पागल हो जाते हैं। पागल कुलदीप के जरिये कहानी 'कु़डीमार` एक सवाल जरूर उभारने का प्रयास कहानीकार ने किया है कि पागल कौन है? कुलदीप जिसने पाप किया, जेल की सजा काटी और पागल हो गया। या फिर वे लोग जो कुड़ियों को मारते हैं और इस पाप का बखान करने में गर्व महसूस करते हैं। कहानीकार के इस सवाल का जवाब तो समाज को ही देना है। निश्चित रूप से आज नहीं तो कल यह यक्षप्रश्न समाज के सामने आ खड़ा होगा और तब...? या होगा...कौन कह सकता है।
(इस कहानी को Katha-kahani.blogspot.com and Rachnakar.blogspot.com पर भी पढ़ सकते हैं)
कहानी 'बड़ी मां` हरियाणा के किसान परिवार में ब्याही गई बड़ी मां यानी रामकली की व्यथा-कथा है, जो बच्चा पैदा करने में असमर्थ होने पर अपनी छोटी बहन संतरी को ही सौत बनाने का फैसला करती है। संतरी अपने पति सीसराम की प्रिया तो है, लेकिन अपने बच्चों की मां नहीं। वास्तविक मां तो बड़ी मां है जो संतरी के हर बच्चों को अपना बच्चा समझ कर पालती है। यह कहानी हरियाणा के ग्रामीण जीवन की जीवंत दास्तां को उकेरती है।
कविताआें में रमेश मेहता की 'सुबह हो गई`, अरुणा शर्मा की 'उस बस्ती में औरत`, अजेय की कविता 'प्रार्थना`, गुरमीत बेदी की कविता 'कई बार`, विजया ठाकुर और डॉ. कुमार विनोद की गजलें प्रभावित करती हैं। भगवान सिंह का 'आसमान में इंद्र सभा`, चमन लाल का महान शहादतों का महीना मार्च और क्षमा कौल की डायरी 'समय के बाद` प्रभावित करती हैं। भगवान सिंह ने इतिहास पर अच्छी सामग्री दी है।
प्रसिद्ध साहित्यकार रमेश कुंतल मेघ नाट्यशास्त्र का सौंदर्यबोध शास्त्रीय इंजीनियरी में उद्धरणों की भरमार है। विनोद शाही का 'ज्ञान के ब्लाइंड स्पॉट्स और अपने समय की इतिहास-मीमांसा` काफी बोझिल हो गया है। साहित्यिक पत्र-पत्रिकाआें के पाठक वैसे ही बहुत कम हैं, ऐसे में इस तरह के लेख पाठकों को और दूर कर देते हैं।
नया ज्ञानोदय का मार्च २००८ का अंक लगभग दो दिन में पढ़ गया। शुरुआत में ही 'ज्ञानोदय` के पूर्व संपादक शरद देवड़ा पर प्रो. परेश ने कम शब्दों में काफी और अच्छी जानकारी दी। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कश्मीर के विख्यात कवि रहमान राही से डॉ. आरसु की बातचीत भी अच्छी रही। कवि राही जी की इस बात से बिल्कुल सहमत हुआ जा सकता है कि साहित्यकार का प्रतिबद्ध होना जरूरी है। यह प्रतिबद्धता दार्शनिक स्तर पर हो सकती है, राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी। प्रतिबद्धता कैसी होगी, इसको तय भी रचनाकार खुद ही करता है।
कहानियों में इस बार कुछ उल्लेखनीय हैं। अगर बात की जाए, द्रोणवीर कोहली की कहानी 'टीन का ट्रंक` की, तो यह मार्मिक प्रेम कहानी है। एक नन्हीं सी कैटी के प्रति छोटे से बच्चे वजीर की प्रेम कहानी को काफी खूबसूरत अंदाज में पिरोया गया है। कैटी द्वारा चाटे गए नीबू को टीन के ट्रंक में छिपाकर रखने, उसे चोरी चोरी चाटने, बाद मंे सड़ जाने पर भाइयों द्वारा फेंक दिए जाने के बाद भी ट्रंक में बसी नीबू की महक को पूरी जिंदगी महसूस करना अपने आप में अभूतपूर्व है।
ज्ञान प्रकाश विवेक की कहानी 'कार` जहां अपने पुत्रों द्वारा उपेक्षित किंतु सरल हृदय बुजुर्ग की कहानी है, वहीं राजकुमार राकेश की कहानी 'अबू मलंग का कंकाल` वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था को प्याज की तरह छील कर रख देती है। कहानी 'मेरे ख्वाबों मंे जिंदगी भर दो` (स्नोवा बॉर्नो) और कहानी 'लहास` (कमल कुमार) भी काफी प्रभावित करती हैं। ये दोनों कहानियां अपने शिल्प की वजह से भी पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
नया ज्ञानोदय की दो कहानियां (ओमप्रकाश तिवारी की 'कु़डीमार` और बीएस बीर की 'बड़ी मां`) आकार में भले ही बड़ी न हों, लेकिन इन दोनों के फलक इनके आकार से कहीं ज्यादा बड़े हैं। ओमप्रकाश तिवारी की कहानी 'कु़डीमार` अपने शिल्प और कथ्य की वजह से भी विशेष उल्लेखनीय है। पिछले आठ साल से ओमप्रकाश तिवारी की कहानियां पढ़ता आ रहा हूं, छपने से पहले और छपने के बाद भी। कई कहानियों की पृष्ठभूमि से भी परिचित हूं। कुछ कहानियों के कथ्य, शिल्प, बिंब विधान या ट्रीटमेंट ( लाइमे स) पर सहमति-असहमति के अवसर भी कम नहीं आए। लेकिन कहानी 'कु़डीमार` को बेशक उनकी कुछ चुनिंदा कहानियों में शुमार किया जा सकता है। कु़डी यानी लड़की को मार देने की परंपरा कमोबेश पूरे देश में रही है और प्रकारांतर से आज भी मौजूद है। दाइयों का काम अब अल्ट्रा साउंड मशीनें और अमेरिका से आयातित किटें कर रही हैं। लड़की को गर्भ में ही या जन्म लेने पर मार देने वाले मां-बाप की आत्मा ऐसे महापातक पर कचोटती नहीं होगी, ऐसा सोचना भी गलत है। सामाजिक और आर्थिक दबाव में लड़कियों को असमय मार देने वाला बाहर भले ही मुस्कुराता रहता हो, लेकिन उसकी अंतरात्मा रोती रहती है। कई बार तो लोग यह पाप पचा नहीं पाते और कुलदीप की तरह पागल हो जाते हैं। पागल कुलदीप के जरिये कहानी 'कु़डीमार` एक सवाल जरूर उभारने का प्रयास कहानीकार ने किया है कि पागल कौन है? कुलदीप जिसने पाप किया, जेल की सजा काटी और पागल हो गया। या फिर वे लोग जो कुड़ियों को मारते हैं और इस पाप का बखान करने में गर्व महसूस करते हैं। कहानीकार के इस सवाल का जवाब तो समाज को ही देना है। निश्चित रूप से आज नहीं तो कल यह यक्षप्रश्न समाज के सामने आ खड़ा होगा और तब...? या होगा...कौन कह सकता है।
(इस कहानी को Katha-kahani.blogspot.com and Rachnakar.blogspot.com पर भी पढ़ सकते हैं)
कहानी 'बड़ी मां` हरियाणा के किसान परिवार में ब्याही गई बड़ी मां यानी रामकली की व्यथा-कथा है, जो बच्चा पैदा करने में असमर्थ होने पर अपनी छोटी बहन संतरी को ही सौत बनाने का फैसला करती है। संतरी अपने पति सीसराम की प्रिया तो है, लेकिन अपने बच्चों की मां नहीं। वास्तविक मां तो बड़ी मां है जो संतरी के हर बच्चों को अपना बच्चा समझ कर पालती है। यह कहानी हरियाणा के ग्रामीण जीवन की जीवंत दास्तां को उकेरती है।
कविताआें में रमेश मेहता की 'सुबह हो गई`, अरुणा शर्मा की 'उस बस्ती में औरत`, अजेय की कविता 'प्रार्थना`, गुरमीत बेदी की कविता 'कई बार`, विजया ठाकुर और डॉ. कुमार विनोद की गजलें प्रभावित करती हैं। भगवान सिंह का 'आसमान में इंद्र सभा`, चमन लाल का महान शहादतों का महीना मार्च और क्षमा कौल की डायरी 'समय के बाद` प्रभावित करती हैं। भगवान सिंह ने इतिहास पर अच्छी सामग्री दी है।
प्रसिद्ध साहित्यकार रमेश कुंतल मेघ नाट्यशास्त्र का सौंदर्यबोध शास्त्रीय इंजीनियरी में उद्धरणों की भरमार है। विनोद शाही का 'ज्ञान के ब्लाइंड स्पॉट्स और अपने समय की इतिहास-मीमांसा` काफी बोझिल हो गया है। साहित्यिक पत्र-पत्रिकाआें के पाठक वैसे ही बहुत कम हैं, ऐसे में इस तरह के लेख पाठकों को और दूर कर देते हैं।
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