परिवर्तन लाजमी है तो डरना क्यों? - ओमप्रकाश तिवारी मानव सभ्यता अंतरविरोधों के परमाणु बम जैसी है। इसके अंतरविरोध परिवर्तनशील बनाकर इसे आगे बढ़ाते हैं तो यही इसका विनाश भी करते हैं। मानव जाति का इतिहास गवाह है कि भूत में कई सभ्यताएं तबाह हो गईं जिनके मलबे से खाद-पानी लेकर नई सभ्यताओं ने जन्म लिया और फली-फूली हैं। यही वजह है कि मानव भविष्य को लेकर हमेशा चिंतित रहता है। उसकी अधिकतर योजनाएं बेहतर भविष्य के लिए होती हैं। लेकिन हर आदमी, हर समाज और हर सभ्यता व संस्कृति हमेशा बेहतर नहीं साबित होती। अक्सर इंसानी अनुमान धरे केधरे रह जाते हैं और भविष्य कुछ का कुछ हो जाता है। वामपंथी चिंतक कार्ल मार्क्स का आकलन था कि पूंजीवादी व्यवस्था अपनी तबाही के लिए खुद ही रास्ते बनाती है। यही वजह है कि एक दिन यह व्यवस्था तबाह हो जाएगी और इसके स्थान पर नई व्यवस्था सामने आएगी। नई व्यवस्था क्या होगी इसकी भी मार्क्स ने कल्पना की और बताया कि वह साम्यवादी व्यवस्था होगी। लेकिन ऐसा हुआ क्या? आज लगभग पूरी दुनिया में पूंजीवादी व्यवस्था है। सोवियत रूस जैसे देशों में साम्यवादी व्यवस्था आई भी तो वह पूंजीवादी व्यवस्था
सामयिक विषयॊं पर सेहतमंद बहस के लिए।