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उनकी नजाकत पर आंकड़ों की नफासत तो देखिए

- ओमप्रकाश तिवारी आंकड़े बेजुबान होते हैं लेकिन बहुत कुछ कहते हैं। बेदर्द लगते हैं पर संवेदनशील होते हैं। तस्वीर नहीं होते लेकिन तस्वीर बनाते हैं। आईना नहीं होते लेकिन तस्वीर दिखाते हैं। कलाकार नहीं होते लेकिन कलाकारों के औजार होते हैं। बेजान दिखते हैं लेकिन उनमें कई सच धड़कता है। चतुर सुजान अपना सच उनके माध्यम से छिपाते हैं और भ्रम फैलाते हैं लेकिन आंकड़ों की अदा देखिए कि वह सच ही कहते हैं और सच ही दिखाते हैं। योजना आयोग का कहना है कि देश से गरीबी घट रही है। करोड़ों बिलबिलाते और तिलतिल कर मरने वालों के देश में सचमुच यह खुश होने वाली खबर है। क्या यह सच है या हकीकत पर खुशफहमी का परदा डालने की नादान होशियारी है। योजना आयोग कहता है कि यदि कोई शहरी प्रतिदिन 28 रुपये 65 पैसे खर्च करता है तो वह गरीब नहीं है। जबकि गांवों में 22 रुपये 42 पैसे खर्च करने वाले को गरीब नहीं कहा जा सकता। इस तरह महीने में 859 रुपये 60 पैसे खर्च करने वाला शहरी और 672 रुपये 80 पैसे खर्च करने वाला ग्रामीण गरीब की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। आप सरकार हैं। कोई भी श्रेणी बनाएं और उसमें डाल दें। गरीब आदमी क्या कर सकता है?