बढ़ती महंगाई से तो सभी त्रस्त हैं लेकिन इस महंगाई ने उन लोगों को बहुत गहरे घाव दिए हैं जिन्होंने बैंक से लोन लेकर अपना आशियाना होने का सपना पूरा किया है। महंगाई सरकार की कुप्रबंधन नीति का परिणाम हो सकती है लेकिन इसकी मार बैंक से कर्ज लेने वालों को अधिक पड़ रही है। एक तरफ बाजार में उनकी जेब खाली हो रही है तो दूसरी ओर बैंक की किस्तें भारी होती जा रही हैं। सवाल उठता है कि इसमें बैंक से कर्ज लेने वालों का या कसूर है? सरकार या इसके अलावा और कोई उपाय नहीं कर सकती? मंगलवार को एक बार फिर रिजर्व बैंक ने पहले से ऊंची ब्याज दरों से त्रस्त कर्जदारों पर एक और चोट की है। मुद्रास्फीति (महंगाई) पर काबू पाने के दबाव में केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति की तिमाही समीक्षा करते हुए रेपो रेट ०.५० फीसदी और सीआरआर ०.२५ फीसदी तक बढ़ाकर ९-९ फीसदी कर दी। इससे होम लोन, ऑटो लोन, पर्सनल लोन और अन्य कर्जे एक फीसदी तक महंगे हो जाने का अंदेशा है। इस फैसले से कुछ होम लोन की ईएमआई में २० फीसदी तक की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। रिजर्व बैंक इस साल सीआरआर में चार बार और रेपो रेट में तीन बार बढ़ोतरी कर चुका है। ३० अगस्त से ल
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