tag:blogger.com,1999:blog-40822317165331957252024-02-18T20:44:28.513-08:00समालोचनासामयिक विषयॊं पर सेहतमंद बहस के लिए।ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.comBlogger108125tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-69429069193720242132021-01-21T14:49:00.001-08:002021-01-21T14:49:41.713-08:00कविता/सवाल<div>कुछ पसंद नहीं आना</div><div>मन का उदास हो जाना</div><div>बेमतलब ही गुस्सा आना</div><div>हां न कि भी बातें न करना</div><div>हर पल आंखें बंद रखना</div><div>रोशनी में आंखें मिचमिचना</div><div>बिना पत्तों वाले पेड़ निहारना</div><div>गिरते हुए पीले पत्तों को देखना</div><div>भाव आएं फिर भी कुछ न लिखना</div><div>अच्छी किताब को भी न पढ़ना</div><div>किताब उठाना और रख देना</div><div>उंगलियों से कुछ टाइप न करना</div><div>उगते सूरज पर झुंझला पड़ना</div><div>डूबते सूरज को हसरत से देखना</div><div>चाहत अंधेरे को हमसफ़र बनाना</div><div>खुद को तम में विलीन कर देना</div><div>ये हमको हुआ क्या जरा बताना</div><div>समझ में आये तो जरा समझना</div><div>गीत कोई तुम ऐसा जो गाना</div><div>शब्दों को सावन की तरह बरसाना</div><div>बूंद बूंद से पूरा बदन भिगो देना</div><div>हसरतों को इस कदर बहाना</div><div>चलेगा नहीं यहां कोई बहाना</div><div>#ओमप्रकाश तिवारी</div>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-32562152815244534782020-12-01T13:08:00.001-08:002020-12-01T13:08:38.561-08:00किसान आंदोलन का क्या हश्र होगा?https://youtu.be/LTne3FSGn6Aओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-81133700145625155832020-11-11T12:28:00.001-08:002020-11-11T12:28:15.427-08:00मंदीhttps://youtu.be/n6k5qhplkSAओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-55928898196249397022020-11-11T12:26:00.001-08:002020-11-11T12:26:54.991-08:00नहीं दूर हुई ऑटोसेक्टर कि मंदीhttps://youtu.be/n6k5qhplkSA<div><br></div>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-45458052335963144532020-10-30T23:07:00.001-07:002020-10-30T23:07:33.312-07:00क्या आप जानते हैं? प्रदूषण फैलाने पर होगी 5 साल की जेल और लगेगा एक करोड़ जुर्मानाhttps://youtu.be/GOcthnQ18Ocओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-38537113649024309792020-06-20T05:50:00.001-07:002020-06-20T05:50:07.581-07:00कविता, डर<div>डर</div><div>----</div><div>तेज बारिश हो रही है</div><div>दफ्तर से बाहर निकलने पर उसे पता चला</div><div>घर जाना है</div><div>बारिश है</div><div>अंधेरा घना है</div><div>बाइक है लेकिन हेलमेट नहीं है</div><div>वह डर गया</div><div>बिना हेलमेट बाइक चलाना</div><div>खतरे से खाली नहीं होता</div><div>दो बार सिर को बचा चुका है हेलमेट</div><div>शायद इस तरह उसकी जान भी</div><div>फिर अभी तो बारिश भी हो रही है</div><div>और रात भी</div><div>सोचकर उसका डर और बढ़ गया</div><div>बिल्कुल रात के अंधेरे की तरह</div><div>उसे याद आया किसी फिल्म का संवाद</div><div>जो डर गया वह मर गया</div><div>वाकई डरते ही आदमी सिकुड़ जाता है</div><div>बिल्कुल केंचुए की तरह जैसे किसी के छूने पर वह हो जाता है</div><div>इंसान के लिए डर एक अजीब बला है</div><div>पता नहीं कब किस रूप में डराने आ जाय</div><div>रात के अंधेरे में तो अपनी छाया ही प्रेत बनकर डरा जाती है</div><div>मौत एक और डर कितने प्रकार के हैं</div><div>कभी बीमारी डराती है तो कभी महामारी</div><div>कभी भूख तो कभी भुखमरी</div><div>समाज के दबंग तो डराते ही रहते हैं</div><div>नौकरशाही और सियासत भी डराती है</div><div>कभी रंग के नाम पर तो कभी कपड़े के नाम पर</div><div>कभी सीमाओं के तनाव के नाम पर तो कभी देशभक्ति के नाम पर</div><div>तमाम उम्र इंसान परीक्षा ही देता रहता है डर के विभिन्न रूपों का</div><div>एक डर से पार पाता है कि दूसरा पीछे पड़ जाता है</div><div>डर कभी आगे आगे चलता है तो कभी पीछे पीछे</div><div>कई बार बगलगीर हो जाता है</div><div>और मुस्कुराते हुए पूछता है हालचाल</div><div>कहिये श्रीमान सब ठीक तो है न</div><div>मानो परीक्षा का पेपर जांचने के बाद आया हो चेहरे का भाव पढ़ने</div><div>डर के भय में कैसे प्रक्रिया देता है इंसान</div><div>मुस्कुराता है कि रो देता है</div><div>जब डर ही जिंदगी बन जाय तो कौन डरता है डर से</div><div>शायद इसीलिए समय-समय पर रचे जाते हैं बड़े-बड़े डर</div><div>डर जितना ही बड़ा हो जाता है</div><div>जिजिविषा उतनी ही मजबूत हो जाती है मनुष्य की।</div>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-58293619101337696772020-06-16T10:20:00.001-07:002020-06-16T10:20:34.547-07:00केवल संख्या मत बनिये<div>आप कृष्णा बेउरा को जानते हैं? हो सकता है कि जानते हों, लेकिन मैं नहीं जानता। इनकी शिकायत है कि इनके फेसबुक पेज पर 80 फीसदी लोग केवल संख्या बढ़ाने के लिए हैं। इनकी यह बात बिल्कुल सही है क्योंकि मेरे फ्रेंड सर्कल का यही हाल है। यहां आभासी संसार में लोग अनजान को भी दोस्ती के सर्कल में ले लेंगे लेकिन उससे कोई वास्ता नहीं रखते। यह बात वाकई समझ में नहीं आती कि जब आपका मुझसे कोई लेनादेना नहीं है या मेरे लिखे में कोई दिलचस्पी नहीं है तो मेरे घेरे में क्यों है या अपने घेरे में मुझे क्यों ले रखा है? </div><div>मेरे एक बड़े भाई जैसे मित्र ने एक दिन कहा कि मैंने लिखना बन्द कर दिया। बोले कोई पढ़ता ही नहीं तो लिखने का क्या फायदा? बात तो सही है। लेकिन यदि ऐसा ही सब सोच लें तो कम से कम हिंदी में तो कोई नहीं लिखेगा। सबको पता है कि हिंदी में कोई किसी को नहीं पढ़ता। फिर इतना लिखा क्यों जा रहा है? कुछ यूं ही लिख रहे हैं। कुछ उनके लिए लिख रहे हैं। कुछ अपने लिए लिख रहे हैं। कुछ इसलिए लिखते हैं कि बिना लिखे रहा नहीं जाता। कुछ तिकड़मबाजी के लिए लिखते हैं। कुछ पुरस्कार के लिए तो कुछ मठाधीश को प्रसन्न करने के लिए। सबकी लिखने की अपनी वजह है। इसी तरह पाठक के पास भी पढ़ने न पढ़ने की अपनी वजह है। घटिया फ़िल्म को अधिक दर्शक मिलते हैं। वह अधिक पैसा कमाती है। बढ़िया फ़िल्म को कम दर्शक मिलते हैं तो वह कम पैसे कमाती है। इसका असर उस फिल्म से जुड़े हर कलाकार पर पड़ता है। फिर कलाकार या तो गुमनामी में खो जाता है या आत्महत्या कर लेता है। इसके बाद चालक लोमड़ियों का गिरोह सामने आता है। उपडीह देता है और आंसू भी बहाता है। संवेदना भी जताता है। मदद की बात भी करता है लेकिन उसका यह सबकुछ खोखला होता है। </div><div>बता दें कि कृष्णा बेउरा गायक हैं। हिंदी में कई अच्छे गाने गाए हैं लेकिन किसी ने उनके गाने पसन्द नहीं किये। किसी मठाधीश ने उन्हें मदद नहीं की। अब वह अवसाद में हैं। होना भी चाहिए। यह चर्चा आम है कि सुशांत सिंह राजपूत ने इसलिए अपनी जान दे दी क्यों कि फिल्मी दुनिया के कुछ लोग उन्हें किनारे लगा दिए थे। बात सही हो सकती है। लेकिन यही बात तो हम पर भी लागू होती है। कम क्यों नहीं किसी कृष्णा का गाना सुनते हैं? क्यों नहीं किसी सुशांत की फ़िल्म देखते हैं? क्यों थोपी गयी फूहड़ फिल्में हिट और अच्छी कलात्मक फिल्में फ्लॉप हो जाती हैं? किसी वजह से होता है यह सब? क्या इसमें हम और आप शामिल नहीं हैं? संवेदना और दिमाग है तो संख्या मत बनिये।</div>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-79715839851686094432020-06-13T05:23:00.001-07:002020-06-16T22:54:49.853-07:00लेख : सामूहिकता, सामाजिकता और सहकारिता से निजता और एकाकीपन की ओर...<div>आप कृष्णा बेउरा को जानते हैं? हो सकता है कि जानते हों, लेकिन मैं नहीं जानता। इनकी शिकायत है कि इनके फेसबुक पेज पर 80 फीसदी लोग केवल संख्या बढ़ाने के लिए हैं। इनकी यह बात बिल्कुल सही है क्योंकि मेरे फ्रेंड सर्कल का यही हाल है। यहां आभासी संसार में लोग अनजान को भी दोस्ती के सर्कल में ले लेंगे लेकिन उससे कोई वास्ता नहीं रखते। यह बात वाकई समझ में नहीं आती कि जब आपका मुझसे कोई लेनादेना नहीं है या मेरे लिखे में कोई दिलचस्पी नहीं है तो मेरे घेरे में क्यों है या अपने घेरे में मुझे क्यों ले रखा है? </div><div>मेरे एक बड़े भाई जैसे मित्र ने एक दिन कहा कि मैंने लिखना बन्द कर दिया। बोले कोई पढ़ता ही नहीं तो लिखने का क्या फायदा? बात तो सही है। लेकिन यदि ऐसा ही सब सोच लें तो कम से कम हिंदी में तो कोई नहीं लिखेगा। सबको पता है कि हिंदी में कोई किसी को नहीं पढ़ता। फिर इतना लिखा क्यों जा रहा है? कुछ यूं ही लिख रहे हैं। कुछ उनके लिए लिख रहे हैं। कुछ अपने लिए लिख रहे हैं। कुछ इसलिए लिखते हैं कि बिना लिखे रहा नहीं जाता। कुछ तिकड़मबाजी के लिए लिखते हैं। कुछ पुरस्कार के लिए तो कुछ मठाधीश को प्रसन्न करने के लिए। सबकी लिखने की अपनी वजह है। इसी तरह पाठक के पास भी पढ़ने न पढ़ने की अपनी वजह है। घटिया फ़िल्म को अधिक दर्शक मिलते हैं। वह अधिक पैसा कमाती है। बढ़िया फ़िल्म को कम दर्शक मिलते हैं तो वह कम पैसे कमाती है। इसका असर उस फिल्म से जुड़े हर कलाकार पर पड़ता है। फिर कलाकार या तो गुमनामी में खो जाता है या आत्महत्या कर लेता है। इसके बाद चालाक लोमड़ियों का गिरोह सामने आता है। उपदेश देता है और आंसू भी बहाता है। संवेदना भी जताता है। मदद की बात भी करता है, लेकिन उसका यह सबकुछ खोखला होता है। </div><div>बता दें कि कृष्णा बेउरा गायक हैं। हिंदी फिल्मों में कई अच्छे गाने गाए हैं, लेकिन किसी ने उनके गाने पसन्द नहीं किये। फिल्मी दुनिया के किसी मठाधीश ने उन्हें मदद नहीं की। अधिकतर ने किनारे लगाने का ही कार्य किया है, ऐसा उनका आरोप है।</div><div> उनका कहना है कि अब वह अवसाद में हैं। ऐसे हालात में होना भी चाहिए। कोई भी हो सकता है। यह चर्चा आम है कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने इसलिए अपनी जान दे दी क्यों कि फिल्मी दुनिया के कुछ लोग उन्हें किनारे लगा दिए थे। बात सही हो सकती है, लेकिन यही बात तो हम पर (दर्शकों पर) भी लागू होती है। हम क्यों नहीं किसी कृष्णा का गाना सुनते हैं? क्यों नहीं किसी सुशांत की फिल्में देखते हैं? क्यों थोपी गयी फूहड़ फिल्में हिट और अच्छी कलात्मक फिल्में फ्लॉप हो जाती हैं? हमारी वजह से ही न? आखिरकार किसकी वजह से होता है यह सब? क्या इसमें हम और आप शामिल नहीं हैं? संवेदना और दिमाग है तो संख्या मत बनिये।</div>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-14371121331796616062020-06-07T10:21:00.001-07:002020-06-07T10:21:01.063-07:00साइकिल की कहानी, आम आदमी के आवागमन की सवारी पर संकट-<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/5XQptId_ous" width="480"></iframe>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-61555233315189996652020-06-07T10:20:00.001-07:002020-06-07T10:20:04.386-07:00कहानी : गहने और बूंचा सांड़, लेखक ओमप्रकाश तिवारी<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/oZbuOBVdkdo" width="480"></iframe>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-1542062106159246972020-06-07T10:19:00.001-07:002020-06-07T10:19:20.689-07:00कविता : सीमाएं #hindipoeme<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/o5ruU7jiH_0" width="480"></iframe>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-74120764728858328462020-06-07T10:06:00.001-07:002020-06-07T10:06:33.887-07:00कहानी #लाशों पर दौड़ती कारें..<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/lmyROOCnPQU" width="480"></iframe>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-75159261084942960942020-06-07T10:04:00.003-07:002020-06-07T10:04:58.643-07:00कहानी : भूत भाग गया...कहानीकार, ओमप्रकाश तिवारी<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/WSeq2D0SMBM" width="480"></iframe>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-9076643892297408642020-06-07T10:04:00.001-07:002020-06-07T10:04:08.350-07:00साइकिल की कहानी, आम आदमी के आवागमन की सवारी पर संकट-<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/5XQptId_ous" width="480"></iframe>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-76497588769380963422020-06-07T10:03:00.001-07:002020-06-07T10:03:11.104-07:00कहानी : गहने और बूंचा सांड़, लेखक ओमप्रकाश तिवारी<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/oZbuOBVdkdo" width="480"></iframe>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-9512353261011257272020-06-07T10:02:00.001-07:002020-06-07T10:02:12.159-07:00कविता : सीमाएं #hindipoeme<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/o5ruU7jiH_0" width="480"></iframe>ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-55203703019819850702020-06-01T03:32:00.001-07:002020-06-01T03:32:00.826-07:00विचारhttps://youtu.be/lmyROOCnPQUओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-49976431785311010122019-03-18T00:34:00.000-07:002019-03-18T11:43:10.963-07:00कार्यकाल खत्म होने पर लोकपाल की नियुक्ति<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="mail-message expanded" id="m26112" style="font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 1.5; max-width: 328px; min-width: 328px; width: 328px;">
<div class="mail-message-content collapsible zoom-normal mail-show-images" style="line-height: 1.5; margin: 0px; max-width: 328px; min-width: 328px; width: 328px;">
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एक एनजीओ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए मोदी सरकार को फटकार लगाई तब जाकर चुनाव के समय लोकपाल की नियुक्ति होने जा रही है। खबर है कि देश के पहले लोकपाल का चयन कर लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल होंगे। चयन समिति ने 15 मार्च को एक बैठक में उनके नाम पर मुहर लगा दी है। चयन समिति में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया तरुण गोगोई, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लॉ मेकर्स ने उनके नाम पर अंतिम फैसला किया है। बताया जा रहा है जस्टिस घोष के कार्यभार संभालने का नोटिफिकेशन अगले सप्ताह जारी किया जा सकता है। </div>
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यह कार्य जो लोकसभा चुनाव के समय किया जा रहा है कायदे से इसे 2014 या 2015 में ही कर देना चाहिए था। लेकिन जब नीति और नीयत में खोट हो तो इस तरह का काम किया ही नहीं जाता है। एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा न खटखटाया होता और सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को फटकार न लगाई होती तो लोकपाल कौन नियुक्त करने वाला था। अब जब नियुक्ति हो जाएगी तो इस ओर भी सीना फुलाया जाएगा और कहा जाएगा कि जो काम 70 साल में नहीं हुआ उसे 5 साल में कर दिया। जो काम नेहरू ने नहीं किया उसे मोदी ने कर दिया। वगैरह वगैरह बातें होंगी। जबकि लोकपाल नियुक्त करने का कानून पिछली मनमोहन सरकार ही बना गयी थी। मोदी सरकार को केवल नियुक्ति करनी थी। इस काम में ही 5 साल लग गए। सोचिए यदि कानून बना होता तो क्या हाल होता। </div>
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वैसे लोकपाल का अपना एक इतिहास रहा है। लोकपाल बनाने का विधेयक जब-जब लोकसभा में लाया गया है तब-तब लोकसभा भंग हो गयी या खत्म हो गयी। </div>
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<br style="line-height: 1.5;" /></div>
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<span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">14 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">अगस्त</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">2001 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">को संसद के मानसून सत्र में लोकपाल विधेयक</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">2001 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">पेश करके प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस संस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जरूर जताई थी</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">लेकिन इससे पहले कि यह विधेयक पारित हो पाता सत्र खत्म हो गया। </span></div>
<div dir="auto" style="line-height: 1.5;">
<span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">दरअसल, लोकपाल के गठन की कवायद साल 1969 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">से चल रही है।</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">मोरारजी देसाई की अध्यक्षता वाले प्रशासनिक सुधार आयोग ने नागरिकों की शिकायतें दूर करने के बारे में अपनी अंतरिम रिपोर्ट</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1966 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में दी थी</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">जिसमें अन्य बातों के अलावा स्वीडन के ओम्बड्समैन की तरह लोकपाल संस्था स्थापित करने की सिफारिश थी। आयोग की इस सिफारिश पर अमल करते हुए पहली बार चौथी लोकसभा में</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1968 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में विधेयक पेश किया गया। यह</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1969 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में पारित भी हो गया</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">लेकिन राज्यसभा की मंजूरी मिलने से पहले ही लोकसभा भंग हो गई। इसके बाद इसे</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1971 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में पांचवीं लोकसभा में फिर पेश किया गया। फिर इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया। समिति ने जुलाई</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1978 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में रिपोर्ट दे दी</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">लेकिन जब रिपोर्ट पर लोकसभा में चर्चा हो रही थी</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">तभी लोकसभा भंग हो गई। इसके बाद इसे</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1985 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में आठवीं लोकसभा में लाया गया</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">लेकिन फिर वापस ले लिया गया।</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1989 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में फिर लोकपाल विधेयक लोकसभा में पेश किया गया। </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">लेकिन नौवीं लोकसभा के भंग होने से यह प्रस्ताव निरस्त हो गया।</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">13 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">सितंबर</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1996 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">को</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">11</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">वीं लोकसभा में एक बार फिर लोकपाल विधेयक प्रस्तुत किया गया। इसे गृह मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति को जांच करने और रिपोर्ट देने के लिए सौंपा गया। समिति ने</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">9 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">मई</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1997 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">को अपनी रिपोर्ट दे दी,</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">लेकिन इससे पहले कि सरकार उसकी सिफारिशों को अमली जामा पहना पाती</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">लोकसभा भंग हो गई। यही हाल इसका</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">12</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">वीं लोकसभा में हुआ</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">जब संसदीय समिति की रिपोर्ट पर विचार होने से पहले ही लोकसभा भंग हो गई। 13वीं लोकसभा में लोकपाल विधेयक लाया गया लेकिन इसे पारित नही किया गया। 14वी लोकसभा में भी लोकपाल विधयक पर चर्चा तक नहीं हुई, जबकि इस बीच कथित और तथाकथित कई घोटाले सामने आते रहे। 15 वीं लोकसभा के कार्यकाल के दौरान जब भाजपा और संघ के दबाव में अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में करीब 3 सालों तक बड़ा आंदोलन चला तब जाकर लोकपाल का कानून पारित हो पाया। लेकिन नियुक्ति फिर भी नहीं हो पाई। इसके बाद चुनाव हुए और सरकार बदल गयी। लोकपाल के नाम पर जिन्होंने अन्ना से आंदोलन कराया वह सत्ता में आ गए, लेकिन उन्होंने 16वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल में लोकपाल की नियुक्ति नहीं की। अब हो रही है जबकि इस लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने वाला है। 17वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव का एलान हो चुका है। देखना होगा कि इस बार लोकपाल की नियुक्ति सत्ता परिवर्तन कराती है कि नहीं। </span></div>
<div dir="auto" style="line-height: 1.5;">
</div>
<div dir="auto" style="line-height: 1.5;">
<span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">लोकपाल की परिकल्पना और जरूरत</span></div>
<div dir="auto" style="line-height: 1.5;">
<span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"><br style="line-height: 1.5;" /></span></div>
<div dir="auto" style="line-height: 1.5;">
<span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">स्वीडन में</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1909 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में ओम्बुड्समैन नामक संस्था की परिकल्पना की गई</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">जिसे </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1919 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में फिनलैंड ने मूर्त रूप दिया। इसके बाद</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1955 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में डेनमार्क ने</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, 1962 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में न्यूजीलैंड ने और</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">1964 </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">में ब्रिटेन ने इसे अपनाया। अलबत्ता इन सभी देशों में इसका उद्देश्य समान होते हुए भी रूप भिन्न है। यानी सभी ने अपनी-अपनी जरूरतों के हिसाब से इसे लागू किया।</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;"> </span><span style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;"></span><br />
<span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">भारत में तो आजादी के बाद से ही लोकपाल की आवश्यकता महसूस की जाने लगी थी, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">क्योंकि हमें जो सत्ता अंग्रेजों से मिली थी</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">उसकी बुनियाद ही भ्रष्टाचार पर टिकी थी। स्वाभाविक था कि आजादी के साथ हमें भ्रष्टाचार भी मिला। इससे जूझने के लिए लोकपाल की जरूरत महसूस की गई</span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "times new roman"; font-size: 20px; line-height: 1.5;">, </span><span original_font_size="20px" style="background-color: white; color: #292929; font-family: "lora" , serif; font-size: 20px; line-height: 1.5;">लेकिन राजनीतिक स्वार्थों ने इसे हकीकत में बदलने नहीं दिया। </span></div>
<div dir="auto" style="line-height: 1.5;">
@#ओमप्रकाश तिवारी, लेख, लोकपाल</div>
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ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-42836175930955760922018-12-02T14:50:00.001-08:002018-12-02T14:50:30.846-08:00फ्रांस में जो हो रहा है उसके ऐतिहासिक सबक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGI86yYbflaADm6G31v_BbVJpW2UrPG6QxmTAX52ilczNVD0O0HgHc-qqpt-4P6zg90eCmHjRGnIeWEWQqM8fFv4l7OBAx5VVV-ALFareSrDqq4r881WH6Bbls3BL49Z_ya8lvXnE42yVM/s1600/france2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="461" data-original-width="722" height="204" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGI86yYbflaADm6G31v_BbVJpW2UrPG6QxmTAX52ilczNVD0O0HgHc-qqpt-4P6zg90eCmHjRGnIeWEWQqM8fFv4l7OBAx5VVV-ALFareSrDqq4r881WH6Bbls3BL49Z_ya8lvXnE42yVM/s320/france2.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
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<div dir="auto">
<span style="font-family: Arial; font-size: x-small;"><div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
क्या आप जानते हैं कि फ्रांस में आजकल क्या हो रहा है? जो हो रहा है उसका मतलब क्या है? उसका सबक क्या है? किस ओर इशारा कर रहा है? जो लोग सड़क पर उतर कर विरोध कर रहे हैं क्या उन्हें ऐसा करना चाहिए? क्या वह गलत हैं? क्या उनके प्रदर्शन से इतिहास की किसी घटना की याद आती है? क्या इससे पूरे विश्व के लोगों और शासकों को कोई संदेश जाता है? इतने सारे सवालों का जवाब जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि इतिहास अपने आपको तभी दोहराता है जब शासक उसे जीने लगता है। किसी ने दुरुस्त फरफ़ाय है कि इतिहास जीने के लिए नहीं होता है। लेकिन शासक अक्सर इससे सबक नहीं लेते। यह भी कह सकते हैं कि उनका अल्प ज्ञान उन्हें न अतीत से कुछ सीखने देते है न ही भविष्य को लेकर दूरदर्शी होने देता है। ऐसे शासकों को अधिकतर समय क्षुद्रताओं में ही व्यतीत हो जाता है। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
बहरहाल, यह जानना जरूरी है कि फ्रांस में हो क्या रहा है। हो यह रहा है कि <b style="font-family: Arial; font-size: small;"><span style="color: blue; font-size: medium;"><span style="color: blue; font-size: medium;">फ्रांस</span></span><span style="font-size: medium;"> में पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतों और महंगाई को लेकर जन आंदोलन चल रहा है, जोकि 2 दिसंबर से </span></b><b style="font-family: Arial; font-size: small;"><span style="font-size: medium;">हिंसक रूप ले चुका है। राजधानी पेरिस में सड़कों पर उतरे युवा वाहनों और सरकारी इमारतों में तोड़फोड़ और आगजनी की।</span></b><b style="font-family: Arial; font-size: small;"><span style="font-size: medium;"> इस पर लगाम के लिए </span><span style="color: blue; font-size: medium;"><span style="color: blue; font-size: medium;">फ्रांस</span></span><span style="font-size: medium;"> के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों आपातकाल लगाने पर विचार कर रहे हैं। </span></b></div>
<div style="background-color: white; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<b style="font-family: Arial; font-size: small;"><span style="font-size: medium;"><span style="color: #222222;">पिछले दो हफ्ते से पेरिस में महंगाई और सरकार के कर बढ़ाने के विरोध में चल रहे प्रदर्शनों के उग्र होने से 133 लोग घायल हो गए हैं, जिसमें 23 सुरक्षाकर्मी भी शामिल हैं। अब तक 300 से अधिक प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। मैक्रों ने रविवार को दंगा प्रभावित इलाके का दौरा भी किया।</span><span style="color: blue;"> </span></span></b></div>
<div style="background-color: white; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<b style="color: #222222; font-family: Arial; font-size: small;"><span style="font-size: medium;"><span style="color: black;">सरकार के प्रवक्ता बेंजामिन ग्रीवोक्स ने मीडिया से कहा है कि राज्य में शांति बहाली के लिए और प्रदर्शनकारियों से बातचीत के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। जब ग्रीवोक्स से आपातकाल लागू करने को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सरकार के पास यह भी एक विकल्प है। </span></span></b><b style="font-family: Arial; font-size: small;"><span style="font-size: medium;"></span></b></div>
<div style="background-color: white; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<b style="color: #222222; font-family: Arial; font-size: small;"><span style="font-size: medium;"><span style="color: black;">दरअसल, </span></span></b><span style="font-family: Arial; font-size: x-small;">फ्रांस में कारों में इस्तेमाल होने वाला डीजल सबसे प्रमुख ईंधन है। पिछले 12 महीनों में डीजल की कीमत में 23 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। फ्रांस में डीजल की कीमत 1.7 डॉलर यानी 116.86 रुपये प्रति लीटर है जो कि 2000 के दशक के बाद से सबसे ज्यादा है। मैक्रों सरकार ने इस साल प्रति लीटर डीजल पर 7.6 फीसदी हाइड्रोकार्बन टैक्स लगा दिया था। इसी के विरोध में वहां की जनता विरोध कर रही है। लेकिन सरकार उनकी नहीं सुन रही है। ऐसे में प्रदर्शन हिंसक होता जा रहा है। सरकार शायद यही चाहती भी है। ताकि वह आंदोलन को कुचल सके। ऐसे हालात तभी बनते हैं जब सरकार का सरोकार जनता के प्रति खत्म हो जाता है और वह धनपतियों के लिए जीने मरने लगती है। </span></div>
<div style="background-color: white; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<span style="font-family: Arial; font-size: x-small;">सवाल यह है कि इस आंदोलन का इतिहास से क्या लेनादेना है? जवाब के लिए आइए इतिहास को जानते हैं। </span><span style="color: #222222;">फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र था जो राजत्व के दैवी सिद्धान्त पर आधारित था। इसमें राजा को असीमित अधिकार प्राप्त थे और वह स्वेच्छाचारी था। लुई 14वें के शासनकाल में (1643-1715) निरंकुशता अपनी पराकाष्ठा पर थी। उसने कहा- मैं ही राज्य हूं। वह अपनी इच्छानुसार कानून बनाता था। उसने शक्ति का अत्यधिक केन्द्रीयकरण राजतंत्र के पक्ष में कर दिया। कूटनीति और सैन्य कौशल से फ्रांस का विस्तार किया। इस तरह उसने राजतंत्र को गंभीर पेशा बनाया।</span></div>
</span><span style="font-family: Arial; font-size: x-small;"><div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<b></b> लुई 14वें ने जिस शासन व्यवस्था का केन्द्रीकरण किया था उसने योग्य राजा का होना आवश्यक था किन्तु उसके उत्तराधिकारी <a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?q=https://hi.wikipedia.org/w/index.php?title%3D%25E0%25A4%25B2%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%2588_%25E0%25A5%25A7%25E0%25A5%25AB%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%2582%26action%3Dedit%26redlink%3D1&source=gmail&ust=1543876329582000&usg=AFQjCNEnPa_geStpH_DWJyRWj95_iEQSww" href="https://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%88_%E0%A5%A7%E0%A5%AB%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82&action=edit&redlink=1" rel="noreferrer" style="background: none 0% 0% repeat scroll transparent; color: #a55858; text-decoration-line: none;" target="_blank">लुई १५वां</a> एवं <a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?q=https://hi.wikipedia.org/w/index.php?title%3D%25E0%25A4%25B2%25E0%25A5%2582%25E0%25A4%2588_%25E0%25A5%25A7%25E0%25A5%25AC%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%2581%26action%3Dedit%26redlink%3D1&source=gmail&ust=1543876329582000&usg=AFQjCNFCGryF2iwIkuy45fMvowCuW2zkBw" href="https://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B2%E0%A5%82%E0%A4%88_%E0%A5%A7%E0%A5%AC%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%81&action=edit&redlink=1" rel="noreferrer" style="background: none 0% 0% repeat scroll transparent; color: #a55858; text-decoration-line: none;" target="_blank">लूई १६वाँ</a> पूर्णतः अयोग्य थे। लुई 15वां (1715-1774) अत्यंत विलासी, अदूरदर्शी और निष्क्रिय शासक था। आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध एवं सप्तवर्षीय युद्ध में भाग लेकर देश की आर्थिक स्थिति को भारी क्षति पहुँचाई। इसके बावजूद भी वर्साय का महल विलासिता का केन्द्र बना रहा। उसने कहा कि मेरे बाद प्रलय होगी। </div>
</span><div style="background-color: white; color: #222222; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
क्रांति की पूर्व संध्या पर लुई 16वें (1774 - 93) का शासक था। वह एक अकर्मण्य और अयोग्य शासक था। उसने भी स्वेच्छाचारित और निरंकुशता का प्रदर्शन किया। उसने कहा कि यह चीज इसलिए कानूनी है कि यह मैं चाहता हूं। अपने एक मंत्री के त्यागपत्र के समय उसने कहा कि-काश! मैं भी त्यागपत्र दे पाता। उसकी पत्नी मेरी एन्टोनिएट का उस पर अत्यधिक प्रभाव था। वह फिजूलखर्ची करती थी। उसे आम आदमी की परेशानियों की कोई समझ नहीं थी। एक बार जब लोगों का जुलूस रोटी की मांग कर रहा था तो उसने सलाह दी कि यदि रोटी उपलब्ध नहीं है तो लोग केक क्यों नहीं खाते।</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
इस तरह देश की शासन पद्धति पूरी तरह नौकरशाही पर निर्भर थी। जो वंशानुगत थी। उनकी भर्ती तथा प्रशिक्षण के कोई नियम नहीं थे और इन नौकरशाहों पर भी नियंत्रण लगाने वाली संस्था मौजूद नहीं थी। इस तरह शासन प्रणाली पूरी तरह भ्रष्ट, निरंकुश, निष्क्रिय और शोषणकारी थी। व्यक्तिगत कानून और राजा की इच्छा का ही कानून लागू होता था। फलतः देश में एक समान कानून संहिता का अभाव तथा विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कानूनों का प्रचलन था। इस अव्यवस्थित और जटिल कानून के कारण जनता को अपने ही कानून का ज्ञान नहीं था। इस अव्यवस्थित निरंकुश तथा संवेदनशील शासन तंत्र का अस्तित्व जनता के लिए कष्टदायी बन गया। इन उत्पीड़क राजनीतिक परिस्थितियों ने क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया। फ्रांस की अराजकपूर्ण स्थिति के बारें में यू कहा जा सकता है कि बुरी व्यवस्था का तो कोई प्रश्न नहीं, कोई व्यवस्था ही नहीं थी।</div>
<span style="font-family: Arial; font-size: x-small;"><div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<b></b> ऐसे हालात के विरोध में फ्रांसीसी क्रांति हुई। जिसका असर पूरी दुनिया पर हुआ। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<b>साल </b>1789-1799 <a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?q=https://hi.wikipedia.org/wiki/%25E0%25A4%25AB%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25B8_%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE_%25E0%25A4%2587%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B8&source=gmail&ust=1543876329582000&usg=AFQjCNHNqO1Kc0DK2l7RINjc3qv140cpaw" href="https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8" rel="noreferrer" style="background: none 0% 0% repeat scroll transparent; color: #0b0080; text-decoration-line: none;" target="_blank">फ्रांस के इतिहास</a> की राजनैतिक और सामाजिक उथल-पुथल एवं आमूल परिवर्तन की अवधि थी। बाद में, <a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?q=https://hi.wikipedia.org/wiki/%25E0%25A4%25A8%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25AF%25E0%25A4%25A8_%25E0%25A4%25AC%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%259F&source=gmail&ust=1543876329582000&usg=AFQjCNEHxlB6L-gSldiqCB9uy-v5Re6ccw" href="https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%A8_%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F" rel="noreferrer" style="background: none 0% 0% repeat scroll transparent; color: #0b0080; text-decoration-line: none;" target="_blank">नेपोलियन बोनापार्ट</a> ने <a data-saferedirecturl="https://www.google.com/url?q=https://hi.wikipedia.org/wiki/%25E0%25A4%25AB%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2580_%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AE%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%259C%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AF&source=gmail&ust=1543876329582000&usg=AFQjCNHhicpUyuSyl9QofK_olS4_gxUSuQ" href="https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A5%80_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF" rel="noreferrer" style="background: none 0% 0% repeat scroll transparent; color: #0b0080; text-decoration-line: none;" target="_blank">फ्रांसीसी साम्राज्य</a> के विस्तार द्वारा कुछ अंश तक इस क्रांति को आगे बढ़ाया। क्रांति के फलस्वरूप राजा को गद्दी से हटा दिया गया, एक गणतंत्र की स्थापना हुई। खूनी संघर्षों का दौर चला, और अन्ततः नेपोलियन की तानाशाही स्थापित हुई जिससे इस क्रांति के कई मूल्यों पश्चिम यूरोप में तथा उसके बाहर प्रसार हुआ। इस क्रान्ति ने आधुनिक इतिहास की दिशा बदल दी। इससे विश्व भर में निरपेक्ष राजतन्त्र का ह्रास होना शुरू हुआ, नये गणतन्त्र और उदार प्रजातन्त्र बने।</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
आधुनिक युग में जिन महापरिवर्तनों ने पाश्चात्य सभ्यता को हिला दिया उसमें फ्रांस की राज्यक्रांति सर्वाधिक नाटकीय और जटिल साबित हुई। इस क्रांति ने केवल फ्रांस को ही नहीं अपितु समस्त यूरोप के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। फ्रांसीसी क्रांति को पूरे विश्व के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है। इस क्रान्ति ने अन्य यूरोपीय देशों में भी स्वतन्त्रता की ललक कायम की और अन्य देश भी राजशाही से मुक्ति के लिए संघर्ष करने लगे। इसने यूरोपीय राष्ट्रों सहित एशियाई देशों में राजशाही और निरंकुशता के खिलाफ वातावरण तैयार किया। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
आज समूची दुनिया में यही उदार और कल्याणकारी लोकतंत्र खतरे में है। पूरी दुनिया में अमीरों और गरीबों के बीच खाईं चौड़ी होती जा रही है। धार्मिक कट्टरता बढ़ती जा रही है। इसी के साथ अंध राष्ट्रवाद भी बढ़ता जा रहा है। रूढ़िवादी और चरमपंथी शक्तियां या तो सत्ता में गेन या उन्हें प्रभावित करने की स्थिति में हैं। ऐसे में लोकतंत्र खतरे में है। फ्रांस के ताजा जन आंदोलन इसी लोकतंत्र को बचाने और उदार बनाने के लिए है। इतिहास बताता है कि फ्रांस के लोग क्रांतिकारी होते हैं और उनकी क्रांति से न केवल व्यवस्था बदलती है बल्कि समूचा विश्व प्रभावित होता है और बदलता है। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 22px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<br /></div>
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ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-55332526628215318012018-11-30T20:18:00.000-08:002018-11-30T20:18:05.521-08:00कवि किसान और किसान कवि होता है...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizqz1XOT2fi3-DRJqwwlPytyk1YtEagi_SA7u281T7y8XXbAHbOjLvsLk3pyEtMBuujc4m8M5XEbLLi8U3NvLgl33fCr1FELjpKAmAIa0CfW4op8GEApJOZAwJmsBdrXldQMII3uuHVL1Z/s1600/IMG_20181130_041928.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="715" data-original-width="1080" height="211" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizqz1XOT2fi3-DRJqwwlPytyk1YtEagi_SA7u281T7y8XXbAHbOjLvsLk3pyEtMBuujc4m8M5XEbLLi8U3NvLgl33fCr1FELjpKAmAIa0CfW4op8GEApJOZAwJmsBdrXldQMII3uuHVL1Z/s320/IMG_20181130_041928.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
प्रिय नितेश,<br />
बहुत ही निराशाजनक है आपका वक्तव्य। उसे पढ़ने के बाद मैं जो लिखने जा रहा हूं उसे ध्यान से पढ़ना। ये ज्ञान की बातें नहीं हैं। <br />
हर किसी का यथार्थ स्वप्नलोक जैसा नहीं होता है। इसीलिए स्वप्नलोक रचना पड़ता है। एक सपना देखना पड़ता है फिर उसके लिए जीना पड़ता है। फिर यही जीवन हसीन हो जाता है। कवि अवतार सिंह पाश ने लिखा है कि बहुत खतरनाक होता है सपनों का मर जाना....जिसके सपने मरते हैं वह उसी दिन मर जाता है... हमारे देश मे ऐसे 60 फीसदी लोग हैं, जो लाश हैं। मरे हुए हैं। फिर भी जिंदा कहे जाते हैं। ये इसलिए मरे हुए हैं, क्योंकि इन्होंने अपने सपनों को मार रखा है। इन्होंने स्वप्नलोक रचना छोड़ दिया है। उम्मीद छोड़ दी है। मैं मानता हूं कि असंभव कुछ भी नहीं है। अपने दायरे और अपनी क्षमताओं को पहचानें। उसी के अनुकूल सपने बुनें। कामयाब होंगे। जरूर होंगे। मैंने यह किया है। कोई भी कर सकता है। लाखों लोग कर रहे हैं। बचपन में जब साइकिल नहीं थी तो उसके सपने देखता था। साइकिल मिली। फिर बाइक का सपना देखने लगा, वह भी मिली। इसी तरह बचपन में बैल से खेत जोतते देखता तो कल्पना करता कि कोई मशीन होती जो पल भर में खेत जोत देती। फ़सल काट देती। आज ऐसा हो रहा है। ऐसी मशीनें हैं।<br />
मेरा अखबार में जो पहला लेख छपा था वह यही था कि सपने भी जीवन देते हैं..देखकर तो देखो...अपने लिए न सही। अपनी मां के लिए। जिससे आपका अस्तित्व है। पिता के लिए जो आपके होने का सबूत है। इन दोनों के उस असीम प्यार के लिए जो आप पर इतने सालों तक न्योछावर किया है...अपने भाइयों के लिए जो आपको बहुत प्यार करते हैं...अपने दोस्तों के लिए...किसी परिचित के लिये। मेरे लिये...किसी के भी लिए।<br />
कविता कोई उत्पाद नहीं है। न ही कवि फैक्ट्री है। कविता फसल है और कवि किसान है। एक फसल के उत्पादन के लिए किसान 4 से 6 माह की प्रतीक्षा करता है। फसल के बोने से लेकर पकने तक एक किसान कई प्रक्रियाओं से गुजरता है। फसल बोने से पहले किसान खेत की तैयारी करता है। बीज का चयन करता है। फिर खाद डालता और फिर बिजाई करता है। उसके बाद उसकी सिंचाई और निराई-गुड़ाई करता है। इन सब के बीच हर सुबह हर शाम और हर दोपहर खेत में जाता है। फसल को निहारता है। फसल अच्छी तो खुश होता है। सपने देखता है। पालता है और बुनता है। फसल खराब हुई तो निराश हो जाता है, लेकिन उसी समय से अगली फसल के लिए तैयारी शुरू कर देता है। फिर सपने देखने लगता है। कविता भी फसल है, जिसे कवि बोता है। कवि किसान होता है। किसान सहनशील, धैर्यवान, संयमी, पुरुषार्थी, स्वप्नजीवी और आशावान होता है। वह कहता है जब तक सांस है आस है। नर हो न निराश करो मन की भावना भी उसी में होती है। किसान है तो समाज है। मनुष्य है। मानवता है और मानव सभ्यता है। जिस दिन किसान नहीं, उसी दिन यह मानव सभ्यता भी नहीं होगी। किसान का यथार्थ ही उसे स्वप्नजीवी बनाता है। अपने यथार्थ पर ही वह स्वप्नलोक रचता है। किसान रचयिता है। सृजनकर्ता है। इसीलिए वह कवि है और कवि इसलिए किसान है।<br />
क्योंकि वह कविता रचता है। कविता जो समाज को संवेदनशील बनाती है। स्वप्निल बनाती है। कविता निराश को, हताश को हौसला देती है। कविता सपने देखना बताती है। सिखाती है। बिना पंख उड़ना सिखाती है। उड़ने का हौसला देती है। उम्मीद भर्ती है। मनुष्य को इंसान बनाती है। कविता विविधता में एकता के रंग भर्ती है। समाज मे समरसता घोलती है। कविता कवि की रचना है लेकिन वह मानवता का पाठ होती है। इसलिए वही कवि है जो किसान जैसा है। जो किसान जैसा नहीं है उसकी कविता में कोई सार, कोई पाठ, कोई संदेश, कोई स्वप्न, कोई आशा, कोई उम्मीद , कोई मानवता, कोई संवेदनशीलता, कोई इंसानियत, कोई ईश्वर नहीं होता है।<br />
शहीद भगत सिंह ने एक सपना देखा और उसके लिए जिये। मरे तो उसी सपने के लिए और शहीद कहलाये। देश के गौरव बने। यही हाल अन्य क्रांतिकारियों का रहा। भले ही उनके जीते उनका सपना पूरा नहीं हुआ लेकिन उन्होंने सपना देखा। उसे पूरा करने के लिए उसे जिया। उनके मरने के बाद ही सही उनका सपना पूरा हुआ। महात्मा गांधी जी ने आजाद भारत का सपना नहीं देखा होता तो आजादी की लड़ाई क्यों लड़ते और आज देश के राष्ट्रपिता कैसे कहे जाते? लेनिन ने सपने नहीं देखे होते तो रूस में क्रांति नहीं होती और दुनिया एक प्रगतिशील विचार को धरातल पर मूर्त रूप में, साकार रूप में देखने से वंचित रह जाती। इसलिए मेरे मित्र आने यथार्थ को पहचानें उस किसान की तरह जो खेत की मिट्टी को पहचान कर फसल का चयन करता है। जो मौसम के अनुकूल फसल की बिजाई करता है और उसका उत्पादन करता है। किसान बनो और उसके पसीने की गंध को पहचानो....<br />
- ओमप्रकाश तिवारी</div>
ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-60791123165730216952018-11-29T14:41:00.000-08:002018-11-29T14:41:44.763-08:00संवाद हो तो बात भी निकलेगी...दीवार भी गिरेगी.... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">क्या भारत और पाकिस्तान एक हो सकते हैं? आज के समय में इसका एक ही जवाब हो सकता है कि नहीं। लेकिन कोई भी स्वप्नद्रष्टा, चिंतक और दार्शनिक तथा सूझबूझ वाला इंसान, अमन प्रेमी, शांतिप्रेमी, सद्भना का पथप्रदर्शक यही कहेगा कि हां, ऐसा हो सकता है।</span><br />
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करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास के मौके पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि अगर फ्रांस जर्मनी एक साथ आ सकते हैं तो भारत और पाकिस्तान ऐसा क्यों नहीं कर सकते? उन्होंने यह भी कहा कि हमने एक दूसरे के लोग मारे हैं, लेकिन फिर भी सब भूला जा सकता है। उनका कहना था कि सब कहते हैं कि पाक फौज दोस्ती नहीं होने देगी, लेकिन आज उनकी पार्टी-पीएम और फौज एक साथ है...दोनों देशों के बीच मतभेद का सबसे बड़ा मसला सिर्फ कश्मीर है... इसे हम बातचीत से सुलझा सकते हैं। </div>
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इसे बहुत ही सतही तकरीर कहा जा सकता है। कूटनीतिक भी कहा जा सकता है और मुश्किल समय में साफ़गोई भी कहा जा सकता है। इमरान की इस तकरीर पर भारत की ओर से त्वरित प्रतिक्रिया आयी कि नहीं, बातचीत तब तक नहीं हो सकती जब तक कि पाकिस्तान अपनी धरती से आतंकवाद का संचालन बन्द नहीं कर देता।</div>
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इमरान को पता था कि भारत यही प्रतिक्रिया देगा। इसीलिए उन्होंने कहा भी कि मैं यह उम्मीद करता हूँ कि ये न हो कि हमें सिद्धू का इंतजार करना पड़े कि जब वह वजीर-ए-आजम बनेंगे तब पाकिस्तान और हिंदुस्तान की दोस्ती होगी। इमरान ने यह बात अनायास नहीं बिल्कुल सयास कही। वह जानते हैं कि इससे भारत की हुकूमत चिढ़ेगी। क्योंकि उसे सिद्धू से चिढ़ है। उसे इमरान और सिद्धू की दोस्ती से भी चिढ़ है। यही वजह है कि वह यह कहते हैं कि पिछली बार सिद्धू आये तो वापस जाने के बाद उनकी अलोचना हुई थी। इस बार भी पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के मना करने के बावजूद वह पाकिस्तान गए। यह भी की अमरिंदर सिंह ने दो दिन पहले ही इसी कॉरिडोर के शिलान्यास के अवसर पर पाकिस्तान के खिलाफ सिंह गर्जना कर चुके हैं। यह भी कह चुके हैं कि मैं लोगों को मारने वालों के साथ नहीं खड़ा हो सकता। सभी जानते हैं कि अमरिंदर सिंह ने जो कहा वह भारत के एक बड़े वर्ग की मानसिकता है। इमरान भी इसे जानते हैं। वह क्रिकेटर से सियासतदानों में शामिल हुए हैं। भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट के प्रति दीवानगी ही एक दूसरे की नफरत पर टिकी है। इसे इमरान से बेहतर कौन जान सकता है। तभी वह कहते हैं कि एक नेता चांस लेता है...ख्वाब देखता है...दूसरी तरह का नेता डर-डर कर वोट बैंक देखता है...एक नफ़रतें फैलाकर वोट लेता है...दूसरा इंसानों को जोड़कर...यह आज की भारतीय सियासत पर सटीक टीप्पणी है, लेकिन इससे अलहदा पाकिस्तान भी नहीं है। इमरान के बोल बेशक इंसानियत में पगे हों लेकिन कर्म ऐसे नहीं लगते हैं। वह कहते हैं कि पाक पीएम और फौज एक है तो उन्हें आतंकवाद को खत्म करने वाले कदम उठाने होंगे। लेकिन यह भी सच है कि सीमा के इस पार नफरत के गीत गए जाएंगे तो सीमा के उस पार भी ऐसे ही सुर उठेंगे। </div>
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कोई भी भूभाग तभी किसी का हो सकता है जबकि उस भूभाग पर रहने वालों को वह अपना समझेगा। साफ है कि भूभाग से पहले वहां के नागरिकों को अपनाना पड़ता है। यह तो शांति और अमन की प्रक्रिया है। दूसरी प्रक्रिया है कि उस भूभाग के नागरिकों का कत्ल करके उस पर कब्जा कर लिया जाय। जाहिर है इसके बाद क्या मिलेगा। एक रक्तरंजित जमीन। जिस पर शांति के फूल कभी खिल ही नहीं सकते। </div>
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वरिष्ठ साहित्यकार प्रियवंद अपनी पुस्तक भारत विभाजन की अन्तर्कथा में लिखते हैं कि कोई नहीं चाहता था की भारत का विभाजन हो फिर भी हो गया। महात्मा गांधी चाहते थे कि देश का बंटवारा न हो, लेकिन उस समय ऐसे लोग थे जो यह चाहते थे कि देश बंट जाय। मुसलमान यहां से चले जायं, ताकि वह हिंदू राष्ट्र बना सकें। बल्कि कुछ लोग तो यह भी चाहते थे कि देश का बंटवारा न हो, लेकिन यहां मुसलमान भी न रहें । ऐसी सोच वालों ने ही महात्मा गांधी की हत्या कर दी। आज भी ऐसी सोच वालों की संख्या कम नहीं है। </div>
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इसी तरह कोई नहीं जानता कि विभाजन के लिए जिम्मेदार कौन है? कोई कहता है कि अंग्रेजी हुकूमत। कोई कहता है कि जिन्ना। कोई कहता है कि नेहरू। कोई कहता है कि महात्मा गांधी। कोई सरदार पटेल को जिम्मेदार मानता है। इतिहास के ये ऐसे चरित्र हैं जो कि विभिन्न तर्कों और नजरियों से विभाजन के जिम्मेदार लगते भी हैं, लेकिन क्या यह विभाजन के जिम्मेदार हैं? यह बड़ा सवाल है। </div>
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समग्रता में देखा जाय तो इनकी भूमिका रंच मात्र ही दिखाई पड़ती है। हालात ही कुछ ऐसे बना दिये गए थे कि इन्हें फैसला करना ही था। अब सवाल यह है कि हालात किसने बनाये थे? जाहिर है जिसे इसका फायदा लेना था। वह थी अंग्रेजी हुकूमत। वह बांट कर और लड़ाकर इस देश पर हुकूमत करती रही। आगे भी उसकी यही योजना और साजिश थी। विभाजन का उसका षड्यंत्र सफल रहा लेकिन दोबारा शासन के उसके मंसूबे पूरे नहीं हो पाए। लेकिन यह सच तो बना ही है कि हम आज भी लड़ रहे हैं और इसमें उल्लू अंग्रेजों का ही सीधा हो रहा है। और यह तब तक होता रहेगा जब तक कि हम लड़ते रहेंगे। आजादी के समय के नेताओं ने धर्म और संस्कृति के नाम पर एक दूसरे से नफरत न कि होती और एक दूसरे से से संवाद रखा होता तो भारत विभाजन न होता। यही बात अब भी लागू होती है कि भारत और पाकिस्तान संवाद करते हैं कि नहीं। गुलजार जी का गीत है कि बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी...जरूरी है कि कोई बात निकले..। शांति, सौहार्द, अमन की बात निकलेगी तो दूर तक जाएगी... नफरत की कोई उम्र नहीं होती... नफरत करने वाली कौमें जिंदा भी नहीं रहतीं...</div>
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बात इमरान खान के भाषण की करें तो उसमें अंतर्विरोध हैं। लेकिन बिना द्वंद्व के कोई विचार आगे भी नहीं बढ़ता। करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास के मौके पर किसी खालिस्तान समर्थक का होना ही सन्देह पैदा करता है। पाक आर्मी चीफ जब गोपाल सिंह चावला से हाथ मिला रहे थे तो इमरान खान का हाथ जोड़कर खड़े नवजोत सिंह सिद्धू, हरसिमरन जीत कौर और हरदीप सिंह पुरी को मुस्कराते हुए देखना अजीब सा लग रहा था...। हालांकि यह अच्छा दृश्य हो सकता था...। बावजूद इसके दोनों देशों में बातचीत होनी ही चाहिए। इतिहास जीने के लिए नहीं सीखने के लिए ही होना चाहिए...। लेकिन सवाल यही है कि क्या आज के हालात में बातचीत संभव है? लगता तो बिल्कुल भी नहीं है। लेकिन दोनों मुल्कों को एक न एक दिन तो बात करनी ही होगी...</div>
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- ओमप्रकाश तिवारी</div>
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ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-78682193806536163612018-11-29T14:33:00.000-08:002018-11-29T14:35:45.177-08:00कुपोषण के समुद्र में करोड़पतियों का टापू<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="font-family: "arial"; font-size: x-small;"><span style="font-size: medium;">कुपोषण के समुद्र में करोड़पतियों का टापू<br />
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ओमप्रकाश तिवारी<br />
हमारे देश की अर्थव्यवस्था त्रिस्तरीय है। जातियों में बंटे होने की वजह से सामाजिक व्यवस्था में कितने स्तर है कहा नहीं जा सकता। इसका आकलन समाजशास्त्री भी शायद ही कर पाएं। अमूमन अर्थशास्त्री मानते हैं कि हमारे देश में दो देश हैं। एक इंडिया, जिसे आजकल न्यू इंडिया कहा जा रहा है। दूसरा भारत। जो हिंदी सहित दूसरी स्थानीय भाषाओं के साथ जिंदगी की जद्दोजहद करते हुए जीते और आगे बढ़ते है। लेकिन यह आधा सच है। इस देश में एक तीसरा देश भी बसता है। इसका जिक्र मैंने अपने उपन्यास अंधेरे कोने में किया है। यह है भैया का भाईंग। इसमें स्थानीय बोली बोलने वाले मजदूर, किसान और उपेक्षित लोग बसते हैं। यह न्यू इंडिया से दूर भारत के थोड़ा करीब निवास करते हैं।<br />
त्रिस्तरीय अर्थव्यवस्था वाला हमारा देश करोड़पतियों की संख्या और उनके विकास के मामले में एशिया प्रशांत देशों में सबसे आगे है। साल 2016-17 के दौरान भारत में करोड़ पतियों की संख्या 20 फीसदी और उनकी संपत्ति 22 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ी है। यह आकलन कंसल्टेंसी केपजेमिनी ने किया है। आंकड़े 28 नवंबर 2018 को जारी किया है। यहा करोड़ पतियों से मतलब उनसे है जिनके पास कम से कम एक मिलियन डॉलर यानी 7 करोड़ रुपये की संपत्ति है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में जपं के अमीरों के पास सबसे ज्यादा 541 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति है। दूसरे स्थान पर चीन के अमीर हैं, जिनकी कुल संपत्ति 454 लाख करोड़ रुपये है। एशिया के सभी अमीरों की संपत्ति 2017 में 1512 लाख करोड़ रुपये थी जो कि 2010 की तुलना में दोगुनी है। 2025 तक इसके दोगुनी होकर 3 हजार लाख करोड़ रुपये हो जाने की संभावना है। पिछले साल दुनिया भर में अमीरों की संपत्ति में जो इजाफा हुआ उसमे 41.4% एशिया फैसिफिक का था।<br />
यह एक तस्वीर है। हमारे देश सहित पूरे एशिया की। अब एक दूसरी तस्वीर देखिए। एक रिपोर्ट के अनुसार कुपोषण में भारत विश्व में नंबर एक है। पाक से भी चार गुना ज्यादा हैं यहां अविकसित बच्चे। समाचार एजेंसी पीटीआई लिखती है कि भारत इस समय कुपोषण के खतरनाक स्तर से जूझ रहा है। विश्व में स्टंटिड (कुपोषण के कारण अविकसित रह जाने वाले) बच्चों में करीब 31 फीसदी हिस्सेदारी भारत की है। इस मामले में भारत विश्व में नंबर एक स्थान पर है। यहां तक कि बाल विकास में गड़बड़ी के मामले में भारत का चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान भी उससे चार गुना पीछे है। यह दावा 29 नवंबर को पेश की गई एक वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2018 में किया गया है।<br />
इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के अध्ययन पर आधारित इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर 5 साल से कम उम्र के 15.08 करोड़ बच्चे स्टंटिड और 5.05 करोड़ बच्चे वैस्टिड (वजन में उम्र के हिसाब से कमी) का शिकार हैं। कुपोषण के कारण ओवरवेट होने की समस्या के शिकार 3.83 करोड़ बच्चों में 10 लाख से ज्यादा की संख्या रखने वाले दुनिया के 7 देशों में भी भारत शामिल है। इस लिस्ट में अन्य देश अमेरिका, चीन, पाकिस्तान, मिस्र, ब्राजील और इंडोनेशिया हैं।<br />
दुनिया के 141 देशों में किए गए विश्लेषण पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार, करीब 88 फीसदी यानि 124 देश कुपोषण की किसी न किसी एक स्थिति के अवश्य शिकार पाए गए हैं।<br />
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क्या हैं स्टंटिड व वैस्टिड<br />
बता दें कि स्टंटिड या उम्र के हिसाब से कम लंबाई की समस्या लंबे समय तक पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिलने और लगातार इंफेक्शन का शिकार होने के कारण होती है, जबकि वैस्टिड या लंबाई के हिसाब से बेहद कम वजन की समस्या भुखमरी का पुख्ता संकेत मानी जाती है। वैस्टिड को 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर का बड़ा कारण माना जाता है।<br />
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स्टंटिड बच्चों में टॉप-3<br />
देश शिकार बच्चे<br />
भारत 4.66 करोड़<br />
नाइजीरिया 1.39 करोड़<br />
पाकिस्तान 1.07 करोड़<br />
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वैस्टिड बच्चों में टॉप-3<br />
देश शिकार बच्चे<br />
भारत 2.55 करोड़<br />
नाइजीरिया 34 लाख<br />
इंडोनेशिया 33 लाख</span></span></div>
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ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-30350880597797323072018-10-04T06:25:00.002-07:002018-10-04T06:25:36.406-07:00कुछ सियासी बातें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कुछ सियासी बातें<br />
अर्थव्यवस्था के विकास का अर्थशास्त्र बताता है कि इसका फल वर्गों में मिलता है। मसलन विकास का 80 फ़ीसदी धन देश के एक फ़ीसदी लोगों के पास संग्रहित हो जाता है। परिणामस्वरूप हर महीने 30-40 अरबपति उत्पन्न हो जाते हैं। साथ ही जो पहले से अमीर हैं वे और अमीर हो जाते हैं। दूसरी ओर विकास का 20 फीसदी धन देश के 80 फीसदी में बंटता है। इनमें भी किसी को मिलता है किसी को नहीं मिलता है। इससे जो गरीब हैं वह और गरीब हो जाते हैं। इस वजह से कई तरह की सामाजिक विसंगतियां उभरतीं हैं।<br />
दूसरी ओर देश का चुनाव जाति और धर्म पर लड़ा जाता है। इन दोनों का ही आर्थिक विकास में कोई भूमिका नहीं होती है। लेकिन यही लोग सरकार बनाते हैं। या कहें कि इसी आधार पर सरकार बनती है।<br />
इस तरह सरकार बनने और बनाने की प्रक्रिया और सरकार चलाने और चलाने की प्रक्रिया बिल्कुल अलग और भिन्न है। सरकार बनने का बाद सरकार चलाने की प्रथमिकता बदल जाती है। सरकार के केंद्र में वह आ जाता है जिसने वोट देकर सरकार नहीं चुनी होती है बल्कि चंदा देकर अपने पसंद के व्यकितत्व, विचार और दल की सत्तासीन किया होता है। इस तरह मुफ्त का बहुमूल्य मत व्यर्थ साबित हो जाता है और पइसा पैसे को खींचने लगता है। परिणामस्वरूप अमीर यानी चंदा देने वाला और अमीर यानी अरबपति बनने लगता है और अपना कीमती मत देने वाला मतदाता और गरीब होने लगता है। इस प्रक्रिया में जाति और धर्म गौण होता है। लेकिन मीडिया में प्रचार तंत्र में इन्हीं की चर्चा होती रहती है। इसे क्या कहेंगे? साजिश? हां यह साजिश ही है। मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाने की।<br />
इस आलोक में 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हैं।<br />
एक तरफ भरतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दल हैं। दूसरी तरफ़ कांग्रेस पार्टी और अन्य क्षेत्रीय दल हैं। इसी के बीच में कम्युनिस्ट पार्टियां भी हैं। भाजपा के अगुआ नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं। कांग्रेस में केवल राहुल गांधी हैं। राहुल गांधी को चुनौती मोदी-शाह से नहीं है। उन्हें चुनौती मिल रही है अपनी विरासती विसंगतियों से। कांग्रेस की अपनी कोई आर्थिक नीति कभी नहीं रही। इसलिये अब भी नहीं है। आजादी के बाद से ही कांग्रेस जब भी सत्ता में रही समय के साथ उसे जो अनुकूल लगा उसी आर्थिक नीति का अनुसरण कर लिया। परिणामस्वरूप देश का विकास हुआ भी नहीं भी हुआ। धनपति विकास करते रहे आम आदमी दाल-रोटी के लिए ही जूझता रहा। इस बीच कांग्रेस विरोधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उसकी राह में रोड़े अटकता रहा। इसमें कम्यूनिस्टों ने भी साथ दिया और तथाकथित समाजवादियों ने भी। इसका नतीजा रहा कि कांग्रेस जो कर सकती थी अपने शाशनकाल में वह भी नहीं कर सकी। वहीं समाजिक रूप से उसकी नीतियां भी आस्पस्ट रहीं। वैचारिक रूप से भी उसमें द्वंद हमेशा ही रहा। वह सबकी होना चाहती थी और हो नहीं पाई। क्योंकि उसकी कार्यप्रणाली से सभी ने शक किया और एक एक कर सभी किनारे होते गए। कांग्रेस की यह दुविधा अब भी बनी हुई है। यही वजह है कि वह न तो अकेले चुनाव लड़ना चाहती है न ही किसी क्षेत्रीय दल से गठबंधन करना चाहती है। वह संघ-भाजपा के हिंदुत्व से उसी की तरह लड़ना चाहती है। यही वजह है कि राहुल गांधी मंदिर मंदिर मत्था टेक रहे हैं। यह कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष वाली छवि को धूमिल करता है, लेकिन चूंकि राहुल गांधी को संघ से लड़ना है और वह जीतना चाहते हैं इसलिए वह संघ जैसा व्यवहार करता प्रतीत होने चाहते हैं। वह संघ जैसा नहीं हो सकते। लेकिन हिन्दू वह भी जनेऊ धारी हिन्दू होना चाहते हैं। हो सकता है इसके परिणाम उनके पक्ष में चले जाएं। बहुत मुमकिन है कि इसका लाभ उन्हें समाज के एक समुदाय से मिले, लेकिन फिर कई समुदाय कांग्रेस से छिटकेंगे भी। यही वजह है कि कांग्रेस गठबंधन नहीं बना पा रही है। सच बात तो यह है कि राहुल गांधी गठबंधन के मूड में ही नहीं है। राहुल गांधी में न तो राजनितिक दिलचस्पी है ना ही वह किसी पद के महत्वाकांक्षी दिखते हैं। वह अलमस्त हैं और सियासत से अनिक्षुक भी। उनकी धारणा हिअ कि थक हार कर जनता कांग्रेस के पास आएगी ही। 2019 में न सही 2022 में वह अपनी जीत खोज रहे हैं। यह और बात है कि तब तक समय और हालात काफी बदल चुके होंगे।<br />
रही बात क्षेत्रीय दलों की तो उनका अपना अपना एजेंडा है। उनके पास कोई विजन या विचार नहीं है। अखिलेश की सपा हो या मायावती की बसपा। यह सब एक समुदाय विशेष की राजनीति करती हैं और लोकतंत्र में दबाव समूह की हैसियत से अस्तित्व में है। यही इनकी ताकत है और कमजोरी भी। जिसके दम पर यह दबाव बनाती है उसी के कारण यह दबाव में भी आती हैं। इनकी ताकत जाति है लेकिन सत्ता की नीतियां वर्ग आधरित हैं। यही वजह है कि जब यह सत्ता में आ जाती हैं तो अपने समुदाय का कोई भला नहीं कर पाती हैं। यही हाल जनता दल सेकुलर, जनता दल बीजू, तेदेपा, टीडीपी, एनसीपी, टीएमसी, डीएमके आदि जा भी है।<br />
रही बात भाजपा की तो उसके पास कोई आर्थिक विजन नहीं है। मोदी प्रचारक हैं और शाह की छवि नेता की है ही नहीं। वह देखने में ही विचारशून्य लगते हैं। जब बोलते हैं तो पूरी पोल खुल जाती है। उनके पास धर्म है। राष्ट्रवाद है। दोनों को जातीय घोल में मिलाकर वह चरणामृत तैयार करने की चेष्टा कर रजे हैं। राष्ट्र वाद की पंजीरी भी वह बांटने की तैयारी में है। इससे भक्तों की फौज तैयार हो गयी तो एक बार फिर सत्ता में आ ही जायेंगे। हालांकि इस बार यह उतना आसान नहीं है जितना 2014 में था। किले की नींव हिल चुकी है। दीवारें गिरनी तो तय है। यह और बात है कि नई दीवार कौन बनाएगा इसकी तस्वीर अभी साफ नहीं है।</div>
ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-46259050660674913162018-08-09T04:35:00.000-07:002018-08-09T04:35:08.804-07:00मैं दिल्ली रोड हूं... आज मैं उदास हूं... <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रोहतक में मैं दिल्ली रोड हूं। शहर के बीचों बीच से निकली हूं। हर रोज अनगिनत लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती हूं। मेरे ऊपर से हजारों वाहन हर रोज गुजर जाते हैं। लेकिन मैं उफ़ तक नहीं करती। मुझे भी कष्ट होता है। दर्द होता है जब मेरे शरीर पर गड्डों रूपी घाव होते हैं। लेकिन मैं सहती हूं। किसी राहगीर को गिराती नहीं। उसकी जान नहीं लेती। जो अपनी जिंदगी खोते हैं अक्सर उनकी या सामने वाले की ही गलती होती है। कभी ट्रैफिक नियमोँ का न मानना तो कभी तेज रफ्तार। मैं हर मौत पर रोती हूं। अफसोस जताती हूं। अगले ही पल लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने में जुट जाती हूं।<br />
आज मैं बहुत उदास हूं। रात भर रोई हूं। मेरे जेहन में कई सवाल हैं जिनका कोई उत्तर नहीं दे रहा है। मैं जानना चाहती हूं कल दोपर मेरे सीने पर चढ़कर जिस लड़की को गोली मार कर हत्या कर दी गयी उसकी गलती क्या थी? यही की उसने किसी से प्यार किया था? एक ऐसे युवक से जो उसकी जाति का नहीं था? जिससे वह प्यार करती थी वह ऐसी जाति से था जिसे यह सभ्य समाज सम्मान नहीं देता? क्यों कोई जाति से छोटा बड़ा हो जाता है? क्यों रिश्तों से बड़ी जाति हो जाती है? कई बार धर्म भी हो जाता है? क्यों अपने ही बच्चों के दुश्मन हो जाते हैं माता पिता? वे माता पिता जो जन्म देते हैं, पालते हैं पोषते हैं, लिखाते पढ़ाते और बड़ा करते हैं, क्यों किसी से प्यार करने पर उन बच्चों की जान ले लेते हैं? लोग क्यों नहीं मेरी तरह प्यार करते हर किसी से बिना उसका धर्म पूछे? बिना उसकी जाति पूछे? क्यों नहीं उसे पहुंचने देते उसके गंतव्य तक? इंसान जो खुद को विचारवान, तर्कशील और सभ्य कहता है कहां से लाता है इतनी नफरत? इतनी हिंसा?<br />
जहां उस लड़की को गोली मारी गयी वह शहर का दिल है। हमेशा व्यस्त रहता है। वहीं पर लघु सचिवालय है, जिसमे पुलिस के कप्तान का दफ्तर है। जिले के डीसी का ऑफिस है। कोर्ट है। कचहरी है। दो पुलिस थाने हैं। यह सब ऐसे है जिसे इंसानों ने अपनी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए बनाया है, ताकि वह शांति से रह सके। लेकिन यह सब अक्सर विफल हो जाते हैं। यह सब क्यों अपनी जिम्मेदारी निभाने में फेल हो जाते हैं? लड़की की सुरक्षा में तैनात किया गया सिपाही भी मारा गया। वह न अपनी रक्षा कर पाया न ही लड़की की। यह कैसी बेबसी है? इससे तो यही लगता है कि इंसानों की बनाई व्यवस्था फेल है उसकी हिंसा और नफरत के आगे? मुझे तो लगता है इंसानों को प्यार से, शांति से रहना ही नहीं आता। वह हर पल या तो ढोंग करता है या अभिनय। उसे जिंदगी जीना नहीं आता। उसे अभी सभ्य होना बाकी है। सदी दर सदी हुआ उसका विकास झूठा है। अधूरा है। उसे अभी संवेदनशील होना है।<br />
इंसानों को मुझसे सीखना चाहिए। हालांकि इंसानों ने ही मुझे बनाया है। लेकिन किसी की मदद करना, प्यार करना, रिश्ते निभाना, संवेदनशील होना उसे मुझसे सीखना चाहिए.... मैं सड़क हूं..मैं दिल्ली रोड हूं। केवल रोहतक ही नहीं हर शहर में हूं... राहगीरों को उनके लक्ष्य तक, गन्तव्य तक पहुंचाती हूं... बिना रुके, बिना थके, बिना उफ़ किये, हर पल, 24 घंटे, सेवा में तत्पर... मैं सड़क हूं लेकिन हर इंसान से प्यार करती हूं... क्या तुम भी ऐसा कर सकते हो? तुम्हीं से पूछ रही हूं लड़की पर गोली चला कर मारने वाले, सिपाही को मारने वाले, बेटी से नफरत करने वाले, बहन की जान लेने वाले, हर किसी से नफरत करने वाले, हर पल हिंसा पर उतारू रहने वाले, जाति और धर्म में बांट कर लोगों की शांति छीनने वाले...क्या तुम्हारे पास मेरे सवालों का जवाब है...? तुम जवाब दे भी नहीं सकते। तुम तो जीवन छीनते हो। कभी किसी को जीवन देकर देखो, जीना आ जाएगा। तुम्हें भी प्यार हो जाएगा। लेकिन तुम यह कर नहीं सकते, क्योंकि तुम कायर हो और डरपोक भी। मेरी एक बात याद रखो, नफरत और हिंसा की जिंदगी लंबी नहीं होती। खुशहाल तो बिल्कुल भी नहीं....।<br />
@ ओमप्रकाश तिवारी</div>
ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4082231716533195725.post-44632612107469858672018-08-03T16:48:00.001-07:002018-08-03T16:48:28.880-07:00कविता : बेहतर हो बागों में बहार ही कहिये<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2EEgDlpg12tx-ZEOegZrNbvzSEqL57PwtbdVGJsTUuj47quIYFwGnN2U02qo3_Yc-enI20_no-VvmBMYGvpNLu_DwGKZQ1n2rNrUJ1ctspQbGZ3OEZGAX41kgSpa9JaJuNgi51Hf87_2o/s1600/IMG-20180714-WA0000.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="600" data-original-width="396" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2EEgDlpg12tx-ZEOegZrNbvzSEqL57PwtbdVGJsTUuj47quIYFwGnN2U02qo3_Yc-enI20_no-VvmBMYGvpNLu_DwGKZQ1n2rNrUJ1ctspQbGZ3OEZGAX41kgSpa9JaJuNgi51Hf87_2o/s320/IMG-20180714-WA0000.jpg" width="211" /></a></div>
इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद<br />
देशसेवा के लिए पत्रकारिता में<br />
राष्ट्रवाद पर शोध ग्रंथ लिखकर<br />
प्रोफेसर बने महोदय ने अपनी<br />
कक्षा में विद्यार्थियों से कहा कि<br />
सरकारी मंशा पर सवाल उठाना<br />
पत्रकार का काम ही नहीं है<br />
यह काम विपक्षी दल करता है<br />
विपक्षी दल की खबर लिखना<br />
पत्रकार का काम ही नहीं है<br />
सेना-जवान का गुणगान करिये<br />
बहुसंख्यक धर्म का बखान करिये<br />
धर्मगुरुओं का यशोगान करिये<br />
तंत्र पर कब्जाधारी कुछ भी करें<br />
तुम तो हमेशा वाह-वाह करिये<br />
किसी की संपत्ति कैसे भी बढ़ी<br />
तुम उत्थान का बखान करिये<br />
मौत का क्या है आ ही जाती है<br />
जज की मौत पर न सवाल करिये<br />
बेसिन से यदि गैस चुरा ले कोई<br />
ऐसी चोरियों पर ध्यान न दीजिए<br />
कमाया है धन देशहित में उसने<br />
उसकी देशभक्ति का मान रखिये<br />
जानवरों में गाय को माता मानिए<br />
इन्हें छू दे कोई तो हाहाकार करिये<br />
इनकी रक्षा में मरने वाले शहीद हैं<br />
इन्हें मारने वाले को शैतान कहिये<br />
गिर जाय गर बनता हुआ पुल कोई<br />
इसे विपक्षी दल की चाल कहिये<br />
बढ़ जाये गर ई-रिक्शे की बिक्री<br />
इसे देश में बढ़ता रोजगार कहिये<br />
पकौड़े तलना भी है कारोबार ही<br />
ऐसो को उद्यमियों में शुमार करिये<br />
बेरोजगारी पर कोई सवाल उठाए<br />
उसको देश का बड़ा गद्दार कहिये<br />
फ़ोटोशाप से कमाल ऐसा करिये<br />
पूर्व पीएम को बड़ा अय्यास कहिये<br />
देश की सभी विसंगतियों के लिए<br />
एक परिवार को जिम्मेदार कहिये<br />
होता है कुछ भी अच्छा देश में यदि<br />
सत्तर सालों में पहली बार कहिये<br />
खराब जो कुछ भी है इस देश में<br />
कुछ नहीं हुआ 70 साल में कहिये<br />
साहब गले पड़ें तो संस्कार कहिये<br />
कोई और करे तो कुसंस्कार कहिये<br />
मुक्त करना उनकी मानसिकता है<br />
इसे कतई भी तानाशाही न कहिये<br />
वैदिक हिंसा हिंसा न भवति कहिये<br />
वाह क्या संस्कृति है ख्याल रखिये<br />
पढ़कर नौकरी ही करनी है तुमको<br />
तो मेरी बातों को गांठ बांध लीजिये<br />
साधन साध्य से बड़ा नहीं होता है<br />
ये ज्ञान की बात भी जान लीजिए<br />
सूखे बाग को सूखा नहीं ही कहिये<br />
बेहतर हो बागों में बहार ही कहिये<br />
@ ओमप्रकाश तिवारी</div>
ओमप्रकाश तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/14790859884634428056noreply@blogger.com0