वाराणसी में निर्माणाधीन फ्लाईओवर के दो बीम गिरने की खबर जिसने में सुनी और देखी वह दहल गया। इतना दर्दनाक हादसा कइयो ने शायद अपनी जिंदगी में पहली बार देखा हो। कुछ लोग जो शाम को अपने घरों को लौट रहे थे उनके ऊपर अचानक पहाड़ सा बीम गिर जाता है। उनकी गाडिय़ां पिचक जाती हैं और उनकी जिंदगी एक पल में खत्म हो जाती है। शुरूआती खबरों में बताया कि १८ लोगों के शव मिले हैं लेकिन ५० से अधिक लोग मलबे में दबे हैं। हालांकि बचाव कार्य में लगे कई लोगों ने मरने वालों की संख्या १०० से अधिक बता रहे थे। इतने लोगों की जिंदगी को लील जाने वाला फ्लाईओवर बेहद लापरवाही से बनाया जा रहा था। जाहिर है कि इसमें भ्रष्टाचार भी खूब हुआ होगा। यह भी तय है कि इसे बनाते समय कई मजदूरों ने अपनी जान से पहले भी हाथ धो चुके होंगे। कई मजदूर अंग-भंग होकर घर पर बेकाम बैठ गए होंगे। उनके बारे में खबर नहीं दिखाई और प्रकाशित की गई। वैसे भी मजदूरों की खबर तब तक खबर नहीं होती जब तक कि वह वोट में न तब्दील हो जाएं। मजदूरों कर्मचारियों की बात करने वालों को आजकल देशद्रोही तक कह दिया जाता है। हालांकि चुनावी भाषणों में हर कोई इनका कल्याण करने की घोषणा करता है, लेकिन सत्ता में आते ही इन्हीं एकदम से कल्याण करने लगता है।
दरअसल, पूंजीवादी व्यवस्था में लोकतंत्र कितना क्रूर हो जाता है इसकी बानगी मंलगवार १५ मई की शाम को देखने को मिली। एक तरफ कर्नाटक में विधान सभा चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके थे। वहां किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था और जोड़तोड़ जोकि जाहिर है कि भ्रष्टाचार और अनैतिक है, से सरकार बनाने की कवायद तेज हो गई थी। इसी बीच शाम को वाराणसी में निर्माणाधीन फ्लाईओवर का दो बीम सैंकड़ों वाहनों पर गिर जाता है। चाटूकार टीवी चैनल भी कर्नाटक की खबर को छोड़कर वाराणसी की घटना को दिखाने बताने लगे, लेकिन वाराणसी से सांसद, देश के प्रधान सेवक, चौकीदार और गंगा के दुलारे बेटे अपनी पार्टी के सात सितारा कार्यालय में किसी देवपुरुष की तरह अवतरित होते हैं। सीढिय़ों से उतरते ही उनके सारथी पूरे गर्व से कहते हैं कि कर्नाटक की जनता जान लो तुम्हें धन्यवाद देने नरेंद्र मोदी आए हैं। यह भाषा थी सत्ताधारी दल के अध्यक्ष की, जो अंहकार की चाश्री से लबरेज थी। यह बताने आए थे कि कर्नाटक में भले ही भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, लेकिन सरकार उनकी ही बनेगी। उनके भाषण में मोदी का चारणगान, झूठ-फरेब और धमकी के सिवा कुछ नहीं था। प्रधान सेवक ने एक सेकेंड में वाराणसी हादसे में दो चार शब्द बोलकर कांग्रेस और कांग्रेस को वोट देने वाली जनता को धमकाने लगे। निसंदेह यह कार्यक्रम उस समय ऐसा लग रहा था जैसे किसी समय डांगर के मरने पर गिद्ध जश्र मनाया करते थे। सत्ताधारी दल के अध्यक्ष ने तो वाराणसी की घटना पर एक शब्द तक कहना उचित नहीं समझा। इसी से उनकी संवेदनशीलता को समझा जा सकता है। जबकि होना तो यह चाहिए था कि गंगा के बेटे अपने क्षेत्र में जाते और लोगों की आंसू पोछने का काम करते। ऐसा ही कुछ काम उनके सारथी को भी करना चाहिए था। यही नहीं प्रदेश मुख्यमंत्री तो देर रात में पहुंचे।
दरअसल, यह कहना कि सच परेशान होता है, लेकिन हारता नहीं है, एक बेशर्म वाक्य है। पूंजीवादी लोकतंत्र में सच किसी फ्लाईओवर के नीचे दबकर मर जाता है और झूठ किसी सात सितारा दफ्तर में देवदत्व की अभिलाषा में झूम रहा होता है। झूठ, फरेब और नफरत से बजबजाते हिंसक हो चुके समाज और उसके रहनुमाओं से नैतिकता, मानवता और सभ्याचार की आशा करना भी शायद खुद को धोखा देने जैसा ही है।
- ओमप्रकाश तिवारी
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